Monday 30 November 2015

कविता-बागी लडका

बागी लडका


(बागी लडका रोता है रातभर छुप छुपकर
सपने में भी जो माँ कहती है अक्सर
कि तुम अब मेरे बेटे नहीं हो,
और कहती हैं माँ कि मैं तुमसे प्यार नहीं करती)

बागी लडका माँ की गोद में छीपता है
बागी लडका बाप से नजरें नहीं मिलता
डरता है पिता के गुस्से से
की दंडित न कर दे कहीं उसे
बागी लडके ने बारह साल में
बारह बार भी बात नहीं की होगी अपने पिता से

अपनी माँ में मस्त रहता है बागी लडका
जैसे कोई अपनी पहली प्रियतमा में होता है मस्त
बागी लडका कहता है माँ मेरी गर्लफ्रेंड है
बागी लडका आंगन के पंछियों से अपने दिल की बात करता हैं
बागी लडका बारिश से खुश होता हैं

बागी लडका बगावत करता है
नही मानता अपने पिता का कहना
प्यार करता है किसी अन्य जाति की लडकी से
बागी लडका परिवार की परंपराएं तोडता है
इज्जत के ठेकेदार ढोंगी बुड्ढो की धोती खींचता है बागी लडका

ईश्वर को गालियाँ देता है,
खुद को नारीश्वरवादी कहता है बागी लडका
किसी धर्म का अनुयायी नहीं बनता
मंदिरो, मस्जिदों से बहुत चीड़ता है
बागी लडका बात बात पर सवाल बहुत करता है

बागी लडका स्कूल नहीं जाता
जिद करता है माँ के पास ही पढने की, माँ के पास ही रहने की
कहता है डर लगता है शिक्षक से
स्कूल के बडे बडे कमरों से
और साल के अंत में आती परीक्षा से

आवारा घूमता है बागी लडका
अक्सर छेडता है मोहल्ले की लडकीयों को
चोटी खींच कर पूछता है; "ब्याह करोगी मुझसे?"
कडी धुप में दोपहर को जाता है तालाब में तैरने
क्योंकि वहाँ आती कपडे धोने पास के गांव की छोरीयाँ

बागी लडका जेल जाता है
झगडता है कहीं भी, किसी के भी साथ
गांव से लडकी भगाकर शहर में शादी करवाता है
चोरी छुपे लव मैरिज करवाने में
दूर दूर तक  कुख्यात है बागी लडका

कभी पर्यावरण के लिए या अवैध खनन के विरुद्ध
आंदोलन चलाता है बागी लडका
फिर किसी नई राजनीतिक पार्टी के लिए
आम आदमी बनता है बागी लडका
हारता है, जीतता है  बागी लडका
बागी लडका अकेले रहना सीख गया है

             ▪▪▪▪▪▪

कभी बागी लडके निराश होकर आत्महत्या कर लेते हैं
या फिर हो जाती हत्या किसी चौराहे पर सरेआम उनकी

बागी लडकों के दोस्त नहीं होते
बागी लडकों की प्रियतमाएँ नहीं होती
बागी लडकों के माँ बाप नहीं होते
बागी लडकों का परिवार नहीं होता
बागी लडकों के घर नहीं होते
बागी लडके बस ख्वाब पालते हैं, साहस करते हैं....
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कविता- मुझे अब कहना होगा अलविदा

मुझे अब कहना होगा अलविदा


मुझे कहना होगा कि
अब मुझे जाना होगा
वापस अपने खेतों में
पहाडों में
मैदानो में
अपने गांव की अपनी गलियों में
अपने घर के अपने आंगन में

अपने रेतीले रेगिस्तानी समंदरो में फिर तैरने
और सुने पहाड़ों के सुखे झरनों को छुने
तालाब के पानी में छिपे चंद्रमा को अपनी हथेली में भरकर
गले से घटककर पी लेने

और भेड के झुंड का बनने चरवाहा
फिर खुले मैदानों में दौड लगाने
किसी खरगोश के साथ
और किसी छोटी सी पहाडी पर खडे होकर
बहती हवा से टकराने

नंगा होकर कूदने उसी  तालाब में
जहाँ नहाती थी कभी गाँव की हर लडकी नंगी
और जब मैं डुबकी लगाकर छु लेता था उनकी नंगी जांदे

मुझे जाना होगा
उस हर बुड्ढी माँ के आँचल से लिपटने
जिसने
मुझमें कभी किसी रोज
देखा था अपना बच्चा

और जाना होगा
उन  सब आंखों को चुमने
जिसने कभी बहाये थे आंसू  मुझे अपना प्रियतम मानकर
और उन सब बचपन के साथियों को भी गले लगाने
जिन्होंने सिखाया था खेल कबड्डी का
कभी हारकर, कभी जीतकर

मुझे जाना होगा
फिर उस मिट्टी की खुशबू सूंघने
जिस मिट्टी से बना हूँ मैं
और फिर एक दिन जिसमें वापस मिल जाऊंगा
उस जमीं के लिए एक बार फिर लडने
जिसे बचपन में अपना खेत मानकर भिड गया था एक जंगली सुअर से

मुझे जाना होगा
उस कंधों का शुक्रिया कहने भी
जिस पर बैठकर
मैंनें कभी दुनिया को बहुत दूर तक देखा था
और
और उस गोद में फिर सोने
जिसमें ममता की चादर मुझे ढक लेती थी
और लिपटकर बरसता था मुझपर प्यार सदैव जहाँ

कभी मैं आया था
शहरों की चकाचौंध रोशनी देखकर
इमारती ख्याल बांधे
लिसी काली सडकों और उन पर सरकती, चमचमाती गाडियों से आकर्षित होकर
बडे बडे बंगलों की चाहत लेकर
फैशनेबल कपडों और उससे आती डियोडेरेंट की मदमाती खुशबू का आशिक बनकर
सफेद, मुलायम और लचीले जिस्मों को भोगने का लालच लेकर
और साथ में लाया था
कई ख्वाब, कई अरमान, साहस और....................

मैंने चमकते शहर में बनाये थे कुछ दोस्त
सडक के किनारे रहता था शंकर
जिसने पहले दिन दी थी सोने के लिए जगह
और कुछ कंबल भी ओढने
और वोह मंदिर के सामने बैठने वाला बुड्ढा चाचा खेताराम
जिसने पैसे दिए थे चाय पानी के लिए और खाना भी
और और..... वोह बंगाली रानी
जो छुप छुप कर देती थी मिठाईयाँ
अपने भिख के पैसों से लाकर

कूछ और भी थे
जो मेरी कविताएं सुनकर खुश होते थे
और कभी कभी हँसकर कहते थे;"बहुत अच्छी कविता... वाह बेटे वाह. .."
फिर बेटे को भूलकर वोह  अपने अपने घर चले जाते थे

अब यहाँ महसूस होती है घुटन
और रिश्ते सारे हो जैसे झूठे
सड कर बास मारते इन शहरी रिश्तों से
ऊब गया हूँ मैं अब
जैसे कि यहाँ का हर चेहरा फरेबी है और रिश्ता कमजोर
और पुरा शहर बन गया है एक कूडे का बासी ढेर

मुझे  कहना होगा कि
अब मुझे जाना होगा
मुझे अब कहना होगा
अलविदा ।

* * * * * * * * * * * * * *

कविताएँ- नदी का होना सिर्फ नदी नहीं होता और खाली होना भरा होना

नदी का होना सिर्फ नदी नहीं होता



नदी का होना सिर्फ नदी नहीं होता
नदी का होना होता है नदी का तट
नदी के तट पर उगे जंगल
जंगल में कलरव करते पक्षी
और कलरवों के शोर के बीच
किसी घोसले में अंडों से बाहर आते बच्चे

नदी का जल सिर्फ जल नहीं होता
नदी का जल होता है किनारों पर बसे गांव, शहर
और नदी पर बनाई गई छोटी बडी झीलें
की खेतों में दूर दूर तक जाती कैनालें भी
और वो दोपहर को तृषा छिपाने आते
गाय, भैंस, बकरियों के झुंड

नदी का बहना सिर्फ बहना नहीं होता
खलखल पहाड़ों से उतरना होता है नदी का बहना
मेंढको का जोर जोर से टर्रटर्रना
और मछलियां पकडते बच्चे का गुनगुनाना
या फिर नदी का बहना होता जैसे
किसी खेत में किसान की बेटी की किलकारियाँ करना

नदी का होना सिर्फ नदी नहीं होता
नदी का होना होता है जीवन
नदी का होना होता है  संगम
नदी का होना होता है संगीत.....
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खाली होना भरा होना



खाली होना इस तरह नहीं
की जैसे खाली हो मिट्टी का घडा
और प्यासा लौट जाए पंखेरु

खाली होना कुछ इस तरह
जैसे आसमान में सहजता से उडता है
भारीपन उतारकर कोई पंछी

भरा होना ऐसे नहीं की
भारी हो जाए किसी मजदूरन के सर पर पडे गमले का भार
और बोझ के भार से बेचारी
चल भी न पाए दस पाव दूर

भारी होना खलिहान में पडे धान की भांति
की चमक उठे किसान की आंखें
या फिर उस काले बादल की तरह
जो भारीपन से हलका हो जाए
किसी प्यासे रेगिस्तान में
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प्रिय पिता और एक कविता

प्रिय पिता


प्रिय पिता
काश तुममें होती
कुछ और ज्यादा हिंमत
तुम खुद को जाति से परे रख पाते
(मुझे पता है कि तुम मूछों पर ताव देकर राजपूत होने पर अपना सर थोडा उंचा रखते थे)
और स्वयं को धर्म से दूर रखकर
अपने आप को केवल मानव कहलाते तुम
(माना कि तुम भाल पर तिलक लगाकर हिन्दू होने पर इठलाते थे)

पिता
काश कि तुम
आसमान छूना चाहती स्त्रीयों के
रक्षक बनते
पथ दर्शक बनते

और पिता तुम
तलवार, बंदूक की जगह हल उठाते
जाकर खेतों में बहाते पसीना
अपने वीर्यवान देह की श्रमशक्ति से
धरती की छाती से अधिक से अधिक धान उगाते

और यद्यपि फिर भी तलवार, बंदूक चलाने का मन करता तुम्हारा
तो शोषितों के न्याय के लिए
अत्याचारीयों के दमन से रौंदी गई नारियों के सम्मान के लिए
या गरीबों, भूखों, नंगों के हक के लिए
तुम हथियार उठाते
(अपनी झूठी शान या सिर्फ आखेट के शोख के लिए हथियार उठाना ही वीरता है. ??)

ओ मेरे पिता
मैं सह लेता सब ताने ये
कि तुम्हारे पिताने जातिघात किया,
या तुम्हारा पिता धर्म भ्रष्ट था
ऐयाश था....
ये सब सून कर मैं और ज्यादा अपना सीना फुलाता

और मेरे प्रिय पिता
मैं गर्व से अपने दोस्तों बताता
वो देखो उपर स्वेत बर्फीले पहाड पर
भगत और मार्क्स से थोडा नीचे
गांधी और बुद्ध से चार कदम पीछे ही सही
पर है उसी रास्ते मेरा पिता..
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मैं प्रियतमा के थन से तन पी रहा था


दरवाजे से अंदर आई खुरदरी चमकीली धूप
घट, शीतल छांव
उलटे पैर लटक गई छत से
अदृश्य के आरपार बह रही थी बेरंग हवा

भीतर एक अलसाई मुस्कान
सुबह को सहलाने लालायित थी....
गरम थी प्रियतमा के जिस्म सी
अध नंगे बदन पर टिकी चादर

खिड़की बाहर बहार आई थी
जुई के फूलों की भीगी खुश्बू खा रही थी तितलियाँ
मोरनी रिझा रही थी मीठी आवाज से नर को

सुलग रही थी
रीड की हड्डी के पास से गुजरने वाली मुख्य धमनी
उष्मा से लद्दोलद सांसें
बेख्याली में छोड रही प्रदुषित कार्बन डाइऑक्साइड

और याद आ गया.....
अगले साल इसी दिन
सात बजकर सोलह मिनट पर
मैं प्रियतमा के थन से तन पी रहा था...
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दो शीर्षक विहीन कविताएँ

1.

यदि तुम्हारे नजदीक से
गुजरी कोई सुंदर लडकी
और तुम्हारा जरा सा भी ध्यान
उस पर नहीं गया
तो यकीनन तुम बुड्ढे हो गए हों
तुम्हारी सुंदरता सूंघ लेने की इंद्रिय सून हो गई है

किसी चिडिया ने भोर में
गाया एक गीत
और सुन कर उसे
नींद से जागे नहीं तुम
तो यकीनन तुम्हारे अंदर का कवि मर गया है

भूखे, प्यासे, नंगे बच्चों को देख मुंह फेर लिया
फिर जाकर डिनर में खाया
ताजा बकरे का गोश्त
और तुम्हें निवाले भरते वक्त
शर्म तक नहीं आई खुद पर
भरपेट खा कर सो गए चैन की नींद
तो यकीनन तुम इंसान नहीं हो..!!

तो तुम यकीनन एक बेजान जिंदा लाश हो..!!
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2.


लडकी के पीछे दौड रहा था लडका
और लडकी ख्वाबों के पीछे
ख्वाब हवा हो गए
लडकी विधवा हो गई
और लडका पाल रहा है नाजायज बच्चा अपने पेट में

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माँ और दुसरी कविताएँ

[  केन्या हो, पेशावर हो, सीरिया या इराक हो, या फिर इजराइल हो.....  मारे तो हम बच्चे, औरते और निर्दोष ही जाते हैं,  हम कमजोर नहीं है पर हम बदले में विश्वास नहीं करते,  हम हिंसा करना नहीं चाहते, हम खून बहाना नहीं चाहते।
हम चाहते हैं एक खूबसूरत दुनिया और इस ख्वाब के लिए हम बलिदान देते रहेंगे। जब तक तुम मजहब के ठेकेदार और साम्राज्यवादी दरिंदे अच्छे इंसान नहीं बन जाते तब तक हम जारी रखेंगे इनसानियत की जंग,  मोहब्बत की जंग।
यह कविता पेशावर हमले में जख्मी हुए बच्चों के लिए संदेश के तौर पर लिखी थी आज केन्या के कोलेज के बच्चों के लिए।]

1.

ना  रखना  बैर प्रति  उनके, उन्हें  तुम  माफ  कर  देना
हर जख्म को भुलाकर तुम, उन्हें बस शर्मसार कर देना

बंदुके,  बम,  बारुद से रहना दूर,  कातिल न बनना तुम
गर  चाहो बदला,  बदले के तहत एक मुस्कान भर देना

वह खुद मर जायेंगे शर्म से, बस उनमें शर्म जिंदा रखना
यही तुम्हारी जीत है, तुम बच्चे हो बच्चे ही बनकर रहना
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2.

प्यारे पिताजी को
उँगली पकडकर
पा......पा...... करते हुए
कब्रस्तान ले गया ।
डेड बनाया........
और
माँ तो वहाँ
पहले से ही
मम्मी थी....!!!!

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3. माँ


माँ
जब मैं तेरी उँगली थाम कर चलता था
तब मुझे कभी गिरने का डर नही लगता था ।
अरे...... मैंने कभी इसके बारे मे सोचा तक नही था..!!
अब मैं अपने पैरों पे चलता हूँ
फिर भी
मुझे भरोसा नही हैं... अपने आप पर..!!
सदैव एक भय सा रहता है
की
गिर जाऊंगा कहीं तो..?


माँ
खुले आसमान के तले
जब मैं तेरी गोद मे सोता था
तब मुझे अजीब सी खुशी मिलती थी ।
मैं निश्चित होकर सो जाता था ।
लेकिन
अब जब मैं
अपने पंचतारा बंगले मे
डनलप के मुलायम गद्दे पर सोता हूँ ।
फिर भी
नींद नही आती ।
चैन नही मिलता..!!


माँ
जब मैं तेरे आंचल से स्तनपान करता
तब जो स्फूर्ती मिलती थी...
जो अलभ्य स्वाद मिलता था...
वो अब तक मैं भुला नही हूँ...!!!
लेकिन
अब मैं जितने भी शक्तिवर्धक
और चटाकेदार भोजन लेता हूँ
उसमें मुझे कभी
वो स्फूर्ती.... वो स्वाद....
नही मिलता !!

ग्वॅनेड़ और दुसरी कविताएँ

ग्वॅनेड़


ग्वॅनेड़ है एक काली लडकी पीले दांत वाली
पीती रहती है चाय पर चाय कैन्टीन के बाहर
ग्वॅनेड़ अंगडाई लेती है तो जिंदा हो जाती है
पुरी कच्छ यूनिवर्सटी

यूनिवर्सटी होस्टल के दुसरे मंझले के तीसरे कमरे में
रातभर  रहती है अकेली
ग्वॅनेड़ नौ दिन पहले न्हाई होगी
और शायद बारा दिनों से ब्रश किये बिना है
उससे आती पसीने की खुश्बू और डियोडंरट की बदबू
बयां कर देती है सब कुछ

सफेद जुराब पर पहनती हैं काली चंपल ग्वॅनेड़
लगाती है नीले झुमखे और छोटी बिंदी अक्सर
बडे नाखून से खुरेदती है पूराने जख्म
और देख कर मेरी तरफ थुंक देती हैं
गुस्से से चुंबन की यादें

कभी कभी रोती भी होगी बंद कमरे में छुप छुपकर.........
जब याद आती होगी पहले प्यार की
और तब भी रोती होगी
जब रात को चादर की सिलवटें चुभती होगी सीने में

गुनगुनाती रहती हैं ग्वॅनेड़ पुरा दिन
"आई एम बार्बी गर्ल..... इन ध् बार्बी वर्ल्ड...."
और जिष्म पर चुभती नजरों से ईस तरह किनारा करती है
जैसे शिकारी को देख हिरण का वन छोड जाना

काली केपरी को घुटने से भी उपर सरका कर
अपनी काली लिसी जांदो से
नापती है तापमान समाज का
और सुर्ख जांदो की गरमी से पिघल कर बह गए मर्दों से
अपने पैर और जांदे धो लेती है ग्वॅनेड़ हँसकर
क्लीवेज की दरार पर टिकी नजरों से
सूंघ लेती है स्वास्थ्य समाज का

बंजर बुड्ढो को हरा कर देती है आंख मारकर
और सोती है रातभर किसी निकम्मे सन्नाटे के साथ
पूछती है अपने से कि, "मैं गंदी लडकी हुं...??"
जवाब जाने बिना देख लेती है जमाने की तरफ
फिर उसे सवाल नहीं सताता

हर सुबह उठकर एक नजर डालती है आईने पर ग्वॅनेड़
टीशर्ट निकाल कर आईने में झांकती है अपना पेट
और सवालिया नजर से दैखती है की
किसी नाजायज बीज को बोया तो नहीं अपने खेत में.?

आवारा लडकों को मिडल फिंगर दिखा कर
अंग्रेजी में जोर जोर से देती है गालियाँ,
फिर अचानक रो देती है ग्वॅनेड़

जब मैंने यूनिवर्सीटी की छत पर चढकर
जोर से पुकारा था, "ग्वॅनेड़..... ग्वॅनेड़....."
पूरे शहर में शोर मच गया था
और दौड कर बाहर आई ग्वॅनेड़
जोर जोर से हंस रही थी

यूनिवर्सीटी की हर दिवार पर दर्ज है
उसकी वोह हँसी आज तक
और यूनिवर्सीटी के नीम के पैड पर बैठा काला कौआ
आज भी चिल्लाते रहता है,
"ग्वॅनेड़..... ग्वॅनेड़....."

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रिक्तता का जश्न


रिक्तता को रिक्त ही रहने दो
रिक्त हुए ह्रदय में
कुछ भी भरो मत
अब बोझ उठता नहीं बच्चे से
कि मेरे अंदर का बच्चा अब डरता है

बस,  अब रिक्तता का जश्न मनाने दो
अपने अंतर से मिलने दो
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तुं परिंदा आसमानी


टुटे पंख जुड जाएंगें
तु हौसला बुलंद रख
आज गिरा है जमीं पर
तु नजर आसमां पर रख

फिर से घोसला बनेगा
फिर  से  घर  बसेगा
पता पता झूम उठेगा
और सारा बन साथ खेलेगा

तु दिखा अपनी झलक
जरा तबीयत से पंख झटक
सीने  में  भर  दम  पुरा
फिर होगा मुठ्ठी में फलक

तु  परिंदा  आसमानी
फिर  कैसी  हैरानी..?

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Sunday 29 November 2015

पांच कविताएँ

सिर्फ किसी स्त्री को मत देखना



सिर्फ स्त्री की आँख मत देखना
आंखों में छाया धुआँ देखना    
आंखों में छिपी आग देखना

सिर्फ स्त्री का चेहरा मत देखना
चेहरे पर बिखरी बूंदें देखना
चेहरे पर चमकती बिजलियाँ देखना

सिर्फ किसी स्त्री को मत देखना
स्त्री में पल रही क्रांति देखना
स्त्री में जल रहा विद्रोह देखना
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बच्चा, माँ और बाप


बच्चा रोता है
माँ जागती है
और बाप सोता है

बच्चा भूखा है
माँ खिलाती है
और बाप देखता है

बच्चा बिमार है
माँ दवाई दे रही है
सीने से लगाये बैठी है
बाप भी बहुत टेंशन ले रहा है
जाम होठों को ही लगाये बैठा है

बाप का ऐसा होना आम-सी बात है
क्योंकि बाप आम सा होता है
और माँ का वैसा होना भी 'आम' सी बात है
क्योंकि माँ 'आम' सी होती है

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हमारी यारी


हमारी यारी में
घर की दीवारें लाल हो गई रंग कर
और किचन के बरतनों से
बिथोवन बहार आ रहा है
छत में लटक रही है नखानारी झील
और झील में तैर रही है रंगबिरंगी मछलियाँ

आंगन में  बैठा पीला बुलबुल
शोर मचा रहा है
कि पेड़ पर किसी और को बसेरा करने नहीं देगा

और सुना है कि
राजपूत राजा के सरोवर के रजवाड़ी हंसोने
मोती का चारा नहीं चुगा आज.....!!!

और डीडी उर्दू पर शुक्र शनि को कहानी सुनायेंगा कोई
की नारी-जवसा की यारी ऐसी वैसी कैसी होती है...!!

और सुनो पश्चिमी हवाओं
सागरमाथा पर्वत की चोटी पर दर्ज है हमारी यारी
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आंखों में कैद हैं इश्क
इश्क में कैद हैं कविता
कविता में कैद हूँ मैं
मुझमें बस्ती हो तुम
तुम में बहती है नदी

नदी, आंखें, मैं, तुम सब इश्क है...
सब कविता है...
सब कैद है....
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घर है, गांव है, गली है
बस ऐक पता नहीं है ऐसा
जहाँ पहूँचे प्रियजनों के पत्र

नाम है,  पहचान है,
और बदनामी भी बहुत  है
काम नहीं है
दाम नहीं है

कागज हैं,  कलम है,
पत्र पत्रिकाओं में पहुंच भी हैं
पास शब्द नहीं हैं सच्चे
और न ऐसी कविताएँ जिससे लोग बोल उठे;
"बहुत अच्छे,  बहुत अच्छे......"

समझ है,  समय है,
और सज्जनता भी है ठीक ठीक
नहीं है तो बस
बदतमीजी, बेबाकी, बगावत
और बोतल भर पी कर टुन होने का हुनर...

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न्याय और दुसरी कविताएँ

न्याय


शाम की मांग में सिंदूर भरके
सूर्य रात के साथ संभोग करने चला गया
और शाम के ससुर काले अंधेरे ने
धृतराष्ट्र की भांति आंखें मूंद ली...

• • • • • • • •

ससुर काले अंधेरे ने
नई नवेली ब्याहकर आई बहू सुबह को
चुपके से चूम लिया....
पुत्र दिन सब अनदेखा करके
अच्छे लडके की तरह काम पर चला गया
तो सुबह ने धूप में जलकर आत्महत्या कर ली....

और अब गांव के पंचों ने फैसला दिया है
मनचला चांद दोषी है
और सजा के तौर पर हर महीने
अमावस्या के दिन उसके मुँह पर कालिक पोता जायेगा।

बोलो पंच परमेश्वर की
जय.........................

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सेनापति सब्र करो


सेनापति सब्र करो... सब्र करो...
किस किस का कोर्ट मार्शल करायोंगे
कितनो को कोसोंगे
तुम्हारा आदेश मानने वाले सैनिक नहीं है ये
जो तुम्हारे कहने पर संवेदनाहीन होकर किसी पर भी गोलियाँ धागेंगे
ये एक लोकतांत्रिक देश के स्वतंत्र लोग हैं
जिनकी कुछ संवेदनाएं होती हैं, वेदनाएं होती है..
संवेदनाओं को शूली पर चढाओगे
तो देश मर जायेगा
सेनापति.. किसी मरे हुए देश को सेना की जरुर नहीं होती

सेनापति अपनी आजाद आवाम का सम्मान करो
अपने देश की आजाद आवाज को दबाओ मत
उसे सराहो सेनापति
उनकी संवेदनाओं का ख्याल करो..

ये जो आवाम है न सेनापति
अगर गालियों पर उतर आई
तो तुम्हारी सेना की गोलियां कम पड जायेगी
सेनापति उन्हें उकसाओ मत
सेनापति सब्र करो... सब्र करो...

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पुश्तैनी प्यार


सहजता से स्वीकार कर लिया उसने
कि वो सेक्स के लिए सहज है
और काफी उत्सुक भी
बिस्तर पर दांवपेंच, दमखम दिखाने को
(क्योंकि ऐसी स्वीकृति जताना जरूरी था,
अन्यथा उसे ढीला मान लिया जायेगा...)

काफी देर चुप रहने के बाद
होठों तक आये थूक को गले से नीचे घटकते घटकते
उसने झिझकते हुए अपना सर हिलाया
कि हाँ सेक्स करने में उसे रुचि नहीं है
और बिस्तर पर बेपर्दा होने में उसे काफी असहजता होती है
(यदि वो ऐसा न कहती, करती
तो उसे चालू कहकर चिन्हित किया जायेगा...)

और एक दिन फिर
बंद कमरे के
चंद प्रकाश में
न चालू आंखों ने इज़ारबंद खोलने की हाँ कही
न ढीले हाथों ने ना सुनने  पर रुकने की ठानी

उस बंद कमरे में
न कभी अच्छी बारिश हुई
न कभी झील छलकी...

हर रात के अंतिम पहर पर
स्वप्नदोषी बिजलियाँ चमकती
आहहहह... आहहहह.... गरजती
और चार दिवारों में कैद रह जाती

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दो विरह काव्य



ओ आसमान में ऊंचे उडते बाज
तुमसे मैं  विनंती करता हूँ
मित्र बाज, तुम अपनी चकोर दृष्टि से देखकर बताओ
कि मेरी प्रेयसी अभी क्या कर रही है.?
तुम मुझे बताओ मित्र बाज कि उसने कैसे वस्त्र पहनें हैं. ?
तुम उसके हंसते खेलते चेहरे का फोटो खींच लाओ
क्या तुम उसे अभी देख पा रहे हो मित्र बाज. ?
अगर वोह तुम्हें यहां से दिखाई दे रही हो
तो तुम मुझे ऊपर अपने साथ ले जाओ
मैं तुम्हारे इस उपकार का बदला जरुर चुकाउंगा
मैं अपना एक हाथ काट कर दूंगा तुम्हें
फिर तुम आराम से बैठकर ताजा गोश्त खाना

ओ पूर्व दिशा से आते पवन
तुम मेरे लिए क्या लाये हो.?
क्या तुम मेरी प्रिया की सांसों की खुशबू लाये हो.?
जल्दी दो मुझे
कहाँ छुपाई है तुमने.?
तुम्हारे जैसे आवारा का क्या भरोसा
कहीं रास्तें में ही बहा न आये हो..!!
यदि ऐसा हुआ होगा तो मैं तेरी जान लें लूंगा
मेरी एक चीख से तुम बहरे हो जाओगे
मेरे एक आंसू में सब डूब जायेगा

ओ आसमां में भटकती सफेद बदरी
मुझे पता है तुम्हारा कोई चाहनेवाला नहीं है
तुमसे कौन दुलार करें. ?
तुम जो बेमौसमी  हो
बांझ... जल विहीन
पर तुम मुझ पर एक एहसान करो
तुम मेरी प्रियतमा के पास जाकर
अपने आप को निचोड़कर
कुछ शीत जल बूंदो से उसे भीगो दो
मेरे प्यार का उसे स्पर्श कराओ
मैं तुम्हारे पर हजारों कविताएँ लिखूंगा ओ सफेद बदरी...
मैं भूमध्य सागर पर तुम्हारा नाम लिखूंगा

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ओ मेरी वेलेंटाइन

ओ मेरी वेलेंटाइन
मेरे आनंदसागर में सूर्यास्त हो गया है
मुझे ज्ञात है
ये काली अंधेरी रात समाप्त हो जायेगी
फिर से सूर्योदय होगा
इस अंधेरी कालरात्रि में दीप बनकर
तुम मेरा जीवन प्रकाशनें आ........

ओ मेरी वेलेंटाइन
मुझमें बह रही नदी सूख गई है
नदी की सूखी रेत में तडप रही है
अरब सागर की रंगबिरंगी मछलियां
और किनारे पर बैठे हैं प्यासे पंछी
इस सूखी नदी में
जल बनकर तु बहने आ.......

ओ मेरी वेलेंटाइन
मेरे सुवर्ण इतिहास पर
समय की राख जम गई है
मुझे अतीत का गर्भपात करके
सुवर्ण दिनों को जन्म देने का सुनहरा ख्वाब नहीं देखना
तुम मुझमें भावी इतिहास का
बिज बोने आ......

ओ मेरी वेलेंटाइन
सिर्फ मेरी देह ही नहीं
मेरे विचार भी कैद हो गये हैं
मुझ पर चुन दी गई है जेल की मजबूत दिवारें
मुझे विश्वास है.
मैं ये कैद तोड दूंगा
और ध्वंस कर दूंगा जेल की मजबूत दिवारें
तुम मेरी भुजाओं में बल बनकर आ......
भस्म कणों से धूमिल मेरे चेहरे को धोने
जल अंजुली बनकर आ.....

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मेरे घर पर गीध बैठा है और दूसरी कविताएँ

 मेरे घर पर गीध बैठा है


दो दिनों से दिवारें कोमा में थी
अब ठंडी होकर जम सी गई है
कल तक सुर्ख थी पर अब पीली हो गई है
ऐसे धडकती थी कुछ दिनों पहले
कि जैसे धडकता है दिल सोलह साल की लडकी का
पहली बार प्यार होने पर...

खिडकीयों के बहे थे आंसू
जब अगले शुक्रवार को लाल बुलबुल बतियाने आया था
अभी हाल संजू गिलहरी खिडकी पर खडी खडी रो रही है
और दरवाजे से दौड कर आया डीके डॉगी
भौंचक, भौंकता, रीरीयाता हुआ...
दरवाजे से बह कर बहार जाता खून अब थम गया है

छत की नजरें आसमां में टिकी की टिकी रह गई है
हवा हो गए हैं सारे ख्वाब
और रंग डूब गए हैं अंधेरे के गर्त में
जो धहाड़ कर जंतुओं का शिकार करती थी कभी
वो छिपकली छत से छूट गई हैं आज

चैन से सो गए फर्श पर कान सटाया मैंने
आखिरी विदाई गीत गा रही थी जमीं
अभी अभी मैंने हाथ लगाकर जांचा
और  मृत घोषित किया घर को........

बाहर आकर देखा
मेरे घर पर गीध बैठा है...

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कारावास के काले स्याह पत्थरों
तुम केवल मेरी देह को कैद कर पाओगे
मेरे आत्मबल, मेरे ख्वाबों, मेरे विचारों को
कैसे कैद कर पाओगे.??

मेरी आजादी को कुचलना चाहते ओ सत्तादिशो
मेरे आत्मविश्वास की गदाएं
तुम्हारे कारावासों को मलबे के ढेर में बदल देंगी

मेरे ख्वाब
तुम्हारे क्रूर दमन को
सुलगती अग्न ज्वालाओं में फेंक देंगे

मेरे विचार
तुम्हारी सरमुखत्यार शाही को
जूतों की लोखंडी ऐडीयों से कुचल देंगे

फिर जब मैं आजाद हो जाउंगा
तो अपने देश के बच्चों को
शहीदों की कविताएँ सुनाऊंगा..
और बताउंगा उन्हें
कि अपनी आजादी से मूल्यवान, महत्वपूर्ण और कुछ नहीं

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महलों की दिवार दिवार
रंगी हुई है
कारीगरों के लाल खुन से

फैक्टरियों की चिमनियां
धुआँ उगल रही है
मजदूरों का
जिस्म जला जलाकर

भोजन की थाली थाली में
सुंगध है
किसानों के भीगे पसीने की

फिर भी
सबकी थाली सजाने वाले
किसान की थाली खाली है

शहर, गांव भर के मकां, महल बनाने वाले
कारीगर के सर पर छत तक नहीं

मीलों में से मजदूर के खुरदरे हाथों से बने मुलायम कपडे
कभी उसके बदन नहीं पहुँचे

किसान और कितना दूर है रोटी से.?
कारीगर के सर और छत के बीच और कितना फासला है. ?
मजदूर कफन से पहले क्या कभी ढक पायेगा अपना देह. ?
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एक काव्य- ओ किसान

ओ किसान


ओ किसान
उठो, और ललकार करो
अपना हल उठाओ
अपना बल दिखाओ
छीनने आऐ है तेरी जमीं
कुछ शाहुकार, हुक्मरान
चलो, उनका प्रतिकार करो

बहला फुसलाकर
या फिर धमकाकर
हथियाना चाहते हैं
वोह तेरे हरे भरे खेत

फिर वोह
तेरे खेतों का सीना चीरकर
वहां लगाएंगे बडी बडी फैक्टरीयाँ
और कैद कर लेंगे हरियाली सारी
सिमेंट कंक्रीट की दिवारों में

ओ किसान
वोह छीनने आऐ है
तेरा निवाला
तेरे बच्चों का भविष्य
तेरे अन्नदाता होने की पहचान
वोह ले लेना चाहते हैं
तेरे पास सुरक्षित रखी हुई हरभरी
हमारे देशकी स्वस्थ सांस

वोह तेरे मेहनती हाथों से
चुरा लेना चाहते हैं काम
कर देना चाहते हैं तुझे बेकार
और फिर तेरी श्रमशक्ति को
डुबा दिया जायेगा शर्म में

ओ किसान
कह दो चिल्ला चिल्लाकर
इन शाहुकारो और सत्ताधीशों को
कि हम नहीं चाहते
हमारे धान्य से बदबू आऐ मानव खून की
और मिट जाए अन्न से
हमारे पसीने की खुश्बू
नहीं चाहते कि
बदल जाए स्वाद इनसानों की थाली का

और कह दो कि
हमारी कुदालों से डरो तुम
हम नहीं चाहते कि हमारे खेतों में मानव खाद
और नहीं चाहते कि
हम किसान से बन जाए हत्यारे

ओ किसान
हाथ में कसके थाम लो तुम्हारें गोफन की डोरी
और अपनी गोफन से
उछाल फेंको कोसो दूर समंदर में
उनके ताज, तख्त
अपने मेहनती मजबूत हाथों से
मसल दो उनके नामुराद इरादे

और
उनकी लालची आंखों से
छिन लो सौदेबाजी के ख्वाब
और अपने धान से
भर दो मुंह उनके
तब तक
जब तक ऊब ना जाए
वोह अपनी गिधडभप्कीओ से
कि हारकर
फिर कभी ना करें अपनी कुदृष्टि
तुम्हारे खेतों पर, तुम्हारी जमीं पर

ओ वनवासी
चडाओ अपने धनुष पर बाण
छीन लो उनकी साँस और रूह तक
जो धोखे से तेरे झरने चुराना चाहते हैं
अपने भालों को पिरो दो
उनकी पापी देह में
जो तीड़ बनकर तेरे जंगलो को निगल जाना चाहते हैं

अपनी हुंकार से
खौफ पैदा करो
कि फिर वोह तुम्हारी जमीं की तरफ
बुरी दृष्टि से देखे तक नहीं
और तुम काट दो उस हर हाथ को
जो तेरे पहाड़ों से
महंगा खनिज चुराने आगे बढता है

ओ चरवाहे
अपने कंधे पर रखी लाठी पर पकड जमाओ
और तोड दो मुंह उन जानवरों का
जिसने तेरे पशुओं के हिस्से की
घास खा ली
उन सबकी कब्रें खोद दो
जिसने तेरे
हरे घास से लहराते मैदान खोद दिये

डूबो दो तुम उनको
जो सुखा देना चाहते हैं
तेरी नदियों और झीलों को
और फिर
उन दुष्टों की कब्रों पर तुम सुनाओ
इनसानियत के गीत, प्रकृति का संगीत
ताकि उनमें मरा हुआ इंसान कभी जिंदा हो सके

ओ किसान, चरवाहे, वनवासी
उठो,  अपने अधिकार मांगो
आततायियों का संहार करो......
उठो, मिट्टी का जयजयकार करो.....

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चार प्रेम कविताएं

रात के प्रथम पहर में
मैं तुम्हारी ऐडीयां चूमता हूँ

रात के मध्यम पहर में
मैं तुम्हारा पेट चूमता हूँ

रात के अंतिम पहर में
मैं तुम्हारे होठ चूमता हूँ

मैं हर रात को बस ऐसे सोता हूँ

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उसने कहा
जब तुम अपनी खुरदरी उंगलियों से
मेरी पीठ को छूते हो
मैं गुलाबी हो जाती हूँ

मैंने भी कह दिया
जब तुम मेरे सूखे होंठों पर होठ रखती हो
तब मैं हरा हो जाता हूँ

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ओ मृदुबाला


ओ मृदुबाला.....
सुवर्ण महल में कैद सुभांगी...
उड जाओ पिंजरे से
और आजाद हो जाओ

आओ लाल चावल के मुल्क में
चारा चुगने
जहां सिंधु तट की कुंजे
तेरे सुर से सुर मिलाऐंगी
सा  रे  गा  मा  पा..... सा  रे  गा  मा  पा....

और आना
थोडे दूर दक्षिण में सीमा के उस पार
अरब सागर और सिरक्रिक के बीच जो डेल्टा है
चिकारा अभ्यारण्य...
यहां की खुबसूरत हिरनों के साथ
मृंदग पर कथक के ताल मिलाना
त थै, ता थै....  त थै, ता थै.... तिग्धादिग्दी थै.....

और आना वहाँ
बिलकुल पास में जो किल्ला है
लखपत...
जहाँ तेरे नुर से मिले ऐसा नुर रहता है
हाँ,  वहाँ रहती है बार्बरादेवी
तुम दोनों अपने नुर को वहां की फलदायी जमीन में बो देना
ताकि जमीं से फुट फुट कर उग निकले बार्बरेय

ओ मृदुबाला....
बंगाल की खाडी की मत्स्यकन्या.....
उगते सूरज के पीछे पीछे चली आना
जहाँ सूरज डूबता है वहाँ
सिंधु और अरब सागर के संगम पर
एक बार्बरेय डेरा डाले बैठा है
इंतजार कर रहा है
वो मत्स्यकन्याओं आशिक हैं...

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तुम एक जख्म दो


तुम एक जख्म दो
फिर जख्म पर
नमक छिडको..
हाँ,  कभी कभार मिरची भी चलेगी

तुम मुझमें आग लगाओ
हवा बनकर आग को फैलने दो
आग में थोडा धी डालों...
जलन अंग अंग में फैलनी तो चाहिए न..!!

तुम ऐसा हर दिन करो
मैं नहीं रोकूंगा
सिर्फ तुम आओ प्रिय
बस तुम ऐसा हररोज करने आओ......

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तीन कविताएँ

केवल बुद्ध जाग रहा है 


सब सवाल कर रहे हैं
बुद्ध जवाब ढूँढ रहा हैं

सब शोर मचा रहे हैं
बुद्ध मौन हैं

सब जिंदा हैं
बुद्ध जी रहा हैं

सब चल रहे हैं सर झुकाएं
बुद्ध उड रहा है सर उठाएं

सब खडे हैं
बुद्ध बड रहा हैं

सब उत्तेजित है,  अस्तव्यस्त हैं
बुद्ध शांत है

सब उदास हैं, रो रहे हैं
बुद्ध मुस्कुरा रहा है

सब सो रहे हैं
केवल बुद्ध जाग रहा है

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कस्बाई किसान की कब्र पर कुत्ते भौंक रहे हैं



अगले महीने शादी है बेटी कमली की
लडके वालों को एक मोटरसाइकिल भी देना है दहेज में
पूरे गांव को भी दावत खिलाना होगा
कमली के बापू हो जायेगा, फसल कटाई तो हो... कोई फिकर नहीं

हाँ... बाबूजी की आंखों का ईलाज भी करवाना है
मोतियाबिंद हुआ है जमणी आंख में
घर के उपर नये खपरैल भी डलवाने है
बारीश में पानी टपकता है पूरे घर में
कमली के बापू हो जायेगा, फसल कटाई तो हो... कोई फिकर नहीं

बबू को शहर भेजना है पडने कालेज
बारहवीं पूरी किये हैं अच्छे मार्क से हाल
पचास हजार पैये भी भरने है शेठ सुखीराम के
कर्जा दिये थे खेत खडने के टाईम
कमली के बापू हो जायेगा, फसल कटाई तो हो... कोई फिकर नहीं

                   • • • • •

बिन मौसम काहे बरसी डायन ??
ख्वाब सब गल गये, फसल बह गई
अब मुंह कैसे दिखाई ?
चलो फांसी लगाके मर जई..

हल की आंखों से आंसू बह रहे है
कस्बाई किसान की कब्र पर कुत्ते भौंक रहे है

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 जन्मदिन पर माँ


जन्मदिन पर माँ ने चुम्मा सर
और कहां; "तुम हीरे की तरह चमकना"
मैंने मुंह चढाकर कह दिया
"हीरा सख्त और कठोर होता है
एक पत्थर जैसा
मुझे नहीं बनना हीरा वीरा..."

मैंने माँ की आँखों में देखा
उन आंखों में झांका एक आसमान
और मैंने झट से कह दिया;
में बनूंगा एक परिंदा
जो उडता रहेगा उंचे आसमान में

माँ ने फट से आंखे बंद कर दी
बोली;  "नहीं.. परिंदा नहीं.. परिंदा नहीं.."
शिकारी ज्यादा है चारों तरफ
और अक्सर परिंदों का शिकार करते रहते हैं...

तुम मेरी कोख में ही छिपे रहना
की तुम मेरे पुत्र ही बने रहना....
(मुझे अपने सीने से लगा लिया चूमते हुए माँ ने... .)

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ट्रक यात्रा - 19

#उपसंहार

ट्रक यात्रा जब मैंने शुरू की थी तब काफी उत्साहित और जोश में था। एक अलग तरह की जर्नी और अनुभवो के रोमांच के साथ साथ सामान्य जीवन की जद्दोजहद से होकर गुजरना था इस दौरान।  देश के एक बडे और सामान्य कामदार वर्ग को नजदीक न सिर्फ जानना समझना मिल रहा था बल्कि उनका जीवन जीना और कार्य सीखना भी मिल रहा था। हमारे देश में मजदूरों, किसानों के सिवाय ट्रक ड्राइवर और खलासी वर्ग ही कामदारो में तीसरे स्थान पर है। न कि सिर्फ हमारे देश में पर पूरी दुनिया में ट्रक ड्राइवरों का वर्ग मजदूरों और किसानों के सिवाय सबसे ज्यादा तादाद में होगा।

इन ट्रक ड्राइवरों और खलासीयों की भी अपनी समस्याएं हैं, मुश्किलें है। सबसे पहले देखा जाए तो  ट्रक ड्राइवरों के सडक अकस्मात सबसे ज्यादा होते हैं।  इनका कार्य बहुत ज्यादा ही रिस्की है। अकस्मात में मृत्यु हो जाने के बाद इन ट्रक ड्राइवरों के परिवारजनों का कोई आधार नहीं बचता। गरीब परिवार में कमाने वाला ही चला जाए तो फिर परिवार की हालत बुरी तरह से प्रभावित होती है। मैंने इन दिनों में जाना कि हमारे देश में  95 %  ट्रक ड्राइवरों के पास जीवन विमा नहीं होता.!! हाँ, भाई 95 %... सरकार को और हमारे समाज को  इस बारे सोचना चाहिए। ये एक बडा और अहम मुद्दा है। सरकार को किसी योजना के तहत इन सब ट्रक ड्राइवरों,  खलासीयों की जीवन बीमा पॉलिसी बनवानी चाहिए ताकि कभी किसी अकस्मात में ट्रक ड्राइवर की मौत होती हैं तो उसके परिवार को आर्थिक सहायता मिले जिससे उनका जिवन ठीक से बसर हो सके।

मैंने यात्रा के दौरान देखा है कि ज्यादातर ड्राइवर रोज कम से कम बीस तीस रुपए किसी मंदिर, मस्जिद,  दरगाह पर या किसी भिक्षु को दान में देते हैं। यदि यही पैसा किसी योजना के अंतर्गत किसी जीवन विमा पॉलिसी में लगाया जाये तो काफी सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं।इनके इन पैसों की बचत होने से जरुरत के वक्त काफी मदद मिल सकती है।  हालांकि ज्यादातर ड्राइवर अशिक्षीत होते हैं उन्हें ऐसी दान न देने और बचत करने की योजना के बारे में काफी मेहनत करके समझा बुझाना होगा.!!

एक और बडी समस्या है इनकी की यात्रा के दौरान इनकी प्राथमिक जरूरतें पूरी न होना। जैसे कि नहाना, धोना, सोना।  इस के लिए मुख्य सडक मार्गों पर हर पचास सौ किलोमीटर पर इन के लिए सोने और नहाने धोने की व्यवस्था भी होनी चाहिए। सरकार को ड्राइवरों के लिए जगह सडक पर सेल्टर बनाने चाहिए। इन लोगो में मैंने देखा है कि काफी डर होता कि कहीं कोई ट्रक लूट लेगा या कुछ चोरी हो जायेगी तो.!!  दरअसल इनका ये डर थोडा ज्यादा जरूर है पर इनकी असुरक्षा की भावना बेबुनियाद बिल्कुल नहीं है। सरकारों को इन सब बातों पर ध्यान देना चाहिए और कुछ अहम कार्य करना चाहिए।

मुझे इस यात्रा में कई बार न सिर्फ गगजी पर गुस्सा आया पर बीच में यात्रा छोड कर वापस घर लौट जाने का भी मन किया। एक तो बहुत दिनों तक नहाये धोये बिना रहना,  दुसरा पंचर के समय हालत खराब हो जाना,  तीसरा स्त्रियों के प्रति इन ड्राइवरों का रवैया और सोच.... और भी कुछ ऐसी चीजें थीं जो गगजी और अन्य ट्रक ड्राइवरों के प्रति एंव ट्रक यात्रा के लिए मेरे अंदर घृणा उत्पन्न कर रही थी।

मैंने इस दौरान ये भी देखा कि पुलिसवालों का रवैया सामान्य लोगों से किस तरह बेहूदा और घटिया होता है। पुलिस इन ट्रक ड्राइवरों से अच्छे से व्यवहार क्यों नहीं कर सकती.? क्यों इन्हें कीडा मकोड़ा समझा जाता है,  जैसे कि कोई अपराधी हो ये .!!  ये किसान, मजदूर,  ट्रक ड्राइवर सब हमारे देश की प्रगति और विकास का इंधन है। हमारे समाज के जीवन की खुशहाली इन्ही लोगों से है। ये हमें अनाज देते हैं,  हमारे लिए घर बनाते हैं,  हमारी जीवन जरुरी चीजें हम तक पहुंचाते हैं। हमें इन सबका सम्मान और आदर करना चाहिए।

मैंने देखा कि ट्रक ड्राइवरों और खलासीयों में समलैंगिक संबंध या वेश्याओं के साथ शारीरिक संबंध  काफी ज्यादा है। इससे AIDS फैलने का भी खतरा बड जाता है, इन्हें इन सब चीजों की शिक्षा देनी चाहिए और कंडोम आदि का इस्तेमाल करने की भी सीख देनी चाहिए।

ये यात्रा मेरे लिए एक बडी उपलब्धि थी। मैंने काफी कुछ नया जाना और सीखा। काफी कुछ अच्छे, बुरे अनुभव हुए। अपने आप में बेफिक्र,  बेवजह,  बेवक्त कहीं भी चले जाने के लिए साहस और मजबूत हुआ।  इस दौरान एक बडे कामदार वर्ग को नजदीक से जान पाया,  समझ पाया और जी पाया ये सबसे बडी उपलब्धि थी मेरी। हालांकि इन चार दिनों में बहुत कम ही अनुभव हुआ होगा इन ड्राइवरों के जीवन का पर जो कुछ भी अनुभव मिला ये बहुत अहम था मेरे लिए।

यात्राएं दुखद हो या सुखद पर यात्राएं अनुभव, साहस,  सूझबूझ और ज्ञान ढेरों दे जाती है और यहीं असल में यात्राओं की उपलब्धि है.....

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समाप्त

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ट्रक यात्रा - 18

आगे अंजार गांव न जाकर बायपास से होकर हम भुज की ओर अग्रसर हो गए। बीच में छोटे बडे गांव,  कस्बे पीछे छूटते जा रहे थे। रास्ते में सापेडा, रतनाल, कुकमा आधी गांव आये पर हम कहीं भी रुके बिना चले जा रहे थे।   इस दौरान रास्ते में मैंने गगजी को बताया कि मैं अब इस दौरे के बाद आगे साथ नहीं चलूंगा। हम वापस पहूंचते ही में घर चला जाउंगा। यह सुनकर वो आंखे फाडकर मुझे देखने लगा जाहिर सी बात थी कि उसे यह अच्छा नहीं लगा। गगजी  मुझे कहने लगा कि पहले से ही बताना चाहिए न तुम्हें कि एक ही ट्रीप चलोगे,  मैं कोई अच्छा खलासी रखता।  बताओ अब मैं नया खलासी कहां से ढूँढकर लाऊं.!?  और फिर मुझे कहने लगा कि जब तक कोई और खलासी नही मिल जाता तब तक साथ रहो ट्रक में फिर चले जाना।  पर मैंने कह दिया कि नहीं भई, अब मैं आगे नहीं साथ आ सकता तुम्हारे। ट्रक यात्रा से ऊब चुका हूँ। कुछ देर तक चूप रहकर सोचने के बाद गगजी मान गया बोला कि ठीक है तुम्हारा मन नहीं है तो फिर चले जाना।

हम माधापर हाईवे से होते हुए भुज आ पहूँचे। भुजिया पहाडी की बगल में जथ्थाबंद बजार है भुज का,  वही पर हमें ट्रक खाली करना था। दूकान वाले को फोन करके बता दिया गगजी ने  कि माल लेकर ट्रक आ गया है,  जल्दी आ जाओ। हमने आसपास पूछताछ करके दूकान ढूंढ ली, और दूकान के सामने ट्रक लगा दिया अपना। इतवार होने के कारण बाजार तो पूरा सुनसान था बस कुछ मजदूर बैठे थे और तास खेल रहे थे। ट्रक की तालपत्री, रस्सियाँ खोल कर ठीक से केबिन की छत पर बांध दिया हमने। इतने में दूकानदार भी अपने मजदूरों लेकर आ गया। आते ही मजदूर ट्रक खाली करने लग गए।

ट्रक खाली हो रही तब तक हम पास एक के पैड नीचे छांव में बैठे रहे। गगजी ने ट्रक मालिक को भी बता दिया कि ट्रक भुज आ गई है और बाजार में खाली हो रही है उसके आगे क्या करना है,.? तो ट्रक मालिक ने कहा कि जब तक ट्रक खाली होती है तब तक मैं कुछ पूछताछ करके फोन करता हूं। कुछ ही देर में ट्रक मालिक का फोन आया और उसने बताया कि पास में कहीं ओईल मिल से खाद्य तेल भरना है,  खाली होते ही ट्रक को ओईल मिल ले जाकर खाद्य तेल भरकर फिर बीकानेर खाली करने जाना है। गगजी ने बहाना बनाते कहां की मेरे साथ का खलासी जा रहा है घर, फिर अकेला मैं कैसे जाउं इतने दूर बीकानेर.!? ट्रक मालिक ने कहा कि दूसरी एक ट्रक का खलासी बैठा है उसे लेकर जाना अपने साथ। और गगजी को कुछ शांति हुई..

एक बज रहा था दुपहर का,  जोर की तेज  धूप पड रही थी और भुख भी काफी लगी थी पर अब तक ट्रक खाली नहीं हुई थी। हम मजदूरों को बता कर पास वाले ढाबे पर खाना खाने चले गए। सोचा कि जब तक ट्रक खाली होगी तब तक हम खाना खा लेते हैं। खाना बडा अच्छा था,  मक्खन और दही भी था तो मेरी तो जैसे लॉटरी लग गई, दबा दबाकर पेट भर खाना खाया। वैसे भी अब गगजी ट्रक यहां से बीकानेर ले जा रहा था तो ये हमारा साथ आखरी खाना था। मुझे अब गांव लखपत के लिए आगे बस में जाना पडेगा।

हम खाना खाकर वापस आये तब तक ट्रक खाली हो गई थी। ठीक का डाला बांध कर हम निकले वहां से। वहां से गगजी ने मुझे आरटीओ रिलोकेशन साईड पर चौराहे पर उतारा, अलग होते मैंने और गगजी ने हाथ मिलाये और मैं अपना बैग लेकर नीचे उतर गया। गगजी ने चार दिन का मेरा खलासी का वेतन देना चाह पर मैंने लिया नहीं। और हम अपनी अपनी मंजिल की ओर चल दिए।

वहां से मैं ऑटो रिक्शा से भुज बस स्टैंड आया। बस डिपो में पूछने पर पता चला कि लखपत के लिए बस साडे चार बजे है, चार बज रहे थे अभी आधा घंटा और इंतजार करना था। कुछ देर में वहां बैठा रहा  इतने में बस आ गई, जोकि बस दस मिनट लेट थी। मैंने बस में अपना बैग रखा और खिडकी वाली सीट पर बैठ गया। ज्यादा सवारियाँ नहीं थी बस में,  आधे ज्यादा बस खाली थी। दस मिनट के बाद बस चल दी वहां से.... बस कंडक्टर से टिकट लिया अपना, भुज से लखपत का किराया 123 रूपये हुआ। बीच में तीन अलग अलग जगह बस रुकी वहां चाय पानी किया,  कई गांव होते हुए बस रात को नौ बजे अंधेरे में लखपत पहूँची। लखपत से आगे बस जाने वाली नहीं थी जबकि मैं वहाँ और सात किलोमीटर दूर रहता था। अब रात को कोई वाहन मिलने वाला नहीं था, आगे पैदल ही चलकर जाना था।  पैदल चलते चलते मुझे बैग का वजन इतना ज्यादा लग रहा था कि सोचा बीच में ही बैग फेंक दूं कहीं पर... पर धीरे धीरे दो घंटे चलने के बाद मैं रात को सवा ग्यारह बजे मैं अपने घर पहुंचा... चलते चलते काफी थक गया था और रात भी काफी हो गई थी तो अब खाना क्या बनाता.!! और वैसे भी भुख नहीं थी तो खुले आसमान के नीचे  चद्दर तान के सो गया ....

________________________________________________

............ जारी

* फोटो नोट-

फोटो -1,2- आरटीओ रिलोकेशन साईड भुज चौराहे पर रस्सी पर चलकर खेल दिखाती एक सात आठ साल की बच्ची

ट्रक यात्रा - 17

हम आरटीओ चेकपोस्ट से निकल कर आगे बढ चले। मुझे अब नींद आने लगी थी पर गगजी ने कहां अब तो भचाउ पहूंचने आये हैं तो थोडी देर और जाग लो फिर वहां पहुंच कर सो ही जाना है। थोडी देर में हम भचाउ आ गए। गांव पूरा सो रहा था, बस कुछ कुत्ते चौकीदारी का फर्ज अदा कर रहे थे। हम गांव की बीचो बीच मुख्य सडक से धीरे धीरे जा रहे थे। आसपास देख रहे थे कि कोई व्यक्ति मिलता है तो उससे उस जगह का  पूछते जहाँ हमें ट्रक का माल उतारना था। रात थी तो कोई नहीं दिखा आसपास, मैंने बिल्टी में अड्रेस देखा पर उस जगह का कहीं बोर्ड नहीं दिखा  और न समझ आ रहा था कि कहां पर वो जगह। इतने में एक बाईक वाला निकला उससे पूछा तो उसने बताया कि सामने जो सकरी गली जैसा रास्ता है उसमें घूस जाओ, उससे आगे बडा चोक है वहीं पर दूकान है। ट्रक सकरी गली में घुसकर आगे आते ही जय माताजी नामक चोक आ गया। अड्रेस वाली दुकान के सामने ट्रक खडी कर दी। भोर के साडे चार बज रहे थे, दुकान तो सुबह ही खुलनी थी और तब ही ट्रक खाली होना था तो फिर हम दोनों सो गए।

मैं ट्रक की छत पर सोया था पर मच्छर बहुत सारे थे। मच्छरों की वजह से बार बार नींद खुल जाती। सुबह सात बजे ही लोगो चहल पहल शुरू हो गई।  हम दोनों भी उठ गये और वहीं पास में ही चाय का ठेला था वहां चाय पीने गए।  हाथ मुँह धोकर चाय पी। चोक में लोग आ जा रहे थे। मजदूर अपने काम के लिए निकल रहे थे,  ठेले पर सब्जी लेकर सब्जी वाले गांव में चक्कर लगाने निकल पडे थे। आज इतवार था तो बजार खुलनी नहीं थी पर मजदूरों के लिए क्या इतवार क्या त्योहार. !?  पेट इतवार को छूटी नहीं पालता न.!!

हमने दुकान वाले को फोन करके बताया कि माल लेकर आये हैं तो दुकान वाला जल्दी जल्दी मजदूर लेकर आ गया। आज इतवार होने के कारण बाजार पूरा बंद था इसलिए ट्रक को कोई दिक्कत नहीं हुई वरना बहुत भीड की बजह से बार बार ट्रक लगाना हटाना पडता। गगजी ने गोदाम पर ट्रक लगाया और फिर मजदूर खाली करने मे लग गए। इस दौरान हम चाय के ठेले पर बैठकर चाय पर चाय घटकते जा रहे थे।  एकाद घंटे में भचाउ का माल उतर गया। अब ट्रक में आधा माल बचा था भुज का। हमने फिर से तालपत्री और रस्सियां खींच कर बांधी। नौ बज रहे थे सुबह के, हम भचाउ से बाहर निकले और हाईवे पर आ गए। मैंने गगजी से कहा कि भई कहीं भी होटल पर ट्रक खडी करना मुझे नहाना है, चार दिन से नहाये नहीं है, अब तो अपनी सकल भी पहचानी नहीं जाती। आज चौथा दिन था मुझे नहाये हुए को,  जब हम निकले थे तब नहाया था। शरीर से बदबू आ रही थी। पूरे शरीर पर मेल जम गया था और कपडों की हालत तो भिखारियों जैसी हो गई थी। आगे हाईवे पर पहली ही होटेल पर ट्रक खडी की,  वहां होटेल के पीछे खुला स्नानघर था, चार पांच नल लगे हुए थे। कई दिनों बाद नहाने को मिला था,  मैं तो घंटा भर नहाता रहा पर गगजी तो नहाकर जल्दी चला गया। हमने मेले कपडे भी वहां धोये। नहा धोकर होटेल पर चाय बिस्कुट खाये। साडे दस बजे हम ट्रक लेकर आगे के लिए रवाना हुए। नहाने के कारण शरीर ताजातरीन हो गया था और सारी सुस्ती उड गई थी।

टोल टैक्स बचाने के लिए गगजी अंजार के रास्ते चल दिया,  ये रास्ता लंबा था पर गगजी को डीजल की बर्बादी से ज्यादा टोल टैक्स बचाकर जेब भरने में रुचि थी। ये रास्ता काफी खराब था, बीच के गांवों से होकर जा रहे थे तो कभी कभार ही कोई वाहन आता जाता दिखता। बीच में एक बहुत सुंदर और स्वच्छ गांव आया भीमासर..  सुना हैं कि पूरे भारत में इस गांव को आदर्श गांव का अवॉर्ड मिला हुआ है,  पता नहीं कितना सच है पर वाकई गांव काफी स्वच्छ था और  हरियाले वृक्षों से हराभरा था।

कुछ आगे जाकर वरसामेडी गांव के पास सडक पर वेलस्पन कंपनी आई। बहुत बडे से विस्तार में फैली हुई है, सुना कंपनी में दो हजार से अधिक महिलाएं काम करती है और महिला कामदार पूरी कंपनी चलाती है। ये  एक स्त्री सशक्तिकरण का बडा उदाहरण हैं.!!

कंपनी खासकर टॉवेल बनाती है और कपडे बनाती है।  इस कंपनी के टॉवेल पूरी दुनिया में विख्यात है,  विम्बलडन, युऐस ओपन जैसी टेनिस की खेल स्पर्धाओं में यहां के टॉवेल सेरेना विलियम्स से मारिया  शारापाॅवा और जोकोविच से राफेल नडाल, फेडरर तक उपयोग करते हैं। कंपनी के अंदर स्मारक जैसा बना हुआ है कुछ, दूर से सडक से दिखाई दे रहा है। चलती ट्रक से देखा हमने जबकि देखने का मन जरुर किया पर कौन गगजी से सर फोडे ट्रक रुकवाने के लिए. !!  कंपनी के मुख्य गेट पर एक बडे से पोल पर बडा सा तिरंगा आसमान में लहरा रहा था। इतना बडा लहराता तिरंगा प्रत्यक्ष मैंने पहली बार  ही देखा।

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........ जारी

* फोटो नोट -

फोटो -1,2- भचाउ से अंजार जाते बीच में आता रेलवे ट्रैक

फोटो -3, 4- ध हाईवे

फोटो-5- भचाउ की बजार में चाय का ठेला

ट्रक यात्रा - 16

रास्ता आगे  पूरा सुनसान था,  सडक पर ट्राफिक बिल्कुल ही नहीं था। कुछेक ट्रक, टेलर थोडी थोडी देर बाद आ जा रहे थे बस। तेज हवा चल रही थी तो थोडी ठंड भी लग रही थी। रास्ते में वांकानेर से कुछ पहले अकस्मात हुआ था हमारे पहूंचने से कुछ देर पहले ही, वहां लोगों की भीड इकट्ठी हुई थी। वहीं सामने होटेल तीरथ करके था उसमें दो चार युवक खाना खाने आये थे उनकी बाईक को ट्रक वाले नें ठोक दिया था। किसी को कुछ लगा वगा नहीं था पर बाईक वाले ट्रक वाले को खडा कर दिया और बाईक में हुए नुकसान का हरजाना मांग रहे थे।

हम उन्हें किनारे छोड कर आगे बढ गये। कुछ आगे चलकर मेरा पेट थोडा थोडा दुखने लगा और पेट में से गुडगुडगुड करती आवाजे आने लगी। फिर कुछ देर में मुझे भारी प्रेशर आया था तो मैंने गगजी से कहा ट्रक खडी कर दो साइड में कहीं।  पर तब तक वांकानेर की रिहायशी बस्ती शुरू हो गई थी। गगजी ने कहां थोडी देर दबा कर रखो वांकानेर पार करके कहीं खडी रखता हूं ट्रक। ये सब उस घटिया खाने की वजह से हुआ था। मैं मन ही मन कोस रहा था उस होटेल वाले को।  वांकानेर के बगल वाला टोल प्लाजा पार करके पास के ही चाय के ढाबे पर ट्रक खडी करवा दी मैंने। मैं जल्दी जल्दी नीचे उतरा और भागा। वहां शौचालय तो था नहीं तो एक बोतल में पानी भरकर मैं ढाबे के पीछे  खुले खेतों में घूस गया। आसपास पुरा खुला था पर रात थी तो कोई देखने वाला तो नही था.!!  खुले में हल्का होने का जो मजा है वो कतई बंद शौचालय में नहीं है.! अपने आप को बादशाह फिल करते हैं इस दौरान,  जैसे पूरा जहां अपना है.!!  हल्का होकर आने के बाद ठीक से हाथ धोये ढाबे पर,  गगजी वहां ढाबे पर पडी चारपाई पर लेटा पडा था। कुछ देर में चाचा चाय लाया हमने चाय पी।

रात को 1 बजा था, कुछ देर हम वहीं लेटे रहे ढाबे की चारपाईयों पर। ढाबे पर पास की एक चारपाई पर बडा सा काला कूत्ता सो रहा था और पास में नीचे जमीन पर एक सोलह सतरह वर्षीय लडका सो रहा था। पूछने पर चाय वाले चाचा ने बताया कि कूत्ता वफादार हैं,  और बहुत ही ऊंची नस्ल का है।  फिर वो उस कुत्ते के किस्से सुनाने लगा हमें.. उसके ढाबे का नाम शक्तिकृपा था और कुत्ते का नाम भी शक्ति रखा हुआ था.!! पता नहीं शक्तिकृपा नाम कुत्ते से प्रेरित था या शक्ति, देवी से...

थोडी देर के बाद हम वहाँ से आगे चले.. कुछ आगे चलकर बीच में एक जगह सुनसान सडक पर अंधेरे में तीन औरतें खडी थी, जो हाथ हिलाकर लिफ्ट मांग रही थी। पता नहीं वो इतनी रात को यहां सडक पर क्या कर रही होगी.!? और इनके अलावा कोई और पुरुष भी नहीं दिखा हमें आसपास। हमने ट्रक नहीं रोकी, आगे बढ गये। गगजी ने तो कहा कि कोई लुटेरे होंगे, जो औरतों के पीछे झाडियों में छिपे होंगे। ट्रक रोकने पर वो ट्रक वालों को लूट लेते हैं। पर मेरा अनुमान था कि शायद वो सेक्स वर्कर होगी और ट्रक रुकवाने के उनके इशारे भी तो ऐसे ही थे।

मोरबी के करीब पहुंचते ही चारों तरफ धुआँ ही धुआँ फैला हुआ था। दुर दुर तक उस धुँए की गंध आ रही थी। आसपास की ईंटों की भट्ठियाँ सुलग रही थी और वो तीव्र दुर्गंध वाला धुआँ उगल रही थी। मेरी तो सांसे फूलने आई और घुटन जैसा लगने लगा। पता नहीं यहाँ के रहवासी इस प्रदूषण में भी कैसे रह पाते होंगे.!? मोरबी के पास होकर ओवरब्रिज से हम माळिया, कच्छ की ओर बढते चले। माळिया से कुछ पहले ओवरब्रिज से ही राष्ट्रीय मार्ग नंबर 8  शुरू हो गया। अब सडक पर काफी तादाद थी वाहनों की। माळिया मुख्य मार्ग से काफी साइड में रह जाता है फिर भी इस विस्तार के सडक मार्ग को माळिया से ही जाना जाता है।  आगे चलकर कच्छ का प्रवेश द्वार सूरजबारी पूल आ गया।  जाते वक्त पूल पसार करते  भी रात का समय था और अब आते वक्त भी रात थी। पूल के बीचो बीच चलते हुए पूरानी फूल मालए आदि जो एक पोलिथीन बैग में गगजी ने इकट्ठा करके रखी थी वो  उसने नीचे समुद्र के पानी में फेंकी। मेरा ध्यान गया कि इतने में उसने फेंक दी थी। मन तो किया स्साले गगजी को भी एक धक्का मारकर पूल के नीचे पानी में फेंक दूं पर फिर याद आया कि मुझे ट्रक चलानी नहीं आती.. तो फिर बक्ष दिया उसे.!! ;)

सूरजबारी पुलिस चौकी पर अब भी देर रात तक पुलिस वालों को जागते हुए और कानून, व्यवस्था को मजबूत करते देख उनके प्रति सम्मान हुआ। ये और बात है कि ज्यादातर पुलिस के अच्छे अनुभव नहीं है मुझे पर फिर भी जो अपना काम समर्पण भाव से, ठीक से करते हैं  उनके प्रति मेरा सम्मान बढ जाता है। आगे सामख्याळी टोल प्लाजा पर लाइन लगी हुई थी, बीस पच्चीस मिनट लगे हमें वहां।  और वहां से आगे जाकर सामख्याळी आरटीओ चेकपोस्ट आया तो मेरी आँखें उस हिज़डे को ढूंढने लगी जिसने जाते समय काफी स्नेह दिखाया था मुझ पर। वो तो नहीं दिखा पर उसकी बिरादरी के दो ओर आये और गगजी से पैसे लेकर दुसरे वाहनों के पास चले गए।

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.......... जारी

* नोट - इस दौरान कोई फोटो नहीं खींचा गया ।

ट्रक यात्रा - 15



मुझे गगजी ने कहा हम इस बार बगोदरा, चोटीला, वाकानेर वाले रास्ते से जायेगें। मैंने कहा ये रास्ता तो बहूत लंबा पडेगा तो गगजी बोला डीजल शेठ का जायेगा अपना क्या है.!?और यहाँ से टोल प्लाजा कम है तो पंद्रह सौ, दो हजार तक रुपये बचेंगे सावळिंग। मैं फिर आगे कुछ न बोला और बोलता भी तो मेरी सुनता कौन !?  खलासी लेफ्टिनेंट होता है और ड्राइवर कमांडर.!!  ....और कोर्ट मार्शल भी तो हो सकता है न..!?

तालपत्री और रस्सियां बांधने से मैं बहुत थका हुआ था तो सीट पर पीठ टिकाये लेटा हुआ था। आगे बढते हुए रास्ते में कई छोटे बडे गांव, कस्बे आये और गुजर गए। बावळा, बगोदरा, मीठापूर जैसे बडे कस्बे भी आये बीच में और चले गए।हम लगातार गति से जा रहे हैं थे। बीच बीच में हममें कुछ बातचीत होती फिर हम बस रास्ता ताकते जाते और अपने ख्यालों और अपनी दुनिया में खोये रहते। एकाद जगह पुलिस का बुरा अनुभव भी हुआ। एक तिराहे पर पुलिसवालों ने लायसेंस, ट्रक के कागजात आदि मांगा तो गगजी ने सब दिखाया। फिर बोले चलो पांच सौ रुपये दो ऐंट्री के.!! गगजी बोला साहब कैसी ऐंट्री.? तो इतने में ही एक युवा और मूछों पर ताव देते बैठे पुलिसवाले को बुरा लग गया और गगजी को एक दो गालियाँ भी दी और तेवर दिखाते हुए परेशान करने के इरादे से बोला तालपत्री, रस्सियाँ खोल ट्रक चेक करनी है। तो डरकर और ज्यादा मेहनत और परेशानी न हो इसलिए गगजी ने दो सौ देकर मामला निपटाया। ये देखकर मैं नीचे गया और पुलिसकर्मीयों से कुछ अपने हिसाब से बातचीत की तो मूछों पर ताव देने वाला अब पूंछ पटपटाने लगा, कहने लगा सर पहले बताना चाहिये न, साॅरी..  और गगजी को पैसे भी वापिस किये। ये लींबडी से कुछ पहले हुआ ।

थोडे आगे चलकर लिंबडी के पास ट्रक खडी की गगजी ने। इस दौरान वो मुझे बार बार पूछता रहा कि पुलिसवालों से तुमने क्या कहा जो पैसे वापस दिये आखिर तंग आकर मैंने बताया कि मैंने उनसे जान पहचान निकाली तो बात बन गई.!!

रात के नौ बज रहे थे,  हम हाथ मुँह धोकर खाने बैठे। खाना बहुत घटिया था फिर भी काफी भूख लगी थी तो दबाकर अच्छे से खाया। मैंने तो खिचडी कड़ी ही ज्यादा खाई, सब्जी रोटी में तो कोई ढंग नहीं था। और होटेल पर खाना खाने आने वालों में शराबी ही ज्यादा दिखे मुझे। खाना खाकर दस पंद्रह मिनट बैठे फिर मैंने पानी की बोतले भर ली और ठीक से आगे वाले शीशे भी साफ किये। गगजी ने अपने भगवान की पूजा अर्चना की इतने तक और फिर वहां से हम आगे के लिए निकले।

बीच में गगजी को अपनी बहन का फोन आया, वो सुबह से बात करना चाह रही थी पर अब जाकर गगजी का संपर्क हुआ। आज राखी का त्योहार था तो भाई से बात की उसने। मुझे अब जाकर पता चला कि आज राखी थी,  जो अब बस पूरी होने वाली है। मैंने अपनी कहलाई देखी, अपनी  सूनी कहलाई को देखकर थोडा दुख भी हुआ और मन में हुआ की काश कोई मुझे भी राखी के दिन फोन करके याद करता। गगजी ने तो सुबह ही मेरे उठने से पहले ही अपने आप हाथ में राखी बांध ली थी,  वो ट्रक में घर से निकलते वक्त हफ्ते भर पहले ही बहन की राखी साथ लाया था।  मैनें  उसकी कलहाई की ओर अब जाकर देखा था जब फोन पर बातें कर रहा था अपनी बहन से।  मैं बीच रास्ते अपनी बचपन की स्मृतियों में खोया रहा और उन दिनों की राखी की यादें अपने अंदर सहलाता रहा।

ट्रक अपनी गति से बढता जा रहा था, बाहर दुर दुर तक चांदनी फैली हुई थी। चोटीला आकर गगजी ने ट्रक खडा किया,  हमने वहाँ चाय पी। इतनी रात को भी एक औरत और लडका भीख मांगने आये, गगजी ने दस रुपये दिये उन्हें। चाय पीकर हम फिर चल पडे..

चोटीला से आगे मुझे गगजी बार बार बता रहा था कि ये एरिया बहुत खराब है यहाँ अक्सर लूटपाट होती रहती है। और फिर सुने सुनाये कुछ किसे सुनाने लगा मुझे। मैं हम्म... हां... किये जा रहा था। मुझे इन ट्रक वालों की बडा चढा के झूठ फैलानी वाली और डराने वाली बातों पर सख्त गुस्सा आ रहा था।
सुनसान सडक पर ठंडी हवा के चलते खेतों की कच्ची उगाई धान की खुश्बू आ रही थी। हरियाली खुश्बू कलेजे तक अंदर जाकर तरोताजा कर देती थी। ये पूरा विस्तार नदियों,  झीलों,  और हर भरे खेतों का था। नदियाँ,  झीलें चंद्रमा की चांदनी में चमक उठती थी। ये काफी सुकुन दे रहा था।

आगे एक गोल घूमता ओवरब्रिज आया, वहां से एक रास्ता राजकोट की ओर जाता है और एक गोल घूमकर ओवरब्रिज चढते वांकानेर को जाता है। हम गोल घूमकर ओवरब्रिज चढते हुए आगे बढे वांकानेर की ओर...

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......... जारी

* नोट - इस दौरान आलस्य और थकान के कारण कोई फोटो नहीं खींचा

ट्रक यात्रा - 14

सुबह साडे सात बजे आंख खुली, देखा तो वो खलासी लडका वहां नहीं था। शायद मुझसे जल्दी उठ गया होगा। ट्रक में देखा तो गगजी भी नहीं था। वो भी उठकर शायद चाय पीने चला गया होगा। मैं होटेल की ओर गया तो देखा गगजी, वो खलासी लडका और दुसरे ड्राइवर वहां बैठे थे। मैंने हाथ मुँह धोया, मुझे ब्रश किये तो तीन दिन हो गए थे। हाथ मुँह धोकर उन सबके पास गया और फिर हम सबने मिलकर चाय पी जबकि वो जल्दी उठ गये थे तो पहले से ही एक बार चाय पीकर बैठे थे।

बैठें बैठें हम कई सारी बातें कर रहे थे और ठहाके मार रहे थे। वो सतरह वर्षीय खलासी लडका मुझसे काफी घुलमिल गया था। उसका नाम  भेरू था, राजस्थान के किसी गांव से था। उसे मेरे मोबाइल में विडियो देखने थे पर मेरे मोबाइल में विडियो नहीं थे। तो बोला गाणा सुनाओ बन्ना,  मैंने अपने मोबाइल में स्टोर लोक वाद्य,  लोक गायकों के गीत,  कविता पाठ आदि सुनाए पर वो सब उसे पसंद नहीं लगे। बोला कि कोई फिल्मी गाणे सुनाओ, पर मेरे मोबाइल में फिल्मी गीत नहीं थे।

इस दौरान बातों बातों में मैंने उन ड्राइवरों को इनडायरेक्टली धमकाया भी कि इस छोटे से लडके का  योन शोषण मत किया करो,  पुलिस में शिकायत दर्ज करा देगा तो जिंदगी भर जेल में सडोगे। पहले तो वो बता रहे थे कि हम कुछ नहीं करते इसके साथ आखिर फिर कहा कि जो हुआ सो हुआ आगे  ऐसा नहीं करेंगे। और वो लडका तो सर झुकाएं बैठा रहा कुछ भी नहीं बता रहा था, पूछने पर भी। पता नहीं कितना खौफ होगा उसे.!! बाद में अकेले में भी मैंने लडके से कहा कि वो ड्राइवर यदि तुम्हारा योन शोषण करते हैं तो पुलिस को बता दो, स्सालो की अक्ल ठिकाने आ जायेगी। पर वो खलासी लडका ऐसा करने से इनकार करते  हुए बोला कि एक तो इज्जत खराब होगी मेरी और फिर काम भी  तो उनके साथ ही करना है मुझे.!!  मैं सोच रहा था कि इस झूठी इज्जत और पेट के लिए कितने लडके लडकियां मजबूरी में योन हिंसा के शिकार होते होंगे जो कभी किसी को पता नहीं चलता होगा.!!  ग्रामीण क्षेत्रों में लडके लडकियों का बहुत सारा योन शोषण होता है पर यह मामले न पुलिस तक पहुंचते हैं न मिडिया तक। इज्जत के डर से और किसी मजबूरी वस मामला घर वालें ही दबा देते हैं।

कुछ देर बाद वो खलासी लडका और ट्रक वाले चले गए, उन्हें कहीं से ईंटें भरकर कच्छ रिटर्न जाना था। ग्यारह बज रहे थे कि इतने में गगजी को ट्रक मालिक का फोन आया कि असलाली से कुछ दूर माल भरना है। उसने हमें अड्रेस दिया और फिर हम माल भरने के लिए ट्रक लेकर निकल पडे। ओवरब्रिज के पास से राइट साइड मुड कर पांच सात किलोमीटर पर ट्रान्सपोर्ट नगर में एक गोदाम से माल भरना था। आईटीसी करके किसी ट्रान्सपोर्ट कंपनी का बडा गोदाम था वह।

गोदाम के गेट टर जाकर ऐंट्री करवाई ट्रक की, वहां चार पांच और ट्रक लोडिंग हो रहे थे इसलिए हम पार्किंग में ट्रक खडी करके बैठे रहे। करीब एक बजे हमारा नंबर लगा पर इतने में मजदूर खाना खाने चले गए। हम भी ट्रक लोडिंग पॉइन्ट पर लगाकर  आसपास कुछ खाने को ढूंढने चले। बाहर गेट के पास चाय का ठेला था उससे पूछा तो पता चला कि कहीं आसपास कोई खाने का होटेल, ढाबा नहीं है। तो फिर हमने उसी ठेले पर कुछ बिस्कुट, नमकीन वगैरह खा कर पेट भरा और उपर एक एक कप चाय पी कर पेट की भूख भगाई।

दो बजे मजदूर वापस आये और ट्रक लोड करने में लग गए। सब मिक्स माल सामान था। सिगरेट, बिस्कुट, साबुन, नूडल्स वगैरह... माल दो जगह का था आधा भचाउ का आधा भुज का। पहले भुज वाला लोड करने को कहा और पीछे भचाउ का। पांच सात मजदूर लगे थे,  सब बोक्ष उठाकर ट्रक में भरते जा रहे थे। एक ट्रॉली से माल का बडा जथा आता और फिर मजदूर उसे ट्रक में भरते। करीब चार बजे तक ट्रक भरा गया। वजन कम था पर माल की हाईट ट्रक की छत से उपर तक थी। बहुत मुश्किल से हमने माल पर पन्नी बिछाई और रस्सियां खींच कर बांधी। पन्नी बिछाते एक बार तो मैं गिरते गिरते बचा,  ऊपर से नीचे गिरता तो सब हड्डियां टूट जाती। रस्सियाँ बांधने, खींचने में हमारी हालत बुरी हो गई। गगजी तो मजदूरों को कोसता और गालियाँ देते रहा कि कितना माल भरा है.. कैसे भरा है..  ब्ला ब्ला ब्ला..   साडे पांच बजे हम बिल्टी जो पूरी माल लिस्ट के साथ थी उसे लेकर वापस कच्छ की ओर चल पडे।

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........जारी

* फोटो नोट -

फोटो-1- ट्रॉली जिस बहुत सारा भारी जथा माल सामान उठाया जाता है,  फोटो लेने के लिए वहाँ के सुपरवाइजर ने मना  फिर भी मैंने छुपकर फोटो खींचा।

फोटो-2- माल सामान पर तालपत्री और बांधी हुई  रस्सियां

फोटो-3- असलाली से वापस लौटते ओवरब्रिज का फोटो

ट्रक यात्रा - 13

हमारी ट्रक का नंबर आ गया था।  हम तुंरत ट्रक लेकर फैक्टरी के गेट पर आ गए। गेट के पास ओफ़िस में मैं बिल्टी लेकर गया। वहां पर ट्रक की ऐंट्री हूई और मेरा पहचान पत्र भी देखने के लिए मांगा गया। उन्होंने बिल्टी वहां पर ही जमा रखी कहा कि ट्रक खाली करके रिटर्न आयेगें तब मिलेगी।

ट्रक के अंदर जाने की मंजूरी मिल गई और फिर अंदर घुसते ही वहाँ स्थित वे-ब्रिज पर वजन चेक हुआ ट्रक का। वहां से हम ट्रक को कुछ दुर बॉयलर के पास खाली करने की जगह पर ले गये जो फैक्टरी के अंदर एक कोने में था। वहां पर दो ट्रक ओर खाली हो रहे थे। दो दो मजदूर मिलकर एक ट्रक खाली करते थे। ड्राइवर को ही मजदूरो को खाली करने की मजदूरी देनी होती थी। कोयले के उपर बिछाई पन्नी और रस्सी खोल कर और फिर समेट कर केबिन की छत पर बांध दिया हमने। बस फिर दोनों मजदूर कुदालें लेकर ट्रक खाली करने में लग गए।

पूछने पर मजदूरों ने बताया कि वो राजस्थान के पाली के पास के किसी गांव के हैं। रोज दो मजदूरो की एक जोडी को ज्यादा से ज्यादा तीन ट्रक मिलते खाली करने को। एक ट्रक के छै सौ रुपये लेते हैं खाली करने के। मजदूरी अच्छी खासी निकलती है पर रोज रोज तीन ट्रक नहीं मिलती। एक दो ही मिलती है और फिर महीने में आठ दस दिन छुट्टी भी तो होती है।

करीब ढाई घंटे में उन्होंने ट्रक खाली कर दिया तब तक मैं और गगजी सोये रहे ट्रक में। उन्हें छै सौ रुपये दिये और पीछे का डाला लगाकर हम फैक्टरी से बहार जाने को निकले। शाम को साडे पांच बज रहे थे, वे-ब्रिज पर फिर खाली ट्रक का वजन चेक हुआ। वहां से  फिर  गेट पर आकर बिल्टी ली उस पर ट्रक खाली हुई ऐसा एक सिक्का लगा दिया उन्होंने और हम फैक्टरी से बाहर आ गए। ठेले वाले के पास जाकर ट्रक खडी की और चाय पीने बैठ गए। इस दौरान गगजी ने ट्रक मालिक को फोन करके बताया कि ट्रक खाली हो गया है अब रिटर्न क्या माल भरना है.?  तो ट्रक मालिक ने बताया कि कहीं होटेल पर ट्रक खडी कर दो, तब तक मैं रिटर्न माल का जुगाड करके फोन करता हूं।

हम वहाँ से चाय पीकर निकले, आगे कहीं हाईवे होटेल पर ट्रक खडी करने की सोच रहे थे। आज पूरा शहर शांत दिख रहा था। शहर से निकलते हुए पसीने छूट गए ट्राफिक में हमारे। बाईक और ऑटो रिक्शा वाले पता नहीं कहां कहां से घूस आते बीच में। ट्राफिक सेन्स जरा सा भी नहीं अहमदाबाद के इन बाइकर्स और ऑटो रिक्शा वालों में। अकाद जगह तो एक एक्टिवा स्कूटर वाली आंटी मुझे धमकाते हुए और गाली देकर निकल गई.!! हाथनी जैसी दिख रही थी, पता नहीं स्कूटर कैसे बोझ उठा लेता होगा उसका.!!! छोटे वाहन चालक ऐसे हमारी ओर घूरकर देखते थे कि जैसे  ट्रक वाले रोड पर चलकर कोई गुनाह कर रहे हैं।

कुछ आगे जाकर असलाली कस्बे के पास ओवरब्रिज आया, यहां पर एक हाईवे होटेल पर हमने ट्रक खडा कर दिया। शाम के साडे सात हो रहे थे। ट्रक मालिक ने फोन करके बताया कि खाना खाकर सो जाओ सुबह कुछ होगा रिटर्न माल सामान का। मुझे नहाना था पर इस होटेल पर नहाने की कोई व्यवस्था नहीं थी। मैं दो दिन से नहाये बिना था, शरीर में पसीना खाये जा रहा था और कपडे भी एकदम मेले हो गए थे। हमने वाॅश बेसिन पर हाथ मुँह धोये और खाना खाया। खाना ठीक ठाक था और दही भी नहीं था वहां तो फिर मैंने खिचडी कड़ी पर ज्यादा जोर दिया। कुछ देर हम खाने के बाद वही बैठे रहे फिर कुछ देर बाद सोने के लिए ट्रक में गए। गगजी ट्रक की केबिन में ही सोया और मैं चद्दर और एक सीट लेकर केबिन की छत पर चढ गया। कुछ देर आसमान में तारे देखता रहा फिर कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।

आधी रात को पेशाब के लिए उठा तो देखा पास में कोई सोया हुआ है। मुझे तो आश्चर्य हुआ कि कौन है.!!! ठीक से देखा तो पता चला कि वो दुसरी ट्रक का वही सतरह वर्षीय खलासी लडका था। क्या था न कि रात को हमारे सोने के बाद गगजी को उन ट्रक वालों का फोन आया कि कहां हो आप लोग?  हमारे ट्रक खाली हो गए है। तो गगजी ने उन्हें बताया असलाली गांव के पास ओवरब्रिज के निकट एक होटेल पर है। तो उन्होंने कहा हम आते हैं वहां, और कुछ देर बाद वो आये,  रात को उन्होंने और गगजी ने साथ मिलकर चाय वाय भी पी पर मुझे नींद से नहीं जगाया। शायद लडके ने गगजी से मेरे बारे पूछा होगा तो गगजी ने बताया होगा कि उपर सो रहा हूँ ट्रक की छत पर। और वो सोने के वक्त अपनी ट्रक वालों से छिपकर मेरे पास आकर सो गया। नहीं तो आज भी पूरी रात उसकी हालत हररोज की तरह खराब होती। योन शोषण रोजाना था इसके साथ। मैं पेशाब करके वापस सो गया, सुबह होने में और दो तीन घंटे बाकी थे।

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........ जारी

* फोटो नोट -

फोटो-1- फैक्टरी के अंदर बॉयलर है वो बिल्डिंग

फोटो-2,3- ट्रक से खाली होता कोयला

फोटो-4- हाईवे होटेल की शाम

ट्रक यात्रा - 12

मैं गगजी की मनहूस चीख सुनकर तुंरत राइट साइड गया,  देखा तो राइट साइड के पीछे वाले पहियों में से आगे के डबल का बहार वाला एक पहिया फूस हो गया था। रात को ही कहीं रास्ते में कोई कील घूस गया होगा और फिर धीरे धीरे पहिये में से हवा निकल गई होगी। हमने आसपास पूछा तो पास में ही एक पंचर निकालने वाला मिल गया। फिर गगजी ने मुझे कहां सब पाना, टामी, जॅक बहार लाओ। मैं सब केबिन के बक्से से निकाल कर बहार लाया। जॅक तो बहुत भारी था।

गगजी ने ठीक से जॅक सटाया और मुझे टामी देते कहा ट्रक के नीचे अंदर घुसकर जॅक चडाओ। मैंने कभी पहले जॅक चडाया नहीं था पर गगजी ने दिशा निर्देश से लग गया जॅक चडाने में। तीस टन वजन था ट्रक में तो काफी मुश्किल था जॅक चडाना। जॅक में टामी भीडाओ, फिर पूरा जोर लगाकर टामी खींच कर घुमाओ और जॅक खुलता जायेगा। पांच मिनट में ही मैं पूरा पसीने से भीग गया। हर बार पुरी ताकत झोंक देने पर भी थोडा सा ही जॅक उपर खुलता। इस दौरान गगजी पहिये के नट बोल्ट खोलने में लगा हुआ था। करीब बीस मिनट की जान निकालने वाली मेहनत के बाद जॅक चढा पाया। मैं पुरी तरह से निढाल हो गया, सारी ऊर्जा बहा दी थी। यहां गगजी भी पूरी तरह पसीने से नहाया हुआ था। उसने नट बोल्ट ढीले कर दिये थे। फिर धीरे धीरे हाथों से बोल्ट खोलकर हमने पहिया बाहर निकाला। पहिया खोलने में और जॅक चढाने में हमारी पूरी अकड उतर गई थी। हम पूरी तरह पसीने से भीग गए थे और एकदम बुरी तरह थक भी गए थे।

पहिया पंचर वाले को देकर हम चाय वालें के ठेले पर जाकर चारपाईयों पर लुढक गये। कुछ देर ऐसे ही लेटे पडे रहने के बाद हाथ मुँह धोकर चाय पी। फिर कुछ चाय से और कुछ देर आराम करने से थोडी बहुत उर्जा आई शरीर में। वहाँ से एक ठेले वाला गुजरा तो फिर भुख भी जग गई पेट में उसे देखकर। उसके पास से एक दर्जन केले चालिस रुपये में खरीदे हमने। और फिर धीरे धीरे चारपाईयों बैठ कर केले खाये हमने।

एकाद घंटे में पंचर निकल गया तो पहिया ले आये। पंचर वाले ने डेढ सौ रुपये लिये पंचर निकालने के। पहिया अब वापिस लगाना था।  ठीक सटाकर पहिया लगाया और फिर अब नट बोल्ट कसने थे। गगजी पाना बोल्ट में भीडाता फिर पाने में टामी भीडाते और फिर मैं टामी पर पूरा जोर लगाता तब जाकर बोल्ट टाईट होते। जीतना जॅक चडाना दुष्कर था इतना ही नट बोल्ट कसना भी। पहिया लगाते हुए मैं पूरी तरह थक गया तो कुछ देर गगजी ने भी जोर लगाया नट बोल्ट कसने में। फिर बहुत मुश्किल बाद हमने बोल्ट कसकर पहिया ठीक से लगा दिया। पहिये का पंचर निकालने में जॅक चडाने और नट बोल्ट कसने में मेरे शरीर का पुर्जा पुर्जा ढीला हो गया।  पंचर निकालने में हम ही पंचर हो गये थे। ये दुसरी ओर बडी अहम वजह थी कि मैं ट्रक यात्रा को नकारात्मक तरीके से देख रहा था और उब गया था।  मैंने मन ही मन में निश्चय किया की ये मेरी पहली और आखिरी ट्रक यात्रा है।

बारह बजने वाले थे, काफी धूप और गर्मी थी। नहाने का मन था पर कहीं आसपास ऐसी व्यवस्था नहीं दिखी। आसपास खाने के लिए भी होटल ढाबा कुछ नहीं दिख रहा था। ठेले वाले नें कहा कि दो किलोमीटर की दूरी पर है एक ढाबा पर एक तो दो किलोमीटर दूर तक चलने का आलस्य और उपर से अभी केले खाये थे और फिर कब नंबर चला जायेगा  ट्रक खाली करने का तो  ये सब सोचते हम ढाबे पर नहीं गये। गगजी जाकर सो गया ट्रक में,  पर मैं आसपास घूमने, टहलने के लिए चल पडा। कुछ दूर आगे जाकर मजदूर काम कर रहे थे। सिमेंट ब्लोक बनाने का कारखाना था वहां पर मजदूर ब्लोक बना रहे थे। थोडा आगे एक चोक था, वहाँ पर एक बडा सा बरगद का पेड़ था, वहां दो लोग दारु पीकर झगडा कर रहे थे और दुसरे तमाशाई उन्हें देख रहे थे। मैं उनसे किनारा करते आगे गया तो वहाँ पेडों पर आठ दस बंदर खेल रहे थे। बंदरों से डर लग रहा था तो वापस चला दिया और आकर ठेले पर चाय पीया।

कुछ देर ठेले पर बैठकर फिर दुसरी ओर चला, वहां सडक के किनारे पर खुले आसमान के नीचे डेरा डाले कई मजदूर परिवार रहते थे। कुछ औरतें दूर से सर पर पानी उठाकर आ रही थी। एक लडके से पूछने पर पता चला कि सब आसपास की फैक्टरीयों में मजदूरी करते हैं। मैं देखते देखते आगे चला गया, आगे एक सडक किनारे पर चाय नाश्ते की दूकान थी तो मैंने वहाँ से सौ रुपये के भुजिये ले लिये। वहां से वापस लौटकर सीधे ट्रक में आया और गगजी को उठाया कि खाना ले आया हूँ। हम दोनों ने दबा दबाकर भुजिये खाये, वैसे और कुछ मिलने वाला नहीं था खाने को। हम खा कर कुछ बैठे बातें कर रहे थे कि इतने में सिक्युरिटी गार्ड ने चिल्लाते हुए बोला; "तीस नंबर.... तीस नंबर ट्रक..."

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......... जारी


* फोटो नोट-

फोटो-1,2- पहिया पंचर होने पर खोल दिया गया पहिया

फोटो-3- सिमेंट ब्लोक बनाते मजदूर

फोटो-4- सडक किनारे बिना छत का घर,  और बोरियों बंधा हुआ उनका सामान

फोटो-5- दूर से पानी भरकर आती मजदुरन महिलाएं

फोटो-6- सिमेंट ब्लोक बनाते मजदूरो के बच्चों का खेल

ट्रक यात्रा - 11



आगे जाकर एक ओवरब्रिज आया तो गगजी ने बताया कि ये अहमदाबाद बडौदा हाईवे है। कुछ आगे रामोल, वस्त्राल, वृंदावन विहार करके विस्तार थे शायद,  मैं होर्डिंग्स और यहां वहां लगे बोर्डों पर से विस्तार का अंदाजा लगा रहा था। यहां कुछेक जगह पर ओटो रिक्शा वाले,  बाईक वाले, साईकिल वाले या पैदल आते लोग हमें दिखे, पर सन्नाटा जो पसरा था शहर में वो साफ दिख रहा था। रात को दूर दूर तक शांति फैली हुई थी पर इस शांति में से हिंसा, डर, अराजकता की बदबू साफ साफ आ रही थी।

कुछ आगे ओढव विस्तार शुरू हो गया, ओढव चौराहे से हम फिर राइट साइड मुड गये।  गगजी इन सारे रास्तों का बहुत अनुभवी था, जैसे हर सडक, मोड, बम्प से इंच इंच वाकिफ हो.!! बीच में एक चौराहा आया रबारी कोलोनी करके शायद। जहाँ बहुत सारी बाईके जली हुई पडी थी, कुछेक पुलिस की गाडियाँ भी बुरी तरह खाक हो गई थी, और जहाँ तहाँ शीशों की किरचें फैली पडी थी। पता नहीं चौराहे का नाम रबारी कोलोनी था या फिर उस विस्तार का पर मैंने एक आधे जले हुए पोस्टर से अंदाजा लगा कर नोट किया।

ओढव चौराहे से राइट साइड मुड कर कुछ देर आगे चले वहां से लेफ्ट साइड में एक सडक सिंगरवा जाती है। हम उस छोटी सडक पर जरा सा आगे आये कि "मेइज़ प्रोडक्ट" करके फैक्टरी आ गई। हमें यहां पर ही लिग्नाइट खाली करना था। फैक्टरी की पार्किंग में चौकिदार ने हमारा ट्रक लगवाया। हमने अपनी ट्रक की ऐंट्री करवाई वहां पर। और भी पचास के करीब ट्रक खडे थे पार्किंग में वहां। अभी रात को साडे चार बज रहे थे सुबह होने में तीन चार घंटे थे और तब ही ट्रक खाली होना था।  गगजी मच्छर मारने की कोयल जलाकर अंदर ट्रक की केबिन में ही सो गया और मैं एक सीट लेकर ट्रक की केबिन की छत पर चढ गया और वहां चद्दर तान के लंबा हो गया।

तेज धूप के मुंह पर पडने से मेरी नींद खुल गई, सुबह के आठ बज रहे थे। गगजी अब भी ट्रक की केबिन में सो रहा था। पर वहां फैक्टरी की पार्किंग में और खडी ट्रकों के ज्यादातर ड्राइवर और खलासी उठ गये थे। उनमें से कुछ रोड क्रॉसिंग कर के सामने छोटे से छपरे में चाय के ठेले पर चाय पीने जा रहे थे। मैंने गगजी को सोने दिया और उसे जगाये बिना अकेला ही चाय के ठेले पर चला गया। वहां पर कुछ सिमेंट की टंकियां रखी थी पानी से भरी हुई और कुछ  प्लास्टिक के मग भी। मैंने वहाँ पर मुंह धोकर चाय पी और फिर वहां बिछाई हुई चारपाईयों पर सबके साथ बैठा रहा। सब अनजान दे एक दुसरे से पर फिर भी कुछ बातें हो रही थी हम में। कोयले से लदी ट्रक तो चार पांच ही थे पर ज्यादातर ट्रक मक्के से ही लद थे। फैक्टरी में मक्के में से ग्लुकोज बनाया जाता था। पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश से मक्का आया थी, ट्रक भी सब वहाँ के ही थे।

सुबह सुबह हल्का होने के लिये सब ड्राइवर खलासी पास की झाडियों में जा रहे थे। छोटा सा एक प्लॉट था और उसमें झाडियां भी बहुत कम थी फिर भी सब वहीं बोतल भरके जा रहे थे। मैं नहीं गया क्योंकि इतना प्रेसर नहीं बना था और इस गंदगी में खुले में शौच भी नहीं करना चाहता था। मैंने सोचा जब जोर की लगेगी तब कुछ देखेंगे।

नौ बजते ही सिक्युरिटी गार्ड एक एक ट्रक बारी बारी फैक्टरी के अंदर भेज रहा था खाली होने के लिए। सब ट्रक को नंबर दिया हुआ था हमारा नंबर तीस था। तो हमें और भी बहुत देर लगनी थी।

अंदर केबिन में गर्मी लगने से गगजी की भी नींद खुल गई और वो भी उठकर चाय के ठेले पर आ गया। हमने फिर से चाय पी और फिर गगजी तो बोतल भरके वहीं झाडियों में हल्का हो आया।  मैंने चाय के ठेले वाले से पूछा शौचालय के बारे में तो उसने बताया कि फैक्टरी के गेट के अंदर ही पास में शौचालय, बाथरूम आदि हैं पर सिक्युरिटी गार्ड कमीने है किसी को उसमें जाने नहीं देते। मैं तो सीधा गेट पर गया, इतने में सिक्युरिटी गार्ड ने अटकाया मुझे।  मैंने कहा शौच के लिए अंदर शौचालय में जाना है। तो बोला अंदर सिर्फ स्टाफ के लिए हैं बहार के ट्रक वालों के लिए नहीं। मैंने कहा ठिक है भाई पर मुझे सिक्युरिटी इनचार्ज और कंपनी के मैनेजर से बात करनी है। तो उसने मुझे तो इतने में ही अंदर जाने दे दिया। मैं आराम से अंदर वेस्टर्न शौचालय में हल्का होकर आया। बाहर आया देखा तो गगजी अब भी चाय के ठेले पर चारपाईयों पर ही बैठा था। हम वहाँ से उठकर ट्रक की ओर गये। वहां जाकर ट्रक को चेक करके देख रहे थे की इतने में गगजी राईट साइड से चिल्लाया;  "पंचर.....!!!!"

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........... जारी

* नोट - इस दौरान कोई फोटो नहीं खींचा तो फोटो नहीं है।

ट्रक यात्रा - 10




"सावळिंग उठो भन्ना,  चाह बाह पीहां। (सावळिंग कहकर पुकारता था गगजी मुझे, वो जब सावळिंग कहकर पुकारता तो मुझे लगता था जैसे कोई चाइनीज हूँ मैं। चाईना में ऐसे ही नाम होते हैं सबके,  साउली, जिनपिंग टिंग टिंग...... असल में गगजी मेरा नाम ठीक से याद नहीं रख पा रहा था और बोलने में भूल जाता तो अपनी सहुलियत के लिए मुझे सावळिंग बना दिया.!! सावजराज को पहले उसने सवाईजी किया फिर शिवराज किया फिर भी मैंने कहा ठिक नहीं है तो सावळिंग बना दिया। राजस्थान के सरहदी विस्तार में और थर पारकर सिंध में किसी को भी ऐसे ही बुलाया जाता है। किसीका नाम करण हैं तो उसने पीछे ईंग मिला कर करणिंग बना दिया जायेगा, रतन का रतनिंग, भूपत का भूपतिंग तो सावज का सावजिंग की जगह गगजी ने सावळिंग कर दिया। पहले सिंग लगाया जाता था पर अपभ्रंश होकर ईंग हो गया। भोमसिंग, तनसिंग, मानसिंग आदी...  )  सावळिंग भन्ना उठो हमे,  चाह पीहां जाहे लाॅह्ज माथे, ओ सावळिंग......." मुझे भर नींद से जगाते हुए गगजी कह रहा था। मुझे गुस्सा तो इतना आया कि स्साले गगजी का सर फोड दूँ पास पडे स्क्रू ड्राइवर से। गहरी नींद में सोये हुए को भला कोई सिर्फ चाय पीने के लिए जगाता है क्या.?  मन ही मन गगजी को बहुत सारी गालियाँ देते हुए ट्रक से मैं नीचे उतरा। किसी हाईवे होटेल पर गगजी ने ट्रक खडी की थी। होटेल की ओर चलते चलते मैंने पूछा हम कहाँ पहुँचे हैं तो गगजी ने बताया कि विरमगाम बायपास के पास। हम धांग्ध्रा और आदि दुसरे छोटे मोटे कस्बे, गांव पीछे छोड आये थे। तब मैं सो रहा था और गगजी ट्रक चलाये जा रहा था।

होटेल में हमनें हाथ मुँह धोये और टेबल पर बैठे की इतने में चाय भी आ गई। चाय घटकते मेरी नजर घडी पर गई तो रात के 1:47 बज रहे थे। दुसरी दोनों ट्रक को बहुत पीछे छोडते हुए गगजी तेजी से आगे आया था। गगजी ने तो दो कप चाय पी ताकि उसे आगे ट्रक चलाते समय नींद न आये। और फिर पीछे वाली ट्रकों को फोन करके गगजी ने उन्हें बताया कि हम अब आगे निकल जाते हैं, तुम अपने तरीके से आना , ट्रके जब खाली होगी तब सब मिलते हैं कहीं पर। हमने पेशाब पानी करके ट्रक को आगे जाने दिया। मैं लेफ्ट साइड पर बैठा रहा, नींद तो अब उड गई थी।

कुछेक आगे जाकर साचना आया यहां तिराहे पर चार पांच पुलिस की गाडियाँ और कुछेक पुलिसवाले खडे थे। रात का वक्त था तो माहौल बडा सुनसान था। सडक पर और घरों, दूकानों के बाहर बस बत्तियां रोशनी डाल रही थी। और कुछ कुछ कुत्ते सडक किनारे सिकुड कर सोये हुए थे। हम ये सब देखते बढते जा रहे थे। कुछ आगे जाकर साणंद कस्बा आया। यहाँ पर भी चारों तरफ डरावनी शांति पसरी हुई थी। एकाद जगह पर हमें जली हुई पुलिस की गाडी दिखी पर पुलिसवाले तो कहीं भी नजर नहीं आये। हां,  एकाद पागल सडक और शांति को चीरता अपनी मस्ती में जा रहा था। हम दोनों कुछ भी आपस में बातचीत करे बिना आसपास देखते हुए आगे बढ रहे थे। इस दौरान ट्रक मालिक का फोन आया गगजी को, उसने हिदायत दी कि यदि कुछ अशांति जैसा माहौल हो तो अहमदाबाद से पहले कहीं होटेल पर रुक जाना और ध्यान रखना। और पहूंच जाओ तब फोन करना। गगजी ने भरोसा दिया कि सब ठीक है और हम पूरा ख्याल रखेंगे(पहले अपनी जान का और फिर आपकी ट्रक का)...

जाहिर सी बात थी आधी रात को ट्रक मालिक को अपनी बीस लाख की ट्रक की ही चिंता थी, मैं और गगजी कहां उसके चाचा के लडके थे जो रात को दो, ढाई बजे फोन करके हालचाल पूछता.!!  कुछ आगे जाकर सरखेज से कुछ पहले हम राईट साइड मुड गये। शायद इस रोड का नाम सरदार पटेल रींग रोड था क्योंकि एकाद जगह दूकान पर बोर्ड में पढ कर मैंने अंदाज लगाया। रास्ते में दो तीन बडे चौराहे आये और एक चौराहे पर कुछ तोडफोड हुई थी शायद,  बहुत सारे पत्थर और टूटे हुए शीशे बिखरे पडे थे सडक पर। कहीं भी कोई दिखाई नहीं दे रहा था बस बत्तियां जल रही थी। कुछ आगे एकाद दो जगह ओटो रिक्शा और बाईक्स वाले आते जाते भी दिखे। बीच में आती साबरमती को पार करने के बाद कमोद विस्तार आया यहां पांच सात लोग दिखे आते जाते।

कुछ देर आगे चलकर ओवरब्रिज आया, यहां बहुत सारी ट्रके आ जा रही थी और लोग भी अच्छी तादाद में घूमते दिखाई दे रहे थे। पुलिस भी वहां थी,  एकाद पुलिसवालें ने हमें रोककर पूछा क्या लोडिंग किया है  और जाना कहां है.? गगजी ने बताया कि कोयला है और कठवाडा के पास फैक्टरी में खाली करना है। वहां खडे पुलिसवाले आने जाने वाली ट्रकों को खडा करके  पूछ रहे थे। हम ओवरब्रिज से सीधा आगे बढ गये। आगे वटवा विस्तार शुरू हो गया जो मुझे जहां तहाँ लगे होर्डिंग्स से पता चला। वैसे एक तो रात और उपर से मैं यहां के विस्तार का अनुभवी न होने से कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कहां से हम गुजर रहे हैं.!!  बस आसपास सब टुकुर टुकुर देखते देखते जाना था और अंदाज लगाना था।अब कहीं कहीं विंजोल के बोर्ड आये तो अंदाजा लगाया कि यह विस्तार विंजोल होगा। थोडा आगे एक चौराहा आया हाथीजन सर्कल करके यहां पर भी कुछ तोडफोड के निशान नजर आ रहे थे।

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......... जारी

* नोट- इस दौरान मैं सोया रहा और रात का अंधेरा भी था तो कोई फोटो खींचे नहीं गये। मेरा मोबाइल कैमरा फ्लैश लाइट वाला नहीं था तो रात के फोटो खींच भी नहीं सकता था।

ट्रक यात्रा - 9

रात के नौ बजने ही वाले थे। पूल पार करते ही कुछ आगे जाकर पीछे वाली दोनों ट्रक भी आ गई। अब तीनों ट्रक साथ साथ आगे बढ रहे थे। अब  सडक पर ट्रकों के अलावा दुसरे वाहन कभी कभी ही दिखाई देते थे, ज्यादातर तो ट्रके ही आ जा रही थी। सडक पर ट्राफिक तो बिल्कुल नहीं था। चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था।  रात को सामने की लाईन से आने वाली ट्रकों की लाईट्स पास आते ही हमारे उपर तेज रोशनी डालती और तेज रोशनी अंधा ही कर देती।  मैं तो रोशनी से बचने के लिए आंखे ही भींच देता अपनी, पता नहीं गगजी से कैसे ट्रक चला लेता होगा इस वक्त.!! गगजी काफी अभ्यस्त था इस तरह की तेज रोशनी से तो उसे शायद इतनी दिक्कत नहीं होती होगी।

आगे माळिया नामक बडा कस्बा आया। गगजी ने मुझे बताया कि यहां पर बहुत सारी ट्रकों की रात के समय में लूट होती है। यह दस बीस किलोमीटर का एरिया बहुत खतरनाक है। पता नहीं कितना सच था गगजी की इस बात में पर मैंने तो एक गप्प ही समझी और शायद वो मुझे नया खलासी समझकर डरा भी रहा हो.!! मैंने इतनी गंभीरता से नहीं लिया इस बात को।
 
माळिया पसार करते हुए ओवरब्रिज के पास चौराहे पर एकाद एसटी बुरी तरह बस जली हुई थी। पहली बार गुजरात की हिंसा का प्रत्यक्ष सबूत दिखा हमें अब तक... माळिया से कुछ आगे चलकर एक तिराहे पर एक और बस तथा एक पुलिस जीप जलकर राख हुई दिखाई पडी।मैं समझ गया कि किस तरह प्रदर्शनकारीयोंने आक्रोश और मुर्खता में यह सब किया होगा.!! कुछेक पुलिसकर्मी वहां तिराहे पर खडे डयूटी दे रहे थे।

यह सब देखकर हम सब झेंप गये और कुछ हद तक डर भी पैठ गया। और मैं व्यक्तिगत बहुत दुखी था इस हिंसा से।महात्मा गांधी के प्रदेश में ऐसी हिंसा कहां तक शोभा देती है.!? पब्लिक प्रोपर्टी का बहुत सारा नुकसान हुआ था और पूरे प्रदेश का माहौल अशांत हो गया था और उपर से गुजरात दो दिनों से बंद था तो रोज रोज का कमाकर खाने वाले सामान्य मजदूर लोगों पर क्या गुजरी होगी भला.!? किसी भी सभ्य और प्रगतिशील समाज के लिए या  विकसित कहे जाने वाले प्रदेश के लिए ऐसी हिंसा कालिक समान है, शर्म है। जाहिर सी बात है कि राज्य सरकार असफल रही थी इस सारे मुद्दे पर और पुलिस ने जो रवैया अपनाया था वो भी हमारे तंत्र, कानून और व्यवस्था के लिए शर्म और लानत का विषय था।

हम सडक गति से आगे बढते जा रहे थे। हलवद से कुछ पहले एक तिराहे पर दुर से हमें बहुत सारी भीड दिखाई दी। भीड देखकर हमारा डर बढ गया। दूर से देखते ही गगजी ने मुझे कहां की टामी निकाल कर चौकन्ने होकर बैठ जाओ,  गगजी ने पीछे पीछे आ रही ट्रकों को भी फोन करके बताया कि कुछ पब्लिक हैं तो चौकन्ने रहना।  मैं लोहे की बडी सी टामी निकाल कर हाथ में कसके थामे लेफ्ट साइड में पर बैठा रहा सहमा सहमा, गगजी ने छोटी टामी अपने नजदीक रखी थी। हमारा गला सूख सा गया था। मैं सोच रहा था कि टामी से हम भला क्या कर लेंगे इतनी सारी लोगों की भीड समूह का और कही इसी टामी से वो हमें ही न तोड फोड दे..
पर मुझे अपने कमांडर गगजी का आदेश मानना ही था। वो कमांडर था और मैं उसका लेफ्टिनेंट.! वैसे देखा जाए तो हर ट्रक में ड्राइवर कमांडर होता है और खलासी उसका लेफ्टिनेंट। लेफ्टिनेंट को अपने कमांडर के हर ऑर्डर्स मानने ही पडते हैं वरना कोर्ट मार्शल होने का खतरा होता है.!!

तिराहे के कुछ पास जाते ही पता चला कि कोई छोटा सा अकस्मात हुआ था यहाँ। किसी छकडे वाले नें बाईक वाले को ठोक दिया था तो लोग वहां जमा हो गए थे और तमाशा देख रहे थे। क्योंकि छकडे वाला और बाईक वाला WWF खेल रहे बीच सडक पर। हमने राहत की सांस ली, टामीयों को वापस जगह पर रखा और दूर से द्वंद्व द्दृश्य देखते निकल गए।

हलवद में कुछ कुछ लोग सडको पर रात्रि वॉकिंग के लिए घूमते दिखे.. हलवद पार करते ही  पीछे की ट्रक से फोन आया कि कहीं होटेल पर रुको, भूख लगी है, खाना खा लेते हैं।  वैसे भूख तो मुझे भी काफी लगी थी.. थोडे ही आगे गगजी ने एक होटेल पर ट्रक खडी की।  पीछे वाली ट्रके भी पास आकर खडी। मैंने ट्रक के पहियों को चेक किया और कंकर वंकर निकाले तब तक गगजी ने ट्रक में अगरबत्ती जलाई और भगवान की पूजा अर्चना की। हम सबने वाॅश बेसिन पर हाथ मुँह धोकर होटेल में टेबल पर जम गए। होटेल की घडी में रात को सवा दस बजने को आऐ थे। सबने मिलकर बहुत सारी सब्जी, रोटी,  दाल-चावल आदि मंगाया  मैंने तो रोटी और पनीर की सब्जी खाई और दही था तो सब छोडकर दही और रोटी पर ही लूट मचाई... बहुत सारा पेट भरके खा लिया। और फिर मैं ट्रक में चला गया और सीट पर लेट गया। पैसे किसने दिये पता नहीं पर वो सब आधे घंटे बाद आये और गगजी ने मुझे उठाया। मुझे तो नींद आ गई थी। फिर गगजी ने ठीक से आगे वाले दोनों शीशे साफ किये और मुझे कहा अब ठीक से देख लो अगली बार तुम्हें ही करने हैं साफ।

फिर ट्रक चालू करके हम निकल पडे, दोनों दरवाजों से ठंडी हवा आ रही थी और खाना भी ज्यादा खा लिया था तो मुझे नींद आने लगी थी। मैंने गगजी से कहा मैं सो जाता हूँ भाई और मैं तो लंबी तान के सो गया।

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......... जारी

* फोटो नोट -

फोटो-1- रात को ट्रक चलाते चलाते फोन पर बातचीत करता गगजी

फोटो-2- माळिया के पास एक तिराहे पर एक चाय की दुकान

फोटो-3- होटेल पर लाइन में खडी हमारी तीनों ट्रक और होटेल

फोटो -4, 5- हमारा रात का लजीज जायका ;)

ट्रक यात्रा - 8

दिन ढल गया था और चहुँ ओर अंधेरा छा गया था। सडक पर अब सब वाहन लाईट्स ऑन करके ही चल रहे थे। वो दोनों ट्रक भी हमारे पीछे पीछे चली आ रही थी। गगजी थोडा तेज गति से ट्रक चला रहा था तो थोडे से वो पीछे रह गए।
कुछ ही आगे बढते सामख्याळी के पास आरटीओ चेकपोस्ट आया। यहाँ चेकपोस्ट पर ट्रक आदि भारवहन वाहनों का वजन वहां स्थित वे-ब्रिज पर चेक होता है ताकि कोई ओवरलोड वाहन हो तो तुरंत उस पर कार्रवाई की जाये। आरटीओ चेकपोस्ट पर धीरे धीरे रुक रुककर वाहन आगे बढ रहे थे। जैसे ही हमारी ट्रक वे-ब्रिज के पास पहुंची तो दो हिज़डे लेफ्ट साइड वाले मेरे दरवाजे पर आकर बोले; "ओये चिकने.. पैसे दे,  और रुकना हमें भी साथ चलने का हैं होटेल तक।"

गगजी ने मुझे बिस रुपये देते कहां इन्हें दे दो,  मैंने वो बीस रुपये उन्हें दिये। चेकपोस्ट पर आने जाने वाली हर लाईन में दो दो हिजडे खडे थे। हमारी ट्रक वे-ब्रिज पर वेरिफाई हुई कि इतने में दोनों लेफ्ट दरवाजे से ट्रक में चढ आये। और दुसरे वहां जो खडे थे हिजडे उनको बता रहे थे हम सुबह देर से आयेंगे। ट्रक में एक गगजी के बगल में जाकर बैठा और दुसरा मुझसे एकदम सटकर मेरे पास। मैं तो कोने में सिकुडता हुआ बैठ गया..  दिखने में वो दोनों काफी सुंदर थे और एकबारगी तो मुझे लगा कि कोई स्त्रियां ही है.!! गगजी के पास बैठा था वो अश्लील मजाक मस्ती करने लगा गगजी से। और मेरे पास बैठा मुझे सिकुडते देख कहने लगा; "ओ राजा इतना डरता क्यों है रे?  कितना चिकना है रे तुं..(हाथ से फ्लाइंग चुम्मा देते) कितनी गर्लफ्रेंड है रे तेरी?

नहीं है मेरी कोई गर्लफ्रेंड- मैंने धीरे से शरमाते हुए कहा

धत्त्त् तेरी.. नाम क्या है रे तेरा? अरे.. फरजाना इसके गाल तो देख कैसे टमाटर जैसे हैं.! अभी खा जाउंगी इसको- उसने फिर बोला

फरजाना जो गगजी से मस्ती कर रही थी उसके कहने पर मेरी और देखते हुए;  "हाय रे... कितना चिकना है.!! मुआआह.. (हाथ से फ्लाइंग चुम्मा मेरी और फेंकते हुए) और फिरसे वो गगजी में मस्त हो गई..
इधर इसने मेरा हाथ अपने हाथ लेकर सहलाते हुए; "मेरे चिकने राजा शादी हो गई क्या तेरी?  कितना मस्त माल है रे तुं.!!  तेरी बीवी तो बहुत किस्मत वाली होगी.."

जबकि वो इतनी सारी बातें कर रही थी कि मुझे कुछ जवाब देने की ज्यादा जरूरत ही नहीं पडी।     वैसे भी मैं सहम सा गया था न कुछ कह पा रहा था न ऐसी शरारतें करने से उसे मना कर रहा था जबकि मुझे हाथ में गुदगुदी भी हो रही थी।  इतने में एक होटेल आई और उन्होंने उतरने के लिए ट्रक रुकवाई। करीब चार पांच किलोमीटर तक दूर हमारे साथ आई वोह दोनों। शायद यही पास में ही कहीं रहती होंगी या खाना खाने आई होंगी होटेल में। उतरते वक्त उसने कहा "गाल दो चुम्मा देती हूँ चिकने,  हमारा चुम्मा बहुत अच्छा सुकुन वाला होता है।"

मैंने गाल आगे किया,  उसने चुम्मा दिया और कहा कि बहुचर माँ तुम्हें खुशीयां दे। उसके मुँह से पान की गंध आ रही थी।  मैंने अपनी जेब से बीस रुपए निकाल कर उसे दिये। फिर वो दोनों हंसती हंसती होटेल और चली गई।

हम आगे बढते रहे। गगजी मुझे बता रहा था कि इनके चुम्में में बडी दुआ होती है। जबकि मैं तो अनिश्वरवादी था, फिर भी उसका चुम्मा मुझे अच्छा लगा.!! मैंने पूछा गगजी से कि यह वहां क्यों चेकपोस्ट पर मांग रहे थे?  तो गगजी बता रहा था कि ये दिन रात वहां खडे रहते हैं और पैसे मांगते हैं। बहुत सारे हैं रात दिन चौबीसों घंटे बारी बारी खडे रहते हैं और वहां से गुजरते वाहनों से मांगते हैं। कभी कभी किसी ट्रक वाले के साथ चलते हैं कुछ दुर और आधे से ज्यादा इनमें से सेक्स वर्कर भी है। कई ड्राइवर इनसे सहमति से सेक्स भी करते हैं। जबकि ये बिरादरी बहुत अच्छी है ज्यादा तंग नहीं करती किसी को पैसे दो तो लेती है वरना बार बार मांग मांग नहीं करती।

आगे जाकर सूरजबारी टोल प्लाजा आया, वहां लाइन लगा था वाहनों का करीब बीस पच्चीस मिनट लगी हमें टोल प्लाजा पार करने में। यह अब तक पहला टोल प्लाजा था जहां पर गगजी ने पैसे चुकाये।

हम अब सूरजबारी पूल पर आ गए थे। चांदनी रात थी तो कच्छ की खाडी का पानी चांदी की तरह चमक रहा था जैसे कि पूरी धरती पर चांदनी पसर गई हो। सांय सांय हवा चल रही थी। पूल के नीचे समुद्री खारा पानी बह रहा था।  सूरजबारी पूल कच्छ को गुजरात से जोडता है, पूल पार करते ही कच्छ की सीमा पूरी होती है। हम कच्छ को पीछे छोडते हुए आगे बढ रहे थे.....

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.......... जारी

* फोटो नोट -

फोटो-1 टोल प्लाजा के नियम दर्शाता होर्डिंग्स

फोटो-2- टोल प्लाजा पर पैसे देने के बाद हमें आगे बढने के लिए मिली हरी लाइट

फोटो-3- टोल प्लाजा पर जमाव दूर से दिखाई देता

फोटो-4- सूरजबारी पूल पर हमारे आगे चलती ट्रक

फोटो-5- आसमान में दिखता चांद

फोटो-6- सूरजबारी पूल से चांदनी में दिखता समुद्री पानी,  अंधेरे में मेरे फोन का कैमरा ठीक नहीं चलता :(

ट्रक यात्रा - 7



हम करीब करीब एक घंटा चाय की होटेल पर रूके थे। काफी समय खराब किया था वहां पर हमने। अब रास्ता खराब होने के बावजूद गगजी अच्छी गति से ट्रक चलाये जा रहा था। बीच में काफी छोटे मोटे गांव आये और गये, हम बिना रुके चले जा रहे थे। एक तिराहे पर गगजी ने एक होटेल बताते कहां की यहां शराब मिलती है, हमें तो शराब लेनी नहीं थी तो रुक कर क्या करना था.!! कुछ आगे जाकर भचाउ आते ही चमचमाती फोरलेन सडक आ गई। अब हम मुख्य राष्ट्रीय मार्ग नंबर आठ पर थे। खराब रास्ते से जान छूटी...

अब राष्ट्रीय मार्ग पर आते ही ट्रक की गति बढा दी गगजी ने,  जबकि अब मुख्य मार्ग पर ट्राफिक भी ठीक ठीक था फिर भी हम गति से चल रहे थे। सडक के किनारे बडी बडी हाईवे होटेल पास होकर गुजर रही थी। और सडक के साथ साथ कच्छ से बाहर जाने वाला रेलवे लाइन भी  किनारे किनारे हमारा साथी बना साथ चल रहा था। भचाउ से कुछ आगे एक ट्रेन ट्रेक पर खडी थी, जो एक मालगाडी थी और कोयले से लदी हुई थी। कोयला मुंद्रा बंदरगाह पर विदेश से आता है और फिर वहां से हमारे पूरे देश में जगहों जगहों पर ट्रेन से भिजवाया जाता है। इस ट्रेन की बीच में रुकने की वजह थी कि आगे सुरेन्द्रनगर के पास रेलवे लाइन को प्रदर्शनकारीयोंने ने उखाड़ दिया था।  पटेल आरक्षण की रैली के बाद पूरा गुजरात जल रहा था। जगह जगह पर प्रदर्शनकारीयोंने तोडफोड, आगजनी करके यातायात को बाधित किया गया था। सडक परिवहन, रेलवे आदि को भी काफी नुकसान हुआ था तो बसों एवं ट्रेनों रुकवा दिया गया था। यह खडी मालगाडी भी बीच में इसलिये रुकी हुई थी की आगे के ट्रेक को उखाड़ दिया गया था।  कुछ आगे जाकर हमने ट्रक को एक होटेल पर खडी की। शाम ढलने को आई थी, साडे छै हो रहे थे।सूर्यास्त हुआ नहीं था पर कुछ देर में ही सूर्य को क्षितिज में छिप जाना ही था और खा पीकर रात भर लंबी नींद खींचनी थी उस।

हमने वहाँ होटेल में बैठकर चाय पी.. वहां कुछ और भी ट्रके खडी हुई थी। उन में से कुछेक ड्राइवरों को गगजी जानता था तो वो उनसे मिला और बातें भी की। उन्होंने मुझे घूर घूरकर देखा और गगजी से पूछा कि ये गोरा छोरा कुण है?  गगजी ने उन्हें बताया कि नया खलासी है पर वैसा नहीं है और ये बलिया है इससे संभल बात करो। मैं समझ गया कि वो किस लिए मुझे "वैसा" और "गोरा छोरा" कह रहा हैं.!! मैंने तुरंत उस ड्राइवर को माँ बहन की अच्छे से याद दिलाई उसके इस गोरे छोरे के लहजे पर..  तो वो साॅरी कहते हुए बोला कि "मुझे ज्ञात नहीं था भाई, गलती हो गई म्हारी। मैं तो समझ रहा कि कोई सामान्य सा नया खलासी है।" मैंने कुछ ज्यादा बात न करते उसे जाने दिया और उस बात को वही पूरा किया।

कुछ विस्तार से इस बारे में बात करूँ तो यह कि ज्यादातर ट्रक ड्राइवर और खलासी समलैंगिक संबंध बनाते हैं। खासकर खलासी नये लडके होते हैं तो उनका ड्राइवर शारीरिक शोषण करते हैं। खलासीयों को डरा, धमकाकर ड्राइवर उससे संबंध बांधते हैं। कुछ खलासी डरकर संबंध बनाने को मान जाते हैं तो कुछ नहीं भी मानते। और "अस्सी प्रतिशत,"  हां भाई दुबारा कह रहा हूँ अस्सी प्रतिशत ड्राइवर और खलासी समलैंगिक संबंध बनाते हैं.!!

उन लोगों की दो ट्रक थी जो कोयले से भरी हुई थी और अहमदाबाद के पास कहीं अलग अलग फैक्टरीयों में खाली होनी थी । उनमें से एक ट्रक में एक खलासी सतरह साल का लडका था और मुझे समझने में देर नहीं हुई की उसके साथ क्या क्या होता होगा.!!  अब आगे हम सब को काफी दूर तक साथ साथ भी चलना था। जान पहचान के ट्रक वाले अक्सर पांच सात ट्रकों के समुह में साथ चलते हैं ताकि कोई मुश्किल हो तो निपटा जा सके।

उन्होंने दुबारा चाय पीने को कहां और हम सबने मिलकर फिर चाय पी।  और वो मुझे गोरा छोरा कहने वाला ड्राइवर बार बार मुझे कह रहा था कि भाईसा म्हारी भूल हुई जी, मैं तो बस थ्हारी मजाक कर रियो जी और फिर ब्ला ब्ला ब्ला...

हम चाय पी रहे थे कि इतने में तीन बडी लक्जरी ट्रैवल्स वहां आकर रुकी। ट्रैवल्स की छत पर भी लोग  बैठे हुए थे। दो दिन से गुजरात में बस ट्रेन आदि बंद होने के कारण लोग कहीं आ जा नहीं पा रहे थे तो आज कोई ट्रैवल्स जा रही होगी तो लोग खतरा उठाकर छत पर सफर करते जा रहे थे। त्यौहार आने वाले हैं तो बाहर के लोग घर जाने वाले होंगे, यातायात बंद होने से कुछ और रास्ता भी नहीं बचा था उनके पास आने जाने का। हम चाय पीकर चले और आगे कही सब खाने पर रुकने को कहकर अपनी अपनी ट्रके सडक पर दौडने को छोड दी...

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.......... जारी

* फोटो नोट

फोटो-1- बीच में रूकी हुई मालगाडी

फोटो-2- नेशनल हाईवे,  राष्ट्रीय राजमार्ग

फोटो-3- ट्रैवल्स बस की छत पर बैठे लोग

फोटो-4- दुसरी ट्रक का सतरह वर्ष का खलासी, हमारी ट्रक में बैठे हुए।

फोटो-5- नेशनल हाईवे

फोटो-6- राष्ट्रीय राजमार्ग पर ओवरब्रिज

ट्रक यात्रा - 6



शेखपीर तिराहे से आगे बढते ही सडक खराब आती है, जगह जगह पर खडे हैं और सडक का काम अधूरा पडा है।। कई महीनों से इस रोड का काम चालू है पर बीच बीच में किसी कारण वस रूक जाता है और जो अब तक पूरा नहीं हुआ, कोई बडा ग्रहण लगा है जैसे। कुछ देर आगे चलकर गगजी ने कहां की अब तुम सो जाओ अगर नींद आ रही हो तो, मैंने मना किया कि अब नींद उड गई मेरी।

एक बात मैं तब से नोटिस कर था जब से ट्रक में आया था कि गगजी सडक पर दिखाई देने वाले हर मंदिर, मस्जिद के पास गुजरते ही ट्रक का हॉर्न बजाता और  कुछ बडबडाता, और हां कभी कभी हाथ से नमस्कार की मुद्रा भी बनाता। और गगजी सिर्फ अकेला ही नहीं पर ज्यादातर ट्रक ड्राइवर इसी तरह सडक पर आने वाले किसी भी धर्म के देवालय के प्रति  सम्मान और आस्था दिखाते है और हॉर्न बजाते हैं.!!

इसी ही तरह गगजी सडक पर जहाँ भी कोई स्त्री और खास तौर पर युवान स्त्री लडकी दिखे तो तब भी हॉर्न बजाकर, अश्लील उदगार निकालते हुए एवं आहें भरते भरते कुछ गालियाँ भी बकते हुए काफी दूर तक उसे याद करता है। और न सिर्फ गगजी पर कुछेक अपवाद को छोड हर ट्रक ड्राइवर ऐसी भद्दी सोच और आचरण दिखाता है.!! मुझे गगजी की इस बात से काफी गिन आ रही थी। मैंने उसे कहा भी कि इस तरह स्त्रियों के प्रति व्यवहार जताना निहायत घटिया सोच हैं पर उसने एक तुच्छ कहावत; "रांडानां पेट में अट्टो और......." कहकर मेरी बात को उडा दिया। असल में ये सिर्फ गगजी की नहीं हमारे अधिकांश मर्दवादी भारतीय समाज की मानसिकता है स्त्रियों के प्रति। स्त्रियों को सिर्फ घर में बिना पैसे लिए काम करने वाली नौकरानी और बिना पैसे लिए संभोग करने वाली सर्टिफाइड वैश्या ही समझा जाता है.!!  शिक्षित वर्ग में कुछ हद तक स्त्री को आजादी मिली है पर ग्रामीण एवं अशिक्षीत वर्ग में जो देश बहुत बडा वर्ग है उस में आज भी स्त्री को सिर्फ एक साधन ही माना जाता है। बच्चे पैदा करो,  खाना बनाओ,  रात में साथ सोओ और घर में कैद पडी रहो.. गगजी की ऐसी बातें सुनकर मेरे मन में  ट्रक यात्रा के प्रति और ड्राइवर के लिए पहली बार उदासी एवं नकारात्मकता दिखी।

सडक के किनारे गांव और फैक्टरीयाँ पीछे छोडते हम बढते जा रहे थे। और अब हमारे बीच बातें कम हो गई थी, और कितनी देर बातें करते हम.? कुछ देर बाद आदमी अपना अपना एकांत ढूंढ लेता है। साथ रहकर भी साथ नहीं होते कुछ और जगह होते हैं हम सब। आगे चलकर हाईवे पर चाय की एक होटेल पर गगजी ने ट्रक खडी की। वहां  बहुत सारी ट्रके खडी थी, बहुत मुश्किल से हमें पार्किंग के लिए जगह मिली। जबकि एक आदमी वहां था जो सबको ठीक से पार्किंग करवा रहा था। मुझे गगजी ने बताया कि यहां की चाय बहुत अच्छी है इसलिए यहां इतनी भीड है होटेल पर।

मैंने और गगजी ने वहां होटेल के बाहर लगे बहुत सारे पानी के नलों पर हाथ पैर धोये, और भी बहुत लोग थे जो वहां पर हाथ पैर धो रहे थे। हम जाकर होटेल के छपरे के नीचे खटिया पर बैठे इतने चाय आई।चाय पीकर लगा कि वाकई चाय कुछ बढिया थी। हमने दुबारा चाय मंगाई, और दोनों दो दो कप चाय घटक गये.!!  चाय की होटेल के छपरे से लगकर और छोटा छपरा था वहां पांच सात लोग जुआ खेल रहे थे। होटेल के छपरे के दूर के एक कोने में बैंच पर बैठकर एक लोकगायक संतार लेकर भजन गा रहा था। कुछ ड्राइवर उसे घेर कर खडे खडे सुन रहे थे। वो मीरां का एक पद गा रहा था,  बहुत मुश्किल से मैं उसके बोल समझ पाया; "इये रे शरमेळीये पेहली रे पाळ, वेरागण हूँ रे बनी..."  ट्रक ड्राइवर उसे दस बीस रुपये देते और वो एक एक भजन गाता जाता।  चाय वालें ने बताया कि वो रोज आता है और यहीं बैठकर भजन गाता है।  पास के गांव का है, पहले ग्वाला था अब बस भजन गाता है। गगजी ने भी उसे दस रुपये दिये। हमें यहां आये काफी समय हो गया था तो मैंने गगजी को कहां कि चलो चलते हैं तो उसने बताया कि कुछ और उसकी जान पहचान के ट्रक ड्राइवर आ रहे हैं,  वो सब यही आकर रुकेंगे। थोडे ही पीछे आ रहे हैं उनको मिलकर आगे चलेंगे। शायद उन्होंने फोन करके गगजी को बताया होगा कि पास ही है तो आकर मिलते हैं।

पंद्रह मिनट में वो ट्रके आ गई, तीन ट्रके एक साथ थी। वो सिमेंट ले जा रहे थे बीकानेर को। हम सबने फिर से साथ साथ चाय पी। मैं उन ट्रक ड्राइवरों में से किसी को भी जानता नहीं था पर उन में से दो लोग मुझे पहचानते थे.!! उन्होंने पहचान देते बताया कि जब पान्ध्रो की कोयले की खान जब बंद कर दी गई थी तब उसे लेकर आंदोलन चल रहा था उसका आपने नेतृत्व किया था।  हम ट्रक ड्राइवरों और उस खान में मजदूरी करने वालों के लिए आपने बडा योगदान दिया था, हम तब से आपको जानते हैं।
मुझे वो आंदोलन याद आ गया। हमारे यहां लीडर लोगो को कोई भी मुद्दा चाहिए, फिर मुद्दे पर राजनीति चलती हैं।मुद्दे पर कोई निराकरण आये न आये पर  इस तरह लीडर अपनी जमीन मजबूत करते हैं.!! लेकिन  मुद्दे से जुडे सामान्य लोगों को बहुत कुछ आशाएँ होती है,  वो अपने लीडर के प्रति काफी विश्वास बांधे बैठे हुए होते हैं। और वो आम लोग जिवन भर लिडर को याद रखते हैं और उसके साथ भी चलते हैं। मैं उस आंदोलन में असफल रहा था फिर भी उन्होंने याद रखा था मुझे. !!   एक असफल आंदोलन के बावजूद भी इस बात को लेकर उन्होंने मेरे प्रति काफी सम्मान प्रकट किया। और उनको आश्चर्य भी हुआ कि मैं ट्रक में क्या कर रहा हूं,  तो फिर मैंने अपनी ट्रक यात्रा के बारे में बताया। पता नहीं उन्होंने कितना विश्वास किया होगा इस बात पर..!! और इन सब बातों से गगजी अनजान था क्योंकि वो और चार लोगों से मिलकर किसी बात पर ठहाके ले रहा था... कुछ ही देर में हम सब अलग हो कर अपने अपने गंतव्य की ओर ट्रक लेकर चल दिए।

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......... जारी

* फोटो नोट

फोटो-1-  चाय पर चर्चा, चाय की होटेल के पीछे

फोटो-2- भजन गाता लोक गायक

फोटो-3- होटेल के बगल में जुआ खेलते खेली

फोटो-4- बीकानेर जाते ट्रक ड्राइवर,  दो बुड्ढे जो मुझे पहचानते थे

फोटो-5- चाय की होटेल पर खडी ट्रके

फोटो-6- "द खलासी"- मैं आइने में, खुद को सेल्फी में दर्ज करते

ट्रक यात्रा - 5




वाॅश बेसिन पर हाथ मुँह धोकर हम खाने की टेबल पर बैठ गए। मैंने ऑर्डर में भिंडी की सब्जी, रोटी और दही मंगाया जबकी गगजी ने बाजरे की रोटी और दही का रायता मंगाया। खाना काफी अच्छा था और भूख भी ज्यादा लगी थी तो मैं खाना आते ही टूट पडा और दबा दबाकर खाया। मुझे कहीं भी खाने में यदि दही और रोटी मिल जाए तो फिर जैसे पूरी दुनिया का जायका ही मिल गया हो.!! दाल भात भी थे पर मैंने नहीं खाये और दही पर ही पूरा ध्यान लगाया। बहुत ज्यादा खा लेने की वजह से मुझसे तो उठा भी नहीं जा रहा था। इतना आलस्य हो रहा था कि यही टेबल पर ही लुढक जाउं और एक लंबी नींद खींच लू। खाने का बिल हम दोनों का 245 रुपये आया, जो गगजी ने चुकाया। मुझे तो बहुत महंगा लगा जबकि खाते वक्त मैंने इस ओर ध्यान भी नहीं दिया था।

खाने के बाद कुछ देर बैठे बैठे गगजी होटेल मालिक से बतियाता रहा,  उन दोनों की पहचान बहुत पूरानी थी.. वो दस पंद्रह मिनट तक बातें करते रहे तब तक मैं बाहर छांव में बिछाई खटिया पर लेटा रहा।

एकाद घंटा हो गया था हमें यहां खाने के लिए ढाबे पर रुके हुए,  इतने में गगजी आया और हम आगे की तरफ निकल लिए। मुझे नींद आ रही थी पर गगजी ने मना करते कहां अभी मत सोओ, भुज पार होते तुम चाहो तो सो जाना।  मैं बार बार नींद के झोले खा रहा था ट्रक में बैठे बैठे,  बहुत मुश्किल से खुद को जगाये रहा था। बीस मिनट में हम भुज आ गए,  मैंने नींद से बचने के लिए बोतल के पानी से अपना मुंह धो लिया तो कुछ ताजगी आई।
भुज में तो जगह जगह पर पुलिस तैनात थी। मुझे लगा कि क्या हो गया होगा जो इतनी पुलिस चारों तरफ हैं..!! वैसे पुरे गुजरात का माहौल तो खराब है ही तो क्या भुज में भी कोई अप्रिय स्थिति पैदा हुई होगी.!?  रिलायंस पेट्रोल पंप के पास चौराहे पर ट्रक धीमा करा कर वहां खडे एक पुलिस वाले से मैंने पूछा कि इतनी पुलिस क्यों है.? उसने कहा कि आज मंत्री जी आने वाले हैं तो इतनी सारी पुलिस हैं। और फिर मुझे सब मालूम चल गया...

केंद्रीय रक्षा मंत्री मनोहर परिकर जी और मानव संसाधन मंत्री स्मृति इरानी जी आज भुज, माधापर में एक स्मारक का लोकार्पण करने आ रहे हैं। जबकि मुझे कुछ दिनों पहले ही ज्ञात था कि दो मंत्री यहां किसी कार्यक्रम में आने वाले हैं पर मैं यह बात भूल गया था। हमारा देश बडा विचित्र है..!!  दो व्यक्ति विशेष के लिए पांच सौ लोग तैनात थे, उनकी रक्षा के लिए और उन्हें कोई मुश्किल न हो इसलिए।  जबकि हमने उन्हें इस लिए चुना है कि वो हमारी रक्षा करें और हमारी मुश्किलें हल करें.!!

1971 के भारत पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान के  युद्ध विमानों ने भुज एयरपोर्ट का रनवे और सरहद पर सैन्य मार्ग का पूल तोड दिया था तो उस समय माधापर गांव की तीन सौ महिलाओं ने आपातकालीन स्थिति में एक रात में रनवे और पूल फिर से खडा कर दी था। तो उन महिलाओं के प्रति सम्मान के तौर पर एक स्मारक बनाया गया था और उसका आज लोकार्पण इन मंत्रियों के हाथों होना था तो जगह जगह पुलिस उन के लिए तैनात थी।

हम माधापर हाईवे जहां भुज का ट्रान्सपोर्ट उद्योग के ऑफिस है वहाँ आकर रुके। गगजी को ट्रक मालिक की ऑफिस जाकर हमारे खर्च के पैसे लेने थे तो वो मुझे ट्रक का ख्याल रखने को कहकर खुद ट्रक मालिक के ऑफिस चला गया.. मैंने बोतले पानी से भर ली, ट्रक के पहियों को चेक किया और फिर बैठा रहा। जबकि अब मुझे नींद भी नहीं आ रही थी और ट्रक में काफी गर्मी लग रही थी तो मैं नीचे उतर कर पास नीम के पेड की छांव में बेंच पर बैठा रहा। आधे घंटे में गगजी भी आ गया और हम वहां से रवाना हो गए।

माधापर गांव के पास बहुत ज्यादा लोगों की भीड थी। हमें ट्रक को बहुत धीरे धीरे और संभालकर आगे निकलना पडा। वहां से आगे निकलते ही खुला और सूना रोड सामने था। कुछ देर आगे चलकर शेखपीर तिराहे पर हमने ट्रक को पेट्रोल पंप पर रोका और ट्रक में  इंधन भरवाया। यदि मैं भुला नही हूँ तो शायद 13450 रुपये का,  280 लिटर डीजल ट्रक की टंकी में आया,  टंकी फूल हो गई। टंकी में करीब साडे तीन सौ लीटर की क्षमता होती है मतलब की 70 लीटर इंधन टंकी पहले से में था। वहां पंप पर ट्रक मालिक का उधार चलता है तो पैसे वहीं देगा हमें बस रजिस्टर में लिखवाना था जो हमने लिखवा दिया। ट्रक मालिक की सब ट्रकों का इंधन यही इसी पंप पर भरा जाता है,  उसकी कुल मिलाकर बीस ट्रक है ऐसा गगजी बता रहा था मुझे।

मैंने गगजी से पूछा कि तुम्हें शेठ पगार कितना देता है तो गगजी ने बताया कि बारह हजार महीना और चार सौ रुपये रोजाना खर्च अलग जिसने खलासी का भी पगार के सिवा सब खर्च जुडा होता है। और मालिक टोल टैक्स भी ड्राइवर को देता है जिसमें ड्राइवर जो बचाये वो उसका... करीब करीब अहमदाबाद की एक ट्रीप में 4600 रुपये का टोल टैक्स होता है। जबकि अब तक दो टोल गेट गगजी टोल प्लाजा के पास वाली कच्ची सडक से गुजर कर बिना पैसे चुकाये निकल आया था। ट्रक ड्राइवर कुछ पैसा कमाने के लालच में पैसेंजर भी बिठा लेते हैं ट्रक में पर पुलिस परेशान करती है तो गगजी पैसेंजर नहीं बिठाता ऐसा उसने मुझे बताया।

शेखपीर तिराहे से एक सडक अंजार, गांधीधाम की ओर जाती है और दूसरी भचाउ होते हुए आगे.. हमें अंजार, गांधीधाम जाकर क्या करना था तो हम भचाउ की ओर अपनी ट्रक मोड दिये....

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......... जारी

* फोटो नोट

फोटो-1- जहाँ हमने खाना खाया वहां ढाबे पर रुके ट्रक

फोटो-2- शेखपीर के पास पसार होता रेलवे ट्रैक

फोटो-3- आइने पर टिके मेरे पैर जबकि तब पीठ लेटी हुई थी

फोटो-4- ट्रक में टंगे लिंबू, मिर्च और कोयला, जो दस रुपये में गगजी खरीद लाया