Sunday 29 November 2015

तीन कविताएँ

केवल बुद्ध जाग रहा है 


सब सवाल कर रहे हैं
बुद्ध जवाब ढूँढ रहा हैं

सब शोर मचा रहे हैं
बुद्ध मौन हैं

सब जिंदा हैं
बुद्ध जी रहा हैं

सब चल रहे हैं सर झुकाएं
बुद्ध उड रहा है सर उठाएं

सब खडे हैं
बुद्ध बड रहा हैं

सब उत्तेजित है,  अस्तव्यस्त हैं
बुद्ध शांत है

सब उदास हैं, रो रहे हैं
बुद्ध मुस्कुरा रहा है

सब सो रहे हैं
केवल बुद्ध जाग रहा है

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कस्बाई किसान की कब्र पर कुत्ते भौंक रहे हैं



अगले महीने शादी है बेटी कमली की
लडके वालों को एक मोटरसाइकिल भी देना है दहेज में
पूरे गांव को भी दावत खिलाना होगा
कमली के बापू हो जायेगा, फसल कटाई तो हो... कोई फिकर नहीं

हाँ... बाबूजी की आंखों का ईलाज भी करवाना है
मोतियाबिंद हुआ है जमणी आंख में
घर के उपर नये खपरैल भी डलवाने है
बारीश में पानी टपकता है पूरे घर में
कमली के बापू हो जायेगा, फसल कटाई तो हो... कोई फिकर नहीं

बबू को शहर भेजना है पडने कालेज
बारहवीं पूरी किये हैं अच्छे मार्क से हाल
पचास हजार पैये भी भरने है शेठ सुखीराम के
कर्जा दिये थे खेत खडने के टाईम
कमली के बापू हो जायेगा, फसल कटाई तो हो... कोई फिकर नहीं

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बिन मौसम काहे बरसी डायन ??
ख्वाब सब गल गये, फसल बह गई
अब मुंह कैसे दिखाई ?
चलो फांसी लगाके मर जई..

हल की आंखों से आंसू बह रहे है
कस्बाई किसान की कब्र पर कुत्ते भौंक रहे है

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 जन्मदिन पर माँ


जन्मदिन पर माँ ने चुम्मा सर
और कहां; "तुम हीरे की तरह चमकना"
मैंने मुंह चढाकर कह दिया
"हीरा सख्त और कठोर होता है
एक पत्थर जैसा
मुझे नहीं बनना हीरा वीरा..."

मैंने माँ की आँखों में देखा
उन आंखों में झांका एक आसमान
और मैंने झट से कह दिया;
में बनूंगा एक परिंदा
जो उडता रहेगा उंचे आसमान में

माँ ने फट से आंखे बंद कर दी
बोली;  "नहीं.. परिंदा नहीं.. परिंदा नहीं.."
शिकारी ज्यादा है चारों तरफ
और अक्सर परिंदों का शिकार करते रहते हैं...

तुम मेरी कोख में ही छिपे रहना
की तुम मेरे पुत्र ही बने रहना....
(मुझे अपने सीने से लगा लिया चूमते हुए माँ ने... .)

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