आगे अंजार गांव न जाकर बायपास से होकर हम भुज की ओर अग्रसर हो गए। बीच में छोटे बडे गांव, कस्बे पीछे छूटते जा रहे थे। रास्ते में सापेडा, रतनाल, कुकमा आधी गांव आये पर हम कहीं भी रुके बिना चले जा रहे थे। इस दौरान रास्ते में मैंने गगजी को बताया कि मैं अब इस दौरे के बाद आगे साथ नहीं चलूंगा। हम वापस पहूंचते ही में घर चला जाउंगा। यह सुनकर वो आंखे फाडकर मुझे देखने लगा जाहिर सी बात थी कि उसे यह अच्छा नहीं लगा। गगजी मुझे कहने लगा कि पहले से ही बताना चाहिए न तुम्हें कि एक ही ट्रीप चलोगे, मैं कोई अच्छा खलासी रखता। बताओ अब मैं नया खलासी कहां से ढूँढकर लाऊं.!? और फिर मुझे कहने लगा कि जब तक कोई और खलासी नही मिल जाता तब तक साथ रहो ट्रक में फिर चले जाना। पर मैंने कह दिया कि नहीं भई, अब मैं आगे नहीं साथ आ सकता तुम्हारे। ट्रक यात्रा से ऊब चुका हूँ। कुछ देर तक चूप रहकर सोचने के बाद गगजी मान गया बोला कि ठीक है तुम्हारा मन नहीं है तो फिर चले जाना।
हम माधापर हाईवे से होते हुए भुज आ पहूँचे। भुजिया पहाडी की बगल में जथ्थाबंद बजार है भुज का, वही पर हमें ट्रक खाली करना था। दूकान वाले को फोन करके बता दिया गगजी ने कि माल लेकर ट्रक आ गया है, जल्दी आ जाओ। हमने आसपास पूछताछ करके दूकान ढूंढ ली, और दूकान के सामने ट्रक लगा दिया अपना। इतवार होने के कारण बाजार तो पूरा सुनसान था बस कुछ मजदूर बैठे थे और तास खेल रहे थे। ट्रक की तालपत्री, रस्सियाँ खोल कर ठीक से केबिन की छत पर बांध दिया हमने। इतने में दूकानदार भी अपने मजदूरों लेकर आ गया। आते ही मजदूर ट्रक खाली करने लग गए।
ट्रक खाली हो रही तब तक हम पास एक के पैड नीचे छांव में बैठे रहे। गगजी ने ट्रक मालिक को भी बता दिया कि ट्रक भुज आ गई है और बाजार में खाली हो रही है उसके आगे क्या करना है,.? तो ट्रक मालिक ने कहा कि जब तक ट्रक खाली होती है तब तक मैं कुछ पूछताछ करके फोन करता हूं। कुछ ही देर में ट्रक मालिक का फोन आया और उसने बताया कि पास में कहीं ओईल मिल से खाद्य तेल भरना है, खाली होते ही ट्रक को ओईल मिल ले जाकर खाद्य तेल भरकर फिर बीकानेर खाली करने जाना है। गगजी ने बहाना बनाते कहां की मेरे साथ का खलासी जा रहा है घर, फिर अकेला मैं कैसे जाउं इतने दूर बीकानेर.!? ट्रक मालिक ने कहा कि दूसरी एक ट्रक का खलासी बैठा है उसे लेकर जाना अपने साथ। और गगजी को कुछ शांति हुई..
एक बज रहा था दुपहर का, जोर की तेज धूप पड रही थी और भुख भी काफी लगी थी पर अब तक ट्रक खाली नहीं हुई थी। हम मजदूरों को बता कर पास वाले ढाबे पर खाना खाने चले गए। सोचा कि जब तक ट्रक खाली होगी तब तक हम खाना खा लेते हैं। खाना बडा अच्छा था, मक्खन और दही भी था तो मेरी तो जैसे लॉटरी लग गई, दबा दबाकर पेट भर खाना खाया। वैसे भी अब गगजी ट्रक यहां से बीकानेर ले जा रहा था तो ये हमारा साथ आखरी खाना था। मुझे अब गांव लखपत के लिए आगे बस में जाना पडेगा।
हम खाना खाकर वापस आये तब तक ट्रक खाली हो गई थी। ठीक का डाला बांध कर हम निकले वहां से। वहां से गगजी ने मुझे आरटीओ रिलोकेशन साईड पर चौराहे पर उतारा, अलग होते मैंने और गगजी ने हाथ मिलाये और मैं अपना बैग लेकर नीचे उतर गया। गगजी ने चार दिन का मेरा खलासी का वेतन देना चाह पर मैंने लिया नहीं। और हम अपनी अपनी मंजिल की ओर चल दिए।
वहां से मैं ऑटो रिक्शा से भुज बस स्टैंड आया। बस डिपो में पूछने पर पता चला कि लखपत के लिए बस साडे चार बजे है, चार बज रहे थे अभी आधा घंटा और इंतजार करना था। कुछ देर में वहां बैठा रहा इतने में बस आ गई, जोकि बस दस मिनट लेट थी। मैंने बस में अपना बैग रखा और खिडकी वाली सीट पर बैठ गया। ज्यादा सवारियाँ नहीं थी बस में, आधे ज्यादा बस खाली थी। दस मिनट के बाद बस चल दी वहां से.... बस कंडक्टर से टिकट लिया अपना, भुज से लखपत का किराया 123 रूपये हुआ। बीच में तीन अलग अलग जगह बस रुकी वहां चाय पानी किया, कई गांव होते हुए बस रात को नौ बजे अंधेरे में लखपत पहूँची। लखपत से आगे बस जाने वाली नहीं थी जबकि मैं वहाँ और सात किलोमीटर दूर रहता था। अब रात को कोई वाहन मिलने वाला नहीं था, आगे पैदल ही चलकर जाना था। पैदल चलते चलते मुझे बैग का वजन इतना ज्यादा लग रहा था कि सोचा बीच में ही बैग फेंक दूं कहीं पर... पर धीरे धीरे दो घंटे चलने के बाद मैं रात को सवा ग्यारह बजे मैं अपने घर पहुंचा... चलते चलते काफी थक गया था और रात भी काफी हो गई थी तो अब खाना क्या बनाता.!! और वैसे भी भुख नहीं थी तो खुले आसमान के नीचे चद्दर तान के सो गया ....
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............ जारी
* फोटो नोट-
फोटो -1,2- आरटीओ रिलोकेशन साईड भुज चौराहे पर रस्सी पर चलकर खेल दिखाती एक सात आठ साल की बच्ची
हम माधापर हाईवे से होते हुए भुज आ पहूँचे। भुजिया पहाडी की बगल में जथ्थाबंद बजार है भुज का, वही पर हमें ट्रक खाली करना था। दूकान वाले को फोन करके बता दिया गगजी ने कि माल लेकर ट्रक आ गया है, जल्दी आ जाओ। हमने आसपास पूछताछ करके दूकान ढूंढ ली, और दूकान के सामने ट्रक लगा दिया अपना। इतवार होने के कारण बाजार तो पूरा सुनसान था बस कुछ मजदूर बैठे थे और तास खेल रहे थे। ट्रक की तालपत्री, रस्सियाँ खोल कर ठीक से केबिन की छत पर बांध दिया हमने। इतने में दूकानदार भी अपने मजदूरों लेकर आ गया। आते ही मजदूर ट्रक खाली करने लग गए।
ट्रक खाली हो रही तब तक हम पास एक के पैड नीचे छांव में बैठे रहे। गगजी ने ट्रक मालिक को भी बता दिया कि ट्रक भुज आ गई है और बाजार में खाली हो रही है उसके आगे क्या करना है,.? तो ट्रक मालिक ने कहा कि जब तक ट्रक खाली होती है तब तक मैं कुछ पूछताछ करके फोन करता हूं। कुछ ही देर में ट्रक मालिक का फोन आया और उसने बताया कि पास में कहीं ओईल मिल से खाद्य तेल भरना है, खाली होते ही ट्रक को ओईल मिल ले जाकर खाद्य तेल भरकर फिर बीकानेर खाली करने जाना है। गगजी ने बहाना बनाते कहां की मेरे साथ का खलासी जा रहा है घर, फिर अकेला मैं कैसे जाउं इतने दूर बीकानेर.!? ट्रक मालिक ने कहा कि दूसरी एक ट्रक का खलासी बैठा है उसे लेकर जाना अपने साथ। और गगजी को कुछ शांति हुई..
एक बज रहा था दुपहर का, जोर की तेज धूप पड रही थी और भुख भी काफी लगी थी पर अब तक ट्रक खाली नहीं हुई थी। हम मजदूरों को बता कर पास वाले ढाबे पर खाना खाने चले गए। सोचा कि जब तक ट्रक खाली होगी तब तक हम खाना खा लेते हैं। खाना बडा अच्छा था, मक्खन और दही भी था तो मेरी तो जैसे लॉटरी लग गई, दबा दबाकर पेट भर खाना खाया। वैसे भी अब गगजी ट्रक यहां से बीकानेर ले जा रहा था तो ये हमारा साथ आखरी खाना था। मुझे अब गांव लखपत के लिए आगे बस में जाना पडेगा।
हम खाना खाकर वापस आये तब तक ट्रक खाली हो गई थी। ठीक का डाला बांध कर हम निकले वहां से। वहां से गगजी ने मुझे आरटीओ रिलोकेशन साईड पर चौराहे पर उतारा, अलग होते मैंने और गगजी ने हाथ मिलाये और मैं अपना बैग लेकर नीचे उतर गया। गगजी ने चार दिन का मेरा खलासी का वेतन देना चाह पर मैंने लिया नहीं। और हम अपनी अपनी मंजिल की ओर चल दिए।
वहां से मैं ऑटो रिक्शा से भुज बस स्टैंड आया। बस डिपो में पूछने पर पता चला कि लखपत के लिए बस साडे चार बजे है, चार बज रहे थे अभी आधा घंटा और इंतजार करना था। कुछ देर में वहां बैठा रहा इतने में बस आ गई, जोकि बस दस मिनट लेट थी। मैंने बस में अपना बैग रखा और खिडकी वाली सीट पर बैठ गया। ज्यादा सवारियाँ नहीं थी बस में, आधे ज्यादा बस खाली थी। दस मिनट के बाद बस चल दी वहां से.... बस कंडक्टर से टिकट लिया अपना, भुज से लखपत का किराया 123 रूपये हुआ। बीच में तीन अलग अलग जगह बस रुकी वहां चाय पानी किया, कई गांव होते हुए बस रात को नौ बजे अंधेरे में लखपत पहूँची। लखपत से आगे बस जाने वाली नहीं थी जबकि मैं वहाँ और सात किलोमीटर दूर रहता था। अब रात को कोई वाहन मिलने वाला नहीं था, आगे पैदल ही चलकर जाना था। पैदल चलते चलते मुझे बैग का वजन इतना ज्यादा लग रहा था कि सोचा बीच में ही बैग फेंक दूं कहीं पर... पर धीरे धीरे दो घंटे चलने के बाद मैं रात को सवा ग्यारह बजे मैं अपने घर पहुंचा... चलते चलते काफी थक गया था और रात भी काफी हो गई थी तो अब खाना क्या बनाता.!! और वैसे भी भुख नहीं थी तो खुले आसमान के नीचे चद्दर तान के सो गया ....
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............ जारी
* फोटो नोट-
फोटो -1,2- आरटीओ रिलोकेशन साईड भुज चौराहे पर रस्सी पर चलकर खेल दिखाती एक सात आठ साल की बच्ची
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