Sunday 29 November 2015

ट्रक यात्रा - 12

मैं गगजी की मनहूस चीख सुनकर तुंरत राइट साइड गया,  देखा तो राइट साइड के पीछे वाले पहियों में से आगे के डबल का बहार वाला एक पहिया फूस हो गया था। रात को ही कहीं रास्ते में कोई कील घूस गया होगा और फिर धीरे धीरे पहिये में से हवा निकल गई होगी। हमने आसपास पूछा तो पास में ही एक पंचर निकालने वाला मिल गया। फिर गगजी ने मुझे कहां सब पाना, टामी, जॅक बहार लाओ। मैं सब केबिन के बक्से से निकाल कर बहार लाया। जॅक तो बहुत भारी था।

गगजी ने ठीक से जॅक सटाया और मुझे टामी देते कहा ट्रक के नीचे अंदर घुसकर जॅक चडाओ। मैंने कभी पहले जॅक चडाया नहीं था पर गगजी ने दिशा निर्देश से लग गया जॅक चडाने में। तीस टन वजन था ट्रक में तो काफी मुश्किल था जॅक चडाना। जॅक में टामी भीडाओ, फिर पूरा जोर लगाकर टामी खींच कर घुमाओ और जॅक खुलता जायेगा। पांच मिनट में ही मैं पूरा पसीने से भीग गया। हर बार पुरी ताकत झोंक देने पर भी थोडा सा ही जॅक उपर खुलता। इस दौरान गगजी पहिये के नट बोल्ट खोलने में लगा हुआ था। करीब बीस मिनट की जान निकालने वाली मेहनत के बाद जॅक चढा पाया। मैं पुरी तरह से निढाल हो गया, सारी ऊर्जा बहा दी थी। यहां गगजी भी पूरी तरह पसीने से नहाया हुआ था। उसने नट बोल्ट ढीले कर दिये थे। फिर धीरे धीरे हाथों से बोल्ट खोलकर हमने पहिया बाहर निकाला। पहिया खोलने में और जॅक चढाने में हमारी पूरी अकड उतर गई थी। हम पूरी तरह पसीने से भीग गए थे और एकदम बुरी तरह थक भी गए थे।

पहिया पंचर वाले को देकर हम चाय वालें के ठेले पर जाकर चारपाईयों पर लुढक गये। कुछ देर ऐसे ही लेटे पडे रहने के बाद हाथ मुँह धोकर चाय पी। फिर कुछ चाय से और कुछ देर आराम करने से थोडी बहुत उर्जा आई शरीर में। वहाँ से एक ठेले वाला गुजरा तो फिर भुख भी जग गई पेट में उसे देखकर। उसके पास से एक दर्जन केले चालिस रुपये में खरीदे हमने। और फिर धीरे धीरे चारपाईयों बैठ कर केले खाये हमने।

एकाद घंटे में पंचर निकल गया तो पहिया ले आये। पंचर वाले ने डेढ सौ रुपये लिये पंचर निकालने के। पहिया अब वापिस लगाना था।  ठीक सटाकर पहिया लगाया और फिर अब नट बोल्ट कसने थे। गगजी पाना बोल्ट में भीडाता फिर पाने में टामी भीडाते और फिर मैं टामी पर पूरा जोर लगाता तब जाकर बोल्ट टाईट होते। जीतना जॅक चडाना दुष्कर था इतना ही नट बोल्ट कसना भी। पहिया लगाते हुए मैं पूरी तरह थक गया तो कुछ देर गगजी ने भी जोर लगाया नट बोल्ट कसने में। फिर बहुत मुश्किल बाद हमने बोल्ट कसकर पहिया ठीक से लगा दिया। पहिये का पंचर निकालने में जॅक चडाने और नट बोल्ट कसने में मेरे शरीर का पुर्जा पुर्जा ढीला हो गया।  पंचर निकालने में हम ही पंचर हो गये थे। ये दुसरी ओर बडी अहम वजह थी कि मैं ट्रक यात्रा को नकारात्मक तरीके से देख रहा था और उब गया था।  मैंने मन ही मन में निश्चय किया की ये मेरी पहली और आखिरी ट्रक यात्रा है।

बारह बजने वाले थे, काफी धूप और गर्मी थी। नहाने का मन था पर कहीं आसपास ऐसी व्यवस्था नहीं दिखी। आसपास खाने के लिए भी होटल ढाबा कुछ नहीं दिख रहा था। ठेले वाले नें कहा कि दो किलोमीटर की दूरी पर है एक ढाबा पर एक तो दो किलोमीटर दूर तक चलने का आलस्य और उपर से अभी केले खाये थे और फिर कब नंबर चला जायेगा  ट्रक खाली करने का तो  ये सब सोचते हम ढाबे पर नहीं गये। गगजी जाकर सो गया ट्रक में,  पर मैं आसपास घूमने, टहलने के लिए चल पडा। कुछ दूर आगे जाकर मजदूर काम कर रहे थे। सिमेंट ब्लोक बनाने का कारखाना था वहां पर मजदूर ब्लोक बना रहे थे। थोडा आगे एक चोक था, वहाँ पर एक बडा सा बरगद का पेड़ था, वहां दो लोग दारु पीकर झगडा कर रहे थे और दुसरे तमाशाई उन्हें देख रहे थे। मैं उनसे किनारा करते आगे गया तो वहाँ पेडों पर आठ दस बंदर खेल रहे थे। बंदरों से डर लग रहा था तो वापस चला दिया और आकर ठेले पर चाय पीया।

कुछ देर ठेले पर बैठकर फिर दुसरी ओर चला, वहां सडक के किनारे पर खुले आसमान के नीचे डेरा डाले कई मजदूर परिवार रहते थे। कुछ औरतें दूर से सर पर पानी उठाकर आ रही थी। एक लडके से पूछने पर पता चला कि सब आसपास की फैक्टरीयों में मजदूरी करते हैं। मैं देखते देखते आगे चला गया, आगे एक सडक किनारे पर चाय नाश्ते की दूकान थी तो मैंने वहाँ से सौ रुपये के भुजिये ले लिये। वहां से वापस लौटकर सीधे ट्रक में आया और गगजी को उठाया कि खाना ले आया हूँ। हम दोनों ने दबा दबाकर भुजिये खाये, वैसे और कुछ मिलने वाला नहीं था खाने को। हम खा कर कुछ बैठे बातें कर रहे थे कि इतने में सिक्युरिटी गार्ड ने चिल्लाते हुए बोला; "तीस नंबर.... तीस नंबर ट्रक..."

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......... जारी


* फोटो नोट-

फोटो-1,2- पहिया पंचर होने पर खोल दिया गया पहिया

फोटो-3- सिमेंट ब्लोक बनाते मजदूर

फोटो-4- सडक किनारे बिना छत का घर,  और बोरियों बंधा हुआ उनका सामान

फोटो-5- दूर से पानी भरकर आती मजदुरन महिलाएं

फोटो-6- सिमेंट ब्लोक बनाते मजदूरो के बच्चों का खेल

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