Monday 30 November 2015

कविता-बागी लडका

बागी लडका


(बागी लडका रोता है रातभर छुप छुपकर
सपने में भी जो माँ कहती है अक्सर
कि तुम अब मेरे बेटे नहीं हो,
और कहती हैं माँ कि मैं तुमसे प्यार नहीं करती)

बागी लडका माँ की गोद में छीपता है
बागी लडका बाप से नजरें नहीं मिलता
डरता है पिता के गुस्से से
की दंडित न कर दे कहीं उसे
बागी लडके ने बारह साल में
बारह बार भी बात नहीं की होगी अपने पिता से

अपनी माँ में मस्त रहता है बागी लडका
जैसे कोई अपनी पहली प्रियतमा में होता है मस्त
बागी लडका कहता है माँ मेरी गर्लफ्रेंड है
बागी लडका आंगन के पंछियों से अपने दिल की बात करता हैं
बागी लडका बारिश से खुश होता हैं

बागी लडका बगावत करता है
नही मानता अपने पिता का कहना
प्यार करता है किसी अन्य जाति की लडकी से
बागी लडका परिवार की परंपराएं तोडता है
इज्जत के ठेकेदार ढोंगी बुड्ढो की धोती खींचता है बागी लडका

ईश्वर को गालियाँ देता है,
खुद को नारीश्वरवादी कहता है बागी लडका
किसी धर्म का अनुयायी नहीं बनता
मंदिरो, मस्जिदों से बहुत चीड़ता है
बागी लडका बात बात पर सवाल बहुत करता है

बागी लडका स्कूल नहीं जाता
जिद करता है माँ के पास ही पढने की, माँ के पास ही रहने की
कहता है डर लगता है शिक्षक से
स्कूल के बडे बडे कमरों से
और साल के अंत में आती परीक्षा से

आवारा घूमता है बागी लडका
अक्सर छेडता है मोहल्ले की लडकीयों को
चोटी खींच कर पूछता है; "ब्याह करोगी मुझसे?"
कडी धुप में दोपहर को जाता है तालाब में तैरने
क्योंकि वहाँ आती कपडे धोने पास के गांव की छोरीयाँ

बागी लडका जेल जाता है
झगडता है कहीं भी, किसी के भी साथ
गांव से लडकी भगाकर शहर में शादी करवाता है
चोरी छुपे लव मैरिज करवाने में
दूर दूर तक  कुख्यात है बागी लडका

कभी पर्यावरण के लिए या अवैध खनन के विरुद्ध
आंदोलन चलाता है बागी लडका
फिर किसी नई राजनीतिक पार्टी के लिए
आम आदमी बनता है बागी लडका
हारता है, जीतता है  बागी लडका
बागी लडका अकेले रहना सीख गया है

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कभी बागी लडके निराश होकर आत्महत्या कर लेते हैं
या फिर हो जाती हत्या किसी चौराहे पर सरेआम उनकी

बागी लडकों के दोस्त नहीं होते
बागी लडकों की प्रियतमाएँ नहीं होती
बागी लडकों के माँ बाप नहीं होते
बागी लडकों का परिवार नहीं होता
बागी लडकों के घर नहीं होते
बागी लडके बस ख्वाब पालते हैं, साहस करते हैं....
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