Sunday 29 November 2015

ट्रक यात्रा - 11



आगे जाकर एक ओवरब्रिज आया तो गगजी ने बताया कि ये अहमदाबाद बडौदा हाईवे है। कुछ आगे रामोल, वस्त्राल, वृंदावन विहार करके विस्तार थे शायद,  मैं होर्डिंग्स और यहां वहां लगे बोर्डों पर से विस्तार का अंदाजा लगा रहा था। यहां कुछेक जगह पर ओटो रिक्शा वाले,  बाईक वाले, साईकिल वाले या पैदल आते लोग हमें दिखे, पर सन्नाटा जो पसरा था शहर में वो साफ दिख रहा था। रात को दूर दूर तक शांति फैली हुई थी पर इस शांति में से हिंसा, डर, अराजकता की बदबू साफ साफ आ रही थी।

कुछ आगे ओढव विस्तार शुरू हो गया, ओढव चौराहे से हम फिर राइट साइड मुड गये।  गगजी इन सारे रास्तों का बहुत अनुभवी था, जैसे हर सडक, मोड, बम्प से इंच इंच वाकिफ हो.!! बीच में एक चौराहा आया रबारी कोलोनी करके शायद। जहाँ बहुत सारी बाईके जली हुई पडी थी, कुछेक पुलिस की गाडियाँ भी बुरी तरह खाक हो गई थी, और जहाँ तहाँ शीशों की किरचें फैली पडी थी। पता नहीं चौराहे का नाम रबारी कोलोनी था या फिर उस विस्तार का पर मैंने एक आधे जले हुए पोस्टर से अंदाजा लगा कर नोट किया।

ओढव चौराहे से राइट साइड मुड कर कुछ देर आगे चले वहां से लेफ्ट साइड में एक सडक सिंगरवा जाती है। हम उस छोटी सडक पर जरा सा आगे आये कि "मेइज़ प्रोडक्ट" करके फैक्टरी आ गई। हमें यहां पर ही लिग्नाइट खाली करना था। फैक्टरी की पार्किंग में चौकिदार ने हमारा ट्रक लगवाया। हमने अपनी ट्रक की ऐंट्री करवाई वहां पर। और भी पचास के करीब ट्रक खडे थे पार्किंग में वहां। अभी रात को साडे चार बज रहे थे सुबह होने में तीन चार घंटे थे और तब ही ट्रक खाली होना था।  गगजी मच्छर मारने की कोयल जलाकर अंदर ट्रक की केबिन में ही सो गया और मैं एक सीट लेकर ट्रक की केबिन की छत पर चढ गया और वहां चद्दर तान के लंबा हो गया।

तेज धूप के मुंह पर पडने से मेरी नींद खुल गई, सुबह के आठ बज रहे थे। गगजी अब भी ट्रक की केबिन में सो रहा था। पर वहां फैक्टरी की पार्किंग में और खडी ट्रकों के ज्यादातर ड्राइवर और खलासी उठ गये थे। उनमें से कुछ रोड क्रॉसिंग कर के सामने छोटे से छपरे में चाय के ठेले पर चाय पीने जा रहे थे। मैंने गगजी को सोने दिया और उसे जगाये बिना अकेला ही चाय के ठेले पर चला गया। वहां पर कुछ सिमेंट की टंकियां रखी थी पानी से भरी हुई और कुछ  प्लास्टिक के मग भी। मैंने वहाँ पर मुंह धोकर चाय पी और फिर वहां बिछाई हुई चारपाईयों पर सबके साथ बैठा रहा। सब अनजान दे एक दुसरे से पर फिर भी कुछ बातें हो रही थी हम में। कोयले से लदी ट्रक तो चार पांच ही थे पर ज्यादातर ट्रक मक्के से ही लद थे। फैक्टरी में मक्के में से ग्लुकोज बनाया जाता था। पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश से मक्का आया थी, ट्रक भी सब वहाँ के ही थे।

सुबह सुबह हल्का होने के लिये सब ड्राइवर खलासी पास की झाडियों में जा रहे थे। छोटा सा एक प्लॉट था और उसमें झाडियां भी बहुत कम थी फिर भी सब वहीं बोतल भरके जा रहे थे। मैं नहीं गया क्योंकि इतना प्रेसर नहीं बना था और इस गंदगी में खुले में शौच भी नहीं करना चाहता था। मैंने सोचा जब जोर की लगेगी तब कुछ देखेंगे।

नौ बजते ही सिक्युरिटी गार्ड एक एक ट्रक बारी बारी फैक्टरी के अंदर भेज रहा था खाली होने के लिए। सब ट्रक को नंबर दिया हुआ था हमारा नंबर तीस था। तो हमें और भी बहुत देर लगनी थी।

अंदर केबिन में गर्मी लगने से गगजी की भी नींद खुल गई और वो भी उठकर चाय के ठेले पर आ गया। हमने फिर से चाय पी और फिर गगजी तो बोतल भरके वहीं झाडियों में हल्का हो आया।  मैंने चाय के ठेले वाले से पूछा शौचालय के बारे में तो उसने बताया कि फैक्टरी के गेट के अंदर ही पास में शौचालय, बाथरूम आदि हैं पर सिक्युरिटी गार्ड कमीने है किसी को उसमें जाने नहीं देते। मैं तो सीधा गेट पर गया, इतने में सिक्युरिटी गार्ड ने अटकाया मुझे।  मैंने कहा शौच के लिए अंदर शौचालय में जाना है। तो बोला अंदर सिर्फ स्टाफ के लिए हैं बहार के ट्रक वालों के लिए नहीं। मैंने कहा ठिक है भाई पर मुझे सिक्युरिटी इनचार्ज और कंपनी के मैनेजर से बात करनी है। तो उसने मुझे तो इतने में ही अंदर जाने दे दिया। मैं आराम से अंदर वेस्टर्न शौचालय में हल्का होकर आया। बाहर आया देखा तो गगजी अब भी चाय के ठेले पर चारपाईयों पर ही बैठा था। हम वहाँ से उठकर ट्रक की ओर गये। वहां जाकर ट्रक को चेक करके देख रहे थे की इतने में गगजी राईट साइड से चिल्लाया;  "पंचर.....!!!!"

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........... जारी

* नोट - इस दौरान कोई फोटो नहीं खींचा तो फोटो नहीं है।

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