Sunday 29 November 2015

ट्रक यात्रा - 4



गगजी बहुत अधिक धार्मिक और हद उपरांत अंधश्रद्धालू हैं और अशिक्षीत होने से अंधविश्वास में पूरा पूरा गर्क है। मैंने आशापूरा देवी से तुमने क्या मांगा ऐसा पूछने पर उसने बताया; "मेरी कोई औलाद नहीं है,  दस साल हो गए शादी करे हुए पर अब तक उसके घर 'शेर मिट्टी की खोट है'। तो देवी माता से मांगा कि मेरे घर औलाद हो,  देवी की कृपा हो तो मेरे घर पालना बंधे।"

और भी बहुत कुछ इस बारे में उसने बताया जैसे कि वो कितने मंदिरों, मठों में गया,  कितनी मनते मांगी... पर अब तक इश्वर कि कृपा नहीं हुई उसके घर। अब अगले साल पति पत्नी दोनों ख्याळा मठ जायेंगे शिवरात्रि के दौरान। वहां ग्यारह दिन रहकर दोनों मठ के महंत गोरखनाथ की सेवा करेंगे। और बाबा गोरखनाथ की कृपा हुई तो जरूर उसके घर संतान होगी। वो बता रहा था कि बाबा गोरखनाथ की कृपा से बहुत सारे लोगों के वहां संतान हुई है। महंत गोरखनाथ का मठ राजस्थान में बाडमेर जिल्ला स्थित ख्याळा गांव में है और उस विस्तार में काफी ख्याति प्राप्त है।

मैं उसकी अंधविश्वास भरी ऐसी बातें सुनकर सोचने लगा कि देश में और कितने ऐसे लोग होंगे जो संतान प्राप्ति को इश्वर का आशिर्वाद मानते हैं.!? और फिर ऐसे ढोंगी बाबाओं के हवाले अपनी पत्नी को कर देते हैं.!! उसे कैसे बताता मैं कि बाबा गोरखनाथ की कृपा कैसे होती है और कैसे संतान प्राप्ति होती है.!?  मैं चुप ही रहा कुछ नहीं बताया और न सलाह दी कि किसी डॉक्टर से अपनी और बीवी का चेकअप करायो... और वैसे भी कुछ भी कहता तो सब व्यर्थ होता,  उसकी अंधश्रद्धा जड और काफी जटिल थी  जहाँ मेरी वैज्ञानिक सोच नहीं पहुंच सकती।

ट्रक अपनी गति से आगे बढ रही थी और हम बहुत सारी बातें करते जा रहे थे। मैं बैठें बैठें थक जाता तो थोडा पैर फैलाकर पीठ पीछे केबिन की दिवार से टीका कर आराम कर लेता। हाईवे पर गांव पीछे छोडते हम आगे बढ रहे थे।

ट्रक के लेफ्ट साइड वाले दरवाजे से मैं बैठा बैठा गुजरते परिदृश्य देख रहा हूँ। दरवाजे के बाहर पैड, पौधें जैसे हाथ हिलाकर हमें हाय हेल्लो करते हुए गुजर रहे हैं और नेपथ्य में ओझल होते जा रहे हैं। दूर दूर दिखती पहाडियां पास आती और फिर से दूर  हो जाती है जैसे प्यार होता है तब प्रेयसी पास होती है फिर ब्रेक अप होते ही वह हमसे दूर चली जाती है।
मैं और गगजी दोनों बातें करते करते बीच में कुछ समय के लिए एकदम चुप हो जाते जैसे कि अब हमारे पास कोई विषय नहीं बचा बात करने को। और फिर अचानक कुछ नयी बात निकलती और हम उस पर जमकर बकैती करते।  इस दौरान एकाद बार दुसरे एक ट्रक वाले नें हमें ओवरटेक किया तो गगजी  को जैसे झटका लगा और जैसे किसी ने उसे ललकारा हो..!!! उसने कुछ गालियाँ देते हुए हमारी ट्रक की गति बढाई और देखते ही देखते कुछ ही देर में उस ट्रक को ओवरटेक कर के पीछे छोड दिया।  उस ट्रक को ओवरटेक करते वक़्त गगजी ने बहुत लंबा हॉर्न बजाया जैसे कि अपनी जीत की विजय हाक की हो... उसके मुख पर जोश और उत्साह साफ दिखाई दे रहा है। मैं सोच रहा था कि इसे इस जीत ने कितना सुकुन दिया होगा और खुश किया होगा..!!! सामान्य लोगों की खुशियाँ भी बहुत सामान्य और छोटी छोटी घटनाओं में होती है।

आगे जाकर नखत्राणा के पास एक जगह हमने ट्रक हाईवे की एक होटेल पर रोकी.. दुपहर का खाने का वक्त था और भूख भी बहुत लगी पर हमने खाना नहीं खाया, गगजी ने कहां आगे अपनी जान पहचान की होटेल है वहाँ खायेंगे। हमने पेशाब पानी किया और फिर मैंने वहां पर लगे नल पर हाथ,मुँह, पैर धोये। और फिर चाय पी... चाय काफी अच्छी थी। वहां और भी बहुत सारी ट्रके रुकी हुई थी और बहुत सारी भीड थी। गगजी ने बताया कि इसकी चाय बहुत अच्छी होती है इसलिए सब यहाँ चाय पीने रुकते है। चाय पीकर हम आगे बढ गऐ...

इधर पूरे गुजरात में अशांति का माहौल था पर अब तक कच्छ में शांति थी। हालांकि मार्ग पर यातायात बहुत ही कम था केवल ट्रके ही ज्यादा दिख रही थी और एकाद दो कहीं दुपहिये वाहन। गगजी की पत्नी उसे बार बार फोन कर के हालचाल पूछ रही थी। वो गुजरात की अशांति को लेकर अपने पति के बारे में बहुत चिंतित थी। वो कह रही थी कि अहमदाबाद के लिए मत जाओ,  कहीं एकाद दो दिन के लिए ट्रक खडी कर दो.. शांति होते चले जाना।  लोग जो अफवाहें फैला रहे थे तो उसका चिंता करना वाजिब था। पर गगजी ने  उसे समझाया कि अब शांति है और सब ठीक है। फिर भी घंटे घंटे भर उसके फोन आते रहे। मुझे भी हुआ कास कोई मुझे भी फोन करके हालचाल पूछने वाला होता,  कोई मेरी भी चिंता करने वाला होता.!! अंदर से बहुत उदास हो गया मैं.. बडा अकेला अकेला सा लग रहा था।  और इंटरनेट बंद होने से कुछ अहमदाबाद और राजकोट स्थित अपने प्रियजनों की  चिंता भी हो रही थी। क्योंकि मैं उनसे फेसबुक से ही जुडा हुआ था और कोई संपर्क नहीं था इसलिए किसी के फोन नंबर भी नहीं थे मेरे पास। मैं वास्तविक जीवन में सारे रिश्तों में सफल न रह पाया तो फिर मैंने वर्चुअल दुनिया में कुछ अपने नये रिश्ते बनाये। क्योंकि व्यक्ति रिश्तों या अपने प्रियजनों के बिना खत्म हो जाता है।

इंटरनेट बंद था तो मुझे गुजरात की ताजा अहवालो का ओर खासकर अहमदाबाद की परिस्थिती के बारे में कुछ ख्याल नहीं था। तो फिर मैंने अपने मित्र जयदीपसिंह गोहिल जो लाॅ कॉलेज भुज में प्रिन्सिपाल हैं उनको फोन करके सब जानकारी ली। उन्होंने बताया कि अब तो शांति है सुबह से, कहीं भी कोई अप्रिय घटना की खबर नहीं है। अहमदाबाद,  सुरत,  राजकोट आदि बडे शहरों में अर्ध लश्करी दल ने कमान संभाल ली है। मैंने उन्हें बताया नहीं कि मैं ट्रक यात्रा पर हूँ और अहमदाबाद जा रहा हूँ.. पूछने पर बताया कि लखपत के गांवों में हूँ इसलिये कुछ जानकारी नहीं थी तो आपसे पूछा।

करीब दो बजे हम भुज से दस किलोमीटर पहले एक होटेल पर आ रूके। मानकुवा गांव के पास राजस्थानी ढाबा था हाइवे पर जहाँ अक्सर गगजी खाने के लिए रुकता था। हमने ट्रक को बडे से पार्किंग में ठीक से लगाया और खाने के लिए ढाबे में चल पडे...

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....... जारी

* फोटो नोट

फोटो -1- गधा गाडी, जो हमारी बगल से गुजरी

फोटो-2- चाय जहां पीया वहां कचरा बीनते दो बच्चे,  हमने चाय पिलाई और नमकीन खिलाया तो पूछा कि दुबारा कब आओगे

फोटो-3- ग्लास में भरी चाय

फोटो-4- दुर से पसार होते गांव, पैड, भैंसे और खेत

फोटो-5- हाइवे पर का एक गांव

फोटो-6- सडक जो आती जाती है हालांकि अपनी जगह पर रहकर और हिले बिना

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