Sunday, 29 November 2015

ट्रक यात्रा - 15



मुझे गगजी ने कहा हम इस बार बगोदरा, चोटीला, वाकानेर वाले रास्ते से जायेगें। मैंने कहा ये रास्ता तो बहूत लंबा पडेगा तो गगजी बोला डीजल शेठ का जायेगा अपना क्या है.!?और यहाँ से टोल प्लाजा कम है तो पंद्रह सौ, दो हजार तक रुपये बचेंगे सावळिंग। मैं फिर आगे कुछ न बोला और बोलता भी तो मेरी सुनता कौन !?  खलासी लेफ्टिनेंट होता है और ड्राइवर कमांडर.!!  ....और कोर्ट मार्शल भी तो हो सकता है न..!?

तालपत्री और रस्सियां बांधने से मैं बहुत थका हुआ था तो सीट पर पीठ टिकाये लेटा हुआ था। आगे बढते हुए रास्ते में कई छोटे बडे गांव, कस्बे आये और गुजर गए। बावळा, बगोदरा, मीठापूर जैसे बडे कस्बे भी आये बीच में और चले गए।हम लगातार गति से जा रहे हैं थे। बीच बीच में हममें कुछ बातचीत होती फिर हम बस रास्ता ताकते जाते और अपने ख्यालों और अपनी दुनिया में खोये रहते। एकाद जगह पुलिस का बुरा अनुभव भी हुआ। एक तिराहे पर पुलिसवालों ने लायसेंस, ट्रक के कागजात आदि मांगा तो गगजी ने सब दिखाया। फिर बोले चलो पांच सौ रुपये दो ऐंट्री के.!! गगजी बोला साहब कैसी ऐंट्री.? तो इतने में ही एक युवा और मूछों पर ताव देते बैठे पुलिसवाले को बुरा लग गया और गगजी को एक दो गालियाँ भी दी और तेवर दिखाते हुए परेशान करने के इरादे से बोला तालपत्री, रस्सियाँ खोल ट्रक चेक करनी है। तो डरकर और ज्यादा मेहनत और परेशानी न हो इसलिए गगजी ने दो सौ देकर मामला निपटाया। ये देखकर मैं नीचे गया और पुलिसकर्मीयों से कुछ अपने हिसाब से बातचीत की तो मूछों पर ताव देने वाला अब पूंछ पटपटाने लगा, कहने लगा सर पहले बताना चाहिये न, साॅरी..  और गगजी को पैसे भी वापिस किये। ये लींबडी से कुछ पहले हुआ ।

थोडे आगे चलकर लिंबडी के पास ट्रक खडी की गगजी ने। इस दौरान वो मुझे बार बार पूछता रहा कि पुलिसवालों से तुमने क्या कहा जो पैसे वापस दिये आखिर तंग आकर मैंने बताया कि मैंने उनसे जान पहचान निकाली तो बात बन गई.!!

रात के नौ बज रहे थे,  हम हाथ मुँह धोकर खाने बैठे। खाना बहुत घटिया था फिर भी काफी भूख लगी थी तो दबाकर अच्छे से खाया। मैंने तो खिचडी कड़ी ही ज्यादा खाई, सब्जी रोटी में तो कोई ढंग नहीं था। और होटेल पर खाना खाने आने वालों में शराबी ही ज्यादा दिखे मुझे। खाना खाकर दस पंद्रह मिनट बैठे फिर मैंने पानी की बोतले भर ली और ठीक से आगे वाले शीशे भी साफ किये। गगजी ने अपने भगवान की पूजा अर्चना की इतने तक और फिर वहां से हम आगे के लिए निकले।

बीच में गगजी को अपनी बहन का फोन आया, वो सुबह से बात करना चाह रही थी पर अब जाकर गगजी का संपर्क हुआ। आज राखी का त्योहार था तो भाई से बात की उसने। मुझे अब जाकर पता चला कि आज राखी थी,  जो अब बस पूरी होने वाली है। मैंने अपनी कहलाई देखी, अपनी  सूनी कहलाई को देखकर थोडा दुख भी हुआ और मन में हुआ की काश कोई मुझे भी राखी के दिन फोन करके याद करता। गगजी ने तो सुबह ही मेरे उठने से पहले ही अपने आप हाथ में राखी बांध ली थी,  वो ट्रक में घर से निकलते वक्त हफ्ते भर पहले ही बहन की राखी साथ लाया था।  मैनें  उसकी कलहाई की ओर अब जाकर देखा था जब फोन पर बातें कर रहा था अपनी बहन से।  मैं बीच रास्ते अपनी बचपन की स्मृतियों में खोया रहा और उन दिनों की राखी की यादें अपने अंदर सहलाता रहा।

ट्रक अपनी गति से बढता जा रहा था, बाहर दुर दुर तक चांदनी फैली हुई थी। चोटीला आकर गगजी ने ट्रक खडा किया,  हमने वहाँ चाय पी। इतनी रात को भी एक औरत और लडका भीख मांगने आये, गगजी ने दस रुपये दिये उन्हें। चाय पीकर हम फिर चल पडे..

चोटीला से आगे मुझे गगजी बार बार बता रहा था कि ये एरिया बहुत खराब है यहाँ अक्सर लूटपाट होती रहती है। और फिर सुने सुनाये कुछ किसे सुनाने लगा मुझे। मैं हम्म... हां... किये जा रहा था। मुझे इन ट्रक वालों की बडा चढा के झूठ फैलानी वाली और डराने वाली बातों पर सख्त गुस्सा आ रहा था।
सुनसान सडक पर ठंडी हवा के चलते खेतों की कच्ची उगाई धान की खुश्बू आ रही थी। हरियाली खुश्बू कलेजे तक अंदर जाकर तरोताजा कर देती थी। ये पूरा विस्तार नदियों,  झीलों,  और हर भरे खेतों का था। नदियाँ,  झीलें चंद्रमा की चांदनी में चमक उठती थी। ये काफी सुकुन दे रहा था।

आगे एक गोल घूमता ओवरब्रिज आया, वहां से एक रास्ता राजकोट की ओर जाता है और एक गोल घूमकर ओवरब्रिज चढते वांकानेर को जाता है। हम गोल घूमकर ओवरब्रिज चढते हुए आगे बढे वांकानेर की ओर...

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......... जारी

* नोट - इस दौरान आलस्य और थकान के कारण कोई फोटो नहीं खींचा

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