Monday 30 November 2015

माँ और दुसरी कविताएँ

[  केन्या हो, पेशावर हो, सीरिया या इराक हो, या फिर इजराइल हो.....  मारे तो हम बच्चे, औरते और निर्दोष ही जाते हैं,  हम कमजोर नहीं है पर हम बदले में विश्वास नहीं करते,  हम हिंसा करना नहीं चाहते, हम खून बहाना नहीं चाहते।
हम चाहते हैं एक खूबसूरत दुनिया और इस ख्वाब के लिए हम बलिदान देते रहेंगे। जब तक तुम मजहब के ठेकेदार और साम्राज्यवादी दरिंदे अच्छे इंसान नहीं बन जाते तब तक हम जारी रखेंगे इनसानियत की जंग,  मोहब्बत की जंग।
यह कविता पेशावर हमले में जख्मी हुए बच्चों के लिए संदेश के तौर पर लिखी थी आज केन्या के कोलेज के बच्चों के लिए।]

1.

ना  रखना  बैर प्रति  उनके, उन्हें  तुम  माफ  कर  देना
हर जख्म को भुलाकर तुम, उन्हें बस शर्मसार कर देना

बंदुके,  बम,  बारुद से रहना दूर,  कातिल न बनना तुम
गर  चाहो बदला,  बदले के तहत एक मुस्कान भर देना

वह खुद मर जायेंगे शर्म से, बस उनमें शर्म जिंदा रखना
यही तुम्हारी जीत है, तुम बच्चे हो बच्चे ही बनकर रहना
_________________________


2.

प्यारे पिताजी को
उँगली पकडकर
पा......पा...... करते हुए
कब्रस्तान ले गया ।
डेड बनाया........
और
माँ तो वहाँ
पहले से ही
मम्मी थी....!!!!

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3. माँ


माँ
जब मैं तेरी उँगली थाम कर चलता था
तब मुझे कभी गिरने का डर नही लगता था ।
अरे...... मैंने कभी इसके बारे मे सोचा तक नही था..!!
अब मैं अपने पैरों पे चलता हूँ
फिर भी
मुझे भरोसा नही हैं... अपने आप पर..!!
सदैव एक भय सा रहता है
की
गिर जाऊंगा कहीं तो..?


माँ
खुले आसमान के तले
जब मैं तेरी गोद मे सोता था
तब मुझे अजीब सी खुशी मिलती थी ।
मैं निश्चित होकर सो जाता था ।
लेकिन
अब जब मैं
अपने पंचतारा बंगले मे
डनलप के मुलायम गद्दे पर सोता हूँ ।
फिर भी
नींद नही आती ।
चैन नही मिलता..!!


माँ
जब मैं तेरे आंचल से स्तनपान करता
तब जो स्फूर्ती मिलती थी...
जो अलभ्य स्वाद मिलता था...
वो अब तक मैं भुला नही हूँ...!!!
लेकिन
अब मैं जितने भी शक्तिवर्धक
और चटाकेदार भोजन लेता हूँ
उसमें मुझे कभी
वो स्फूर्ती.... वो स्वाद....
नही मिलता !!

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