Sunday 29 November 2015

ट्रक यात्रा - 2




मुख्य गेट से प्रवेश करते ही कोयले की काली और कच्ची सडक शुरू हो गई। बार बार ट्रकों के चलने से जमी हुई मिट्टी टूट जाती है और काली कोयले की धूल चारों तरफ फैल जाती है जिससे चौतरफा धूल ही धूल ही दिखती है। इस धूल से बचने के लिए बार बार कच्चे रास्तों पर टैंकर से पानी छिडका जाता है।
मुख्य गेट से पांच सौ मीटर अंदर जाते ही रास्ता काफी चौडा हो गया और ट्रकों की दो दो की कतार में लाइन लग गई। जो आगे  वे-ब्रिज तक पर खाली ट्रकों का वजन करने और टोकन लेने के लिए होती है। यहां पर काफी ध्यान पूर्वक ड्राइविंग करनी होती है क्योंकि बहुत सारी ट्रके धीरे धीरे काफी पास पास होती आगे बढती है वे-ब्रिज तक... बहुत बार इसमें ट्रके भीड जाती है। खलासी को भी खाली साइड में बहुत चौकन्ना रहना होता है। लेफ्ट साइड का दिशा सूचन उसे ही ड्राइवर को करना होता है। खलासी के दिशा निर्देश से ही ड्राइवर अंदाजा लगा कर ट्रक चलाता है। मैं बिन अनुभवी था फिर भी अच्छा काम कर रहा था ऐसा गगजी ने बाद में मुझे बताया।

करीब आधे घंटे बाद हमारी ट्रक वे-ब्रिज पर आ पहुंची। ड्राइवर ने खिडकी से वे-ब्रिज ओपरेटर को 'ट्रक ट्रांसपोर्ट मंडल' से मिली फैक्टरी को कोयले की खपत की परची दी। और हमारी खाली ट्रक का वजन हुआ,  करीब दस टन से थोडा कम वजन हुआ हमारी ट्रक का। और  फिर गगजी ने वे-ब्रिज ओपरेटर को पचास रुपये की घूस दी ताकि अच्छे लोडिंग पॉइन्ट पर हमें ट्रक भरने भेजे। अच्छी जगह पर ट्रक भरने जाने से ट्रक जल्दी भरी जाता है। और ऐसा काफी ड्राइवर करते हैं।
वे-ब्रिज ओपरेटर ने हमें खान में आये लोडिंग पॉइन्ट "विलेज पीट" जगह का टोकन दिया। जो ड्राइवर पैसा देते हैं उसे ओपरेटर अच्छा लोडिंग पॉइन्ट देता है।

हम करीब दो किलोमीटर आगे जाकर विलेज पीट पहुंचे। रास्ते में जगह जगह पर सिक्युरिटी गार्ड खडे दिखे और वे-ब्रिज पर तो एकाध दर्जन सिक्युरिटी गार्ड रहे होंगे। विलेज पॉइन्ट पर दो ट्रक हमसे आगे खडे थे, हमने पहले अपना टोकन वहां खडे सुपरवाइजर के पास रजिस्टर्ड कराया। वहां स्थित एक बडा सा वोल्वो लोडिंग मशीन ट्रकों को अपने बडे से सूपड़े से भर रहा था। दस मिनट में ही दोनों ट्रक भरा गई और हमारा क्रम आया। गगजी ने ठीक से ट्रक लगाया लोडिंग मशीन के पास और मुझे सौ रुपये पकडाते हुए कहां ये मशीन ऑपरेटर को दे आओ। मैंने लोडिंग मशीन  के नीचे खडे ऑपरेटर के सहायक को सौ रुपये दिए। सहायक का काम ही ट्रक ड्राइवरों से सौ सौ रुपये जमा करने का ही था शायद। यह सौ रुपये की घूस इसलिये दिया जाता है कि ऑपरेटर ठीक से ट्रक भरे ताकि वे-ब्रिज पर उसका वजन सतरह टन हो। सौ रुपये मिलते लोडिंग मशीन ऑपरेटर अंदाज से गिन कर बकेट डालेगा ट्रक में। नहीं तो फिर ट्रक ड्राइवर और खलासी को सतरह टन से बहुत कम या अधिक कोयला हाथ से मजदूरी करके निकालना भरना होता है। और इस मुश्किल मजदूरी से बचने के लिए ट्रक वाले लोडिंग मशीन ऑपरेटर को सौ रुपये देते हैं।  जो सौ सौ रुपये नहीं देते उनकी ट्रक में जानबूझकर ज्यादा या कम कोयला भरा जाता है ताकि फिर ड्राइवर और खलासी को दिक्कत हो और उन्हें मजदूरी करनी पडे।  इस पैसो में सबका हिस्सा होता है,  वहां खडे ऑपरेटर,  उसके सहायक, सुपरवाइजर और वहां खडे GMDC के माइन्स ऑफिसर तक का.... पांच सात मिनट में हमारी ट्रक भर गई। मैंने इस जगह के फोटो लेने चाहे और नैतिकता दिखाते हुए माइन्स ऑफिसर से इजाजत मांगी तो उसने मना कर दिया और मेरी तरफ घूरकर देखने लगा। तो फिर मैंने मोबाइल अंदर कर लिया और उसके देखते फोटो नहीं लिये।

हमारी ट्रक भर गई तो हम वे-ब्रिज पर वजन कराने हेतु चल दिए,  हमारे बाद वहां पर करीब पांच ट्रक और आ गई थी।  घडी में समय देखा तो सुबह के साडे आठ बज रहे थे फिर भी काफी गर्मी लग रही थी।  मैं पूरी तरह पसीने से नहाया हुआ था और कोयले की काली राख शरीर पर कुछ कुछ जमी हुई थी। मैंने सफेद टीशर्ट पहना हुआ था तो उसका भी रंग फीका और कुछ कुछ काला हो गया था। कुछ आगे जाते ही मैंने मोबाइल फोन से कुछ तस्वीरें भी खींची....

वे-ब्रिज पर भी भरी हुई ट्रकों की लाइन लगी हुई थी.. हमारे आगे तीस के करीब ट्रक थे। धीरे धीरे आगे बढते पौने घंटे में हम वे-ब्रिज पहूँचे.. हमारी ट्रक का वजन 27 टन से थोडा कम हुआ,  जिसमें दस टन ट्रक का वजन था। वे-ब्रिज ऑपरेटरने हमें परची बना दी उसमें कोयले का वजन 16970 kg था यानी कि सतरह टन तक कोयला था। गगजी और दुसरे ड्राइवर इस वजन परची को बिल्टी कहते हैं। हम बिल्टी लेकर खान के मुख्य गेट के बाहर दस बजे से पहले आ गये।

बाहर बडे से खुले चौगान में कई भरी हुई ट्रक खडी थी जहाँ ड्राइवर, खलासी ट्रक पर पन्नी और तालपत्री ढक कर रस्सी बांध रहे थे। हमने भी ट्रक खडी रखकर बडी सी पन्नी को कोयले पर फैलाया, पन्नी काफी भारी थी बहुत मुश्किल से फैलाया,  फिर खींच तान कर मजबूती से रस्सियाँ बांधी। और इन रस्सियों को बांधते मैं और गगजी पूरी तरह से निढाल हो गये थे। रस्सियाँ बांधना काफी मेहनती और जफां भरा काम है। और मैं तो पहली बार रस्सियाँ लगा रहा था तो ठीक से हूक में भीडाना भी नहीं आता था। फिर भी जैसे तैसे करके हमने रस्सियाँ बांध ली और चाय पानी पीने होटेल पर चल दिए।

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........... जारी

* फोटो नोट -

फोटो-1- खोद कर जमीन से कोयला बाहर निकालती मशीन और कोयले का ढेर
फोटो-2,3-  खान के अंदर के दृश्य... ट्रके और रास्ते
फोटो-4- एक बडी मशीन कोयला निकालती
फोटो-5- विलेज पॉइन्ट पर ट्रक लोडिंग करता वोल्वो मशीन
फोटो-6- जमीन के ऊपरी स्तर पर मिट्टी उठाते डंपर और जेसीबी
फोटो-7- कोयला ही कोयला
फोटो-8- कोयला खोदने से जमीन से निकला खारा पानी जो एक झील बन गया है

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