Sunday 29 November 2015

ट्रक यात्रा - 16

रास्ता आगे  पूरा सुनसान था,  सडक पर ट्राफिक बिल्कुल ही नहीं था। कुछेक ट्रक, टेलर थोडी थोडी देर बाद आ जा रहे थे बस। तेज हवा चल रही थी तो थोडी ठंड भी लग रही थी। रास्ते में वांकानेर से कुछ पहले अकस्मात हुआ था हमारे पहूंचने से कुछ देर पहले ही, वहां लोगों की भीड इकट्ठी हुई थी। वहीं सामने होटेल तीरथ करके था उसमें दो चार युवक खाना खाने आये थे उनकी बाईक को ट्रक वाले नें ठोक दिया था। किसी को कुछ लगा वगा नहीं था पर बाईक वाले ट्रक वाले को खडा कर दिया और बाईक में हुए नुकसान का हरजाना मांग रहे थे।

हम उन्हें किनारे छोड कर आगे बढ गये। कुछ आगे चलकर मेरा पेट थोडा थोडा दुखने लगा और पेट में से गुडगुडगुड करती आवाजे आने लगी। फिर कुछ देर में मुझे भारी प्रेशर आया था तो मैंने गगजी से कहा ट्रक खडी कर दो साइड में कहीं।  पर तब तक वांकानेर की रिहायशी बस्ती शुरू हो गई थी। गगजी ने कहां थोडी देर दबा कर रखो वांकानेर पार करके कहीं खडी रखता हूं ट्रक। ये सब उस घटिया खाने की वजह से हुआ था। मैं मन ही मन कोस रहा था उस होटेल वाले को।  वांकानेर के बगल वाला टोल प्लाजा पार करके पास के ही चाय के ढाबे पर ट्रक खडी करवा दी मैंने। मैं जल्दी जल्दी नीचे उतरा और भागा। वहां शौचालय तो था नहीं तो एक बोतल में पानी भरकर मैं ढाबे के पीछे  खुले खेतों में घूस गया। आसपास पुरा खुला था पर रात थी तो कोई देखने वाला तो नही था.!!  खुले में हल्का होने का जो मजा है वो कतई बंद शौचालय में नहीं है.! अपने आप को बादशाह फिल करते हैं इस दौरान,  जैसे पूरा जहां अपना है.!!  हल्का होकर आने के बाद ठीक से हाथ धोये ढाबे पर,  गगजी वहां ढाबे पर पडी चारपाई पर लेटा पडा था। कुछ देर में चाचा चाय लाया हमने चाय पी।

रात को 1 बजा था, कुछ देर हम वहीं लेटे रहे ढाबे की चारपाईयों पर। ढाबे पर पास की एक चारपाई पर बडा सा काला कूत्ता सो रहा था और पास में नीचे जमीन पर एक सोलह सतरह वर्षीय लडका सो रहा था। पूछने पर चाय वाले चाचा ने बताया कि कूत्ता वफादार हैं,  और बहुत ही ऊंची नस्ल का है।  फिर वो उस कुत्ते के किस्से सुनाने लगा हमें.. उसके ढाबे का नाम शक्तिकृपा था और कुत्ते का नाम भी शक्ति रखा हुआ था.!! पता नहीं शक्तिकृपा नाम कुत्ते से प्रेरित था या शक्ति, देवी से...

थोडी देर के बाद हम वहाँ से आगे चले.. कुछ आगे चलकर बीच में एक जगह सुनसान सडक पर अंधेरे में तीन औरतें खडी थी, जो हाथ हिलाकर लिफ्ट मांग रही थी। पता नहीं वो इतनी रात को यहां सडक पर क्या कर रही होगी.!? और इनके अलावा कोई और पुरुष भी नहीं दिखा हमें आसपास। हमने ट्रक नहीं रोकी, आगे बढ गये। गगजी ने तो कहा कि कोई लुटेरे होंगे, जो औरतों के पीछे झाडियों में छिपे होंगे। ट्रक रोकने पर वो ट्रक वालों को लूट लेते हैं। पर मेरा अनुमान था कि शायद वो सेक्स वर्कर होगी और ट्रक रुकवाने के उनके इशारे भी तो ऐसे ही थे।

मोरबी के करीब पहुंचते ही चारों तरफ धुआँ ही धुआँ फैला हुआ था। दुर दुर तक उस धुँए की गंध आ रही थी। आसपास की ईंटों की भट्ठियाँ सुलग रही थी और वो तीव्र दुर्गंध वाला धुआँ उगल रही थी। मेरी तो सांसे फूलने आई और घुटन जैसा लगने लगा। पता नहीं यहाँ के रहवासी इस प्रदूषण में भी कैसे रह पाते होंगे.!? मोरबी के पास होकर ओवरब्रिज से हम माळिया, कच्छ की ओर बढते चले। माळिया से कुछ पहले ओवरब्रिज से ही राष्ट्रीय मार्ग नंबर 8  शुरू हो गया। अब सडक पर काफी तादाद थी वाहनों की। माळिया मुख्य मार्ग से काफी साइड में रह जाता है फिर भी इस विस्तार के सडक मार्ग को माळिया से ही जाना जाता है।  आगे चलकर कच्छ का प्रवेश द्वार सूरजबारी पूल आ गया।  जाते वक्त पूल पसार करते  भी रात का समय था और अब आते वक्त भी रात थी। पूल के बीचो बीच चलते हुए पूरानी फूल मालए आदि जो एक पोलिथीन बैग में गगजी ने इकट्ठा करके रखी थी वो  उसने नीचे समुद्र के पानी में फेंकी। मेरा ध्यान गया कि इतने में उसने फेंक दी थी। मन तो किया स्साले गगजी को भी एक धक्का मारकर पूल के नीचे पानी में फेंक दूं पर फिर याद आया कि मुझे ट्रक चलानी नहीं आती.. तो फिर बक्ष दिया उसे.!! ;)

सूरजबारी पुलिस चौकी पर अब भी देर रात तक पुलिस वालों को जागते हुए और कानून, व्यवस्था को मजबूत करते देख उनके प्रति सम्मान हुआ। ये और बात है कि ज्यादातर पुलिस के अच्छे अनुभव नहीं है मुझे पर फिर भी जो अपना काम समर्पण भाव से, ठीक से करते हैं  उनके प्रति मेरा सम्मान बढ जाता है। आगे सामख्याळी टोल प्लाजा पर लाइन लगी हुई थी, बीस पच्चीस मिनट लगे हमें वहां।  और वहां से आगे जाकर सामख्याळी आरटीओ चेकपोस्ट आया तो मेरी आँखें उस हिज़डे को ढूंढने लगी जिसने जाते समय काफी स्नेह दिखाया था मुझ पर। वो तो नहीं दिखा पर उसकी बिरादरी के दो ओर आये और गगजी से पैसे लेकर दुसरे वाहनों के पास चले गए।

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.......... जारी

* नोट - इस दौरान कोई फोटो नहीं खींचा गया ।

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